साहित्य-पत्रकारिता 2011 : स्मृति शेष
- स्मृति जोशी
बीते वर्ष लेखन-संसार की नामी हस्तियां हमसे जुदा हो गई। मारियों मिरांडा से लेकर श्रीलाल शुक्ल तक और आलोक तोमर से लेकर अदम गोंडवी तक सभी का जाना उनके प्रशंसकों को स्तब्ध कर गया। साल 2011 में साहित्य और पत्रकारिता-संसार के जिन दिग्गजों ने हमसे बिदा ली उन्हें वेबदुनिया टीम की और से भावभीनी श्रद्धांजलि। * श्रीलाल शुक्ल (साहित्यकार) : साहित्य-संसार की विराट क्षति के रूप में मशहूर साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल का जाना कहा जाएगा। हिंदी साहित्य को राग-दरबारी जैसा कालजयी उपन्यास देने वाले सुविख्यात साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल का लंबी बीमारी के बाद लखनऊ में 28 अक्टूबर 2011 को निधन हो गया। वह 86 वर्ष के थे। श्रीलाल जी का जन्म 31 दिसंबर, 1925 को लखनऊ के ही मोहनलाल गंज के पास अतरौली गांव में हुआ था। 14 साल की उम्र में ही श्रीलाल संस्कृत और हिंदी में कविता-कहानी लिखने लगे थे। अध्ययन के पश्चात प्रांतीय सिविल सेवा, पीसीएस में ऑफिसर बने और बाद में पदोन्नति पाकर आईएएस बने। सरकारी सेवा में रहते हुए भी उनके लेखकीय तेवर बरकरार रहे। उनका पहला उपन्यास सूनी घाटी का सूरज 1957 में प्रकाशित हुआ। सबसे लोकप्रिय उपन्यास राग-दरबारी 1968 में छपा। राग-दरबारी का 15 भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी में भी अनुवाद प्रकाशित हुआ। 1969
में उन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला। लेकिन ज्ञानपीठ सम्मान 42 साल बाद उन्हें दिया गया। पद्मभूषण सहित कई बड़े सम्मान उनके नाम दर्ज हैं। राग-विराग उनका आखिरी उपन्यास था। उन्होंने हिंदी साहित्य को कुल मिलाकर 25 रचनाएं दीं, इनमें मकान, पहला पड़ाव, अज्ञातवास और विश्रामपुर का संत प्रमुख हैं। * मारियो मिरांडा ( कार्टूनिस्ट) : 11 दिसंबर 2011 को जाने-माने चित्रकार और कार्टूनिस्ट मारियो मिरांडा का गोवा में निधन हो गया। वह 85 वर्ष के थे। गोवा के जन-जीवन के विविध रंगों से व्यापक स्तर पर परिचित कराने में मारियो मिरांडा का महान योगदान था। उन्होंने लंबे समय तक इलस्ट्रेटेड वीकली ऑफ इंडिया, टाइम्स ऑफ इंडिया और इकॉनॉमिक टाइम्स के लिए मजेदार कार्टून बनाए थे। उनकी बॉस और सेक्रेटरी श्रृंखला के कार्टून और ग्लैमर वर्ल्ड की 'मिस नींबूपानी' जैसे पात्र खासे लोकप्रिय हुए। मारियो मिरांडा के बनाए हुए कई म्यूरल्स गोवा में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। उन्होंने अनेक शहरों के जीवन को अपनी पेंटिंग्स में उतारा जिनमें गोवा के अलावा पेरिस और हैम्बर्ग की पेंटिंग्स अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहीं। मारियो अपने कार्टून की महीनता के लिए दुनिया भर में मशहूर थे। उनके कार्टून के डिटेल्स देखने लायक होते थे। विशेष रूप से हाट बाजार, स्कूल, ऑफिस, इमारतों और रेस्टोरेंट के रेखांकन में हास्य का चुटीला रंग और आम आदमी की जिंदगी की रोचक-जीवंत झलक दिखाई पड़ती है। पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान पा चुके मारियो की रेखाचित्रों की प्रकाशित किताबें आज भी नए कार्टूनिस्टों के लिए प्रेरणा का काम कर रही है। कला संस्थानों में उनकी पुस्तकें अनिवार्य रूप से पढ़ने की सलाह दी जाती है। कार्टून की सबसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय पत्रिका 'मैंड एंड पंच' में उनके कार्टून प्रकाशित होते रहे हैं। उनके पारिवारिक सूत्रों के अनुसार मारियों नींद में ही सोते रह गए और मौत का बुलावा आ गया। मारियो मिरांडा जैसी विलक्षण प्रतिभा का जाना कला एवं पत्रकारिता-संसार के लिए एक बड़ा नुकसान है। * पीकेएस कुट्टी (कार्टूनिस्ट) : प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट पुठुकोड्डी कोत्तुठोदी शंकरन कुट्टी नैयर यानी पीकेएस कुट्टी का 22 अक्टूबर 2011 को अमेरिका के मैडिसन शहर में निधन हो गया। पीकेएस कुट्टी 90 वर्षीय थे। प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट पीकेएस कुट्टी का जन्म 1921 में केरल के ऑट्टपलाम में हुआ था। उनका पहला कार्टून मलयालम के विश्वरूपम पत्रिका में वर्ष 1940 में प्रकाशित हुआ था।कार्टूनिस्ट के रूप में पीकेएस कुट्टी ने अपने करियर की शुरुआत वर्ष 1941 में नेशनल हेरॉल्ड के साथ की थी। प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट शंकर पीकेएस कुट्टी के गुरु थे। नेशनल हेराल्ड के बाद कार्टूनिस्ट कुट्टी ने आनंद बाजार समूह, फ्री प्रेस जर्नल, हिन्दुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस प्रकाशनों के लिए काम किया। वर्ष 1987 में वह बंगाल भाषा के अखबार 'आजकल' के लिए काम करने लगे जहां वह वर्ष 1997 तक रहे। तत्पश्चात अमेरिका चले गए और वहीं रहने लगे। कार्टूनिस्ट कुट्टी ने अपने हुनर और पत्रकारीय तेवर से एक विशेष पहचान बनाई थी। कार्टूनिस्ट कुट्टी की जुदाई भी साल 2011 की बड़ी हानि मानी जाएगी। * ताहा मुहम्मद अली( फिलिस्तीनी कवि) : ताहा का जन्म 27 जुलाई 1931 को गलिली क्षेत्र के सफ्फूरिया नामक गांव में हुआ था। 1948 के अरब-इजराइल युद्ध के दौरान इजराइली सेना द्वारा की गई बमबारी में पूरा गांव नष्ट होने के बाद उनका परिवार लेबनान चला गया था। बाद में वे इजराइल लौट आए लेकिन लौटने के बाद नजारेथ में उन्हें रहना पड़ा। नजारेथ में वे एक सोविनियर शॉप चलाते थे। ताहा मुहम्मद अली फिलिस्तीनी साहित्य का महत्वपूर्ण नाम हैं। ताहा ने 1948 में हुए अरब-इस्राइल युद्ध के दौरान पलायन के दंश को झेला। सफूरिया में बीता बचपन उनके साहित्य का मुख्य प्रेरणा स्त्रोत है। वहां के अनुभवों ने ताहा की कल्पना को तराशा और कला के रंगों में सनकर आकर्षक रूप ग्रहण किया। ताहा मुहम्मद अली का साहित्यिक जीवन 1983 में शुरु हुआ। प्रखर संवाद का साहस, पुरअसर व्यंग्य, बैलौस-बेलाग व मार्मिक अभिव्यक्ति ने उनकी कविताओं को पैनी और असरदार बनाया। उनके काव्य-संकलनों और छोटी कहानियों ने एक जागरूक पाठक वर्ग तैयार किया है। 2 अक्टूबर 2011 को ताहा ने इस दुनिया से बिदा ली। * आलोक तोमर (वरिष्ठ पत्रकार) : प्रखर पत्रकार आलोक तोमर का 19 मार्च 2011 को लंबी बीमारी के बाद दिल्ली में निधन हो गया। वह पचास वर्ष के थे। वह गले के कैंसर से पीड़ित थे। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जगत में आलोक एक लोकप्रिय शख्सियत थे। उन्होंने अपराध और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी पत्रकारिता द्वारा अपनी एक अलग पहचान बनाई। मध्यप्रदेश के मुरैना जिले में 27 दिसंबर 1960 में जन्मे तोमर ने हिंदी पत्रकारिता में अपनी तीखी और बेबाक रिपोर्टिंग के जरिए भाषा को विलक्षण तेवर दिए। 1984
के सिख विरोधी दंगे की मानवीय रिपोर्टिंग से उन्हें खासी चर्चा मिली। दंगों का दर्दनाक सच और व्यवस्था की नाकामी आलोक की ही लेखनी से सामने आ सकी थी। जनसत्ता अखबार से आलोक तोमर पत्रकारिता के शीर्ष पर पहुंचे। स्वदेश, न्यूज एजेंसी वार्ता, पायनियर साप्ताहिक, जनसत्ता, सीनियर इंडिया पत्रिका और कई समाचार चैनलों से जुड़े। धारदार लेखनी उनकी ऐसी पहचान बनी कि उनका नाम देखकर ही लोग अखबार को सहेज कर रख लेते थे। वेब पत्रकारिता पर आलोक ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई। वर्ष 2000 में उन्होंने डेटलाइन इंडिया नामक इंटरनेट न्यूज एजेंसी की स्थापना की। इसके माध्यम से अखबारों के लिए विश्वसनीय समाचार स्रोत की भूमिका निभाई। उन्होंने धारावाहिक ‘जी मंत्री जी’ की पटकथा लिखी थी। सर्वाधिक लोकप्रिय टीवी गेम शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ का स्वरूप तय करने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। केबीसी-1 से चर्चित 'कंप्यूटर जी लॉक कर दिया जाए' यह जुमला उन्हीं के द्वारा गढ़ा गया था। 20 मार्च 2011 को बेटी मिष्ठी ने उन्हें मुखाग्नि दी। आलोक तोमर का असमय चले जाना हिंदी पत्रकारिता के साथ 2011 की भी दुखद घटना है। * इंदिरा गोस्वामी (असमी साहित्यकार): बिंदास लेखिका इंदिरा गोस्वामी का लंबी बीमारी के बाद 69 वर्ष की उम्र में 29 नवंबर 2011 को गुवाहाटी में निधन हो गया। उन्होंने उल्फा को बातचीत की मेज पर लाने के लिए पहल की थी। फरवरी 2011 में उन्हें मस्तिष्काघात हुआ था। लेखिका इंदिरा गोस्वामी ने रामायण काल का गहन अध्ययन किया था। असमी साहित्य में योगदान के लिए वर्ष 2000 में उन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था। उन्होंने ‘दाताल हाथी उवे खोवा’ ‘नीलकंठ ब्रज’ और ‘आधा लिखा दस्तावेज’ सहित अनेक किताबें लिखीं। * कमला प्रसाद (संपादक,वसुधा) : प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय महासचिव और वसुधा पत्रिका के संपादक कमला प्रसाद 25 मार्च 2011 को नहीं रहे। अन्याय के खिलाफ लेखकीय प्रतिरोध के प्रतीक कहे जाने वाले कमला प्रसाद का जाना 2011 की रचनात्मक क्षति कही जाएगी। सतना जिला के धौरहरा गांव में 14 फरवरी 1938 को उनका जन्म हुआ था। उन्होंने पूरे देश में घूम-घूम कर लेखकों को चेताया, सजग और सतर्क किया। रीवा स्थित अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभागाध्यक्ष, केशव अध्ययन एवं शोध संस्थान के अध्यक्ष, मध्य प्रदेश कला परिषद् के सचिव, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा के अध्यक्ष रहे और कई अन्य अकादमिक समितियों के महत्वपूर्ण पदों पर रहे। प्रलेस की तमाम इकाइयों में अपनी सांगठनिक क्षमता से जान फूंकी और युवा लेखकों को रचनाधर्मिता के प्रति प्रेरित किया। प्रलेस के नए लेखकों को प्रोत्साहित किया। कश्मीर से लेकर उत्तर-पूर्व और दक्षिण में प्रलेस की इकाइयां खड़ी कीं। उनकी संगठन क्षमता विलक्षण थी। उनकी प्रमुख कृतियां साहित्य शास्त्र, आधुनिक हिन्दी कविता और आलोचना की द्वन्द्वात्मकता, रचना की कर्मशाला, नवजागरण के अग्रदूत भारतेन्दु हरिश्चन्द्र हैं। हिन्दी की प्रगतिशील धारा के प्रमुख आलोचकों में कमला प्रसाद का नाम सम्मान से लिया जाता रहेगा।* अदम गोंडवी (जनकवि) : साल के जाते-जाते सुप्रसिद्ध कवि रामनाथ सिंह का निधन हो गया। वे अदम गोंडवी के नाम से विख्यात थे। उन्होंने पिछड़ों और गरीबों के जीवन पर अनेक कविताएं लिखीं। 1998 में मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें दुष्यंत कुमार पुरस्कार से सम्मानित किया था। 22 अक्टूबर 1947 को जन्मे अदम गोंडवी भारत की आजादी के साथ-साथ ही बड़े हुए, लेकिन उन्होंने आजादी की जो शक्ल देखी वह बहुत ही खौफनाक थी। उन्होंने देश के लिए समर्पण करने वालों को तिल-तिल कर मिटते देखा। गरीब जनता के सपनों को दम तोड़ते देखा। वे पूरी उम्र गोंडा जिले के आटा परसपुर गांव में रहे और वहीं से राजधानी के शायरों को चुनौती देते रहे। 18 दिसंबर 2011 को अदम लखनऊ में बीमारी से जूझते हुए दिवंगत हो गए। उनकी कविता 'काजू भुने प्लेट में, व्हिस्की गिलास में, उतरा है रामराज विधायक निवास में।' ने जनता की खूब दाद बटोरी। ( क्रमश:)