कौन देगा इन सुलगते सवालों का जवाब?
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वेबदुनिया डेस्क समूचा देश आज 26/11 की पहली बरसी मना रहा है। हर हिंदुस्तानी को हिला कर रख देने वाले इस खौफनाक मंजर को लेकर भारतभर में अनेक आयोजन हो रहे हैं। यह स्वाभाविक भी है। जिस बहादुरी से हमारे सुरक्षा बलों ने आतंकियों का सामना किया, उसने पाकिस्तान में बैठे उनके आकाओं को भी हमारी ताकत का अहसास करवा दिया होगा। हमले के बाद मुंबई भी बिना डरे-सहमे इस सदमे से लड़ी, उसके लिए मुंबईकरों की तारीफ होना ही चाहिए। ...
लेकिन इस पूरे हादसे के साथ और इसके बाद घटे कुछ वाकयों से उपजे सवाल अभी भी आक्रोश की आग को ठंडा नहीं होने दे रहे हैं। न तो सरकार की कथनी उसकी करनी से मेल खाती है और न ही जनभावनाओं का ज्वार उसे राजनीति से परे होकर देशहित में फैसले लेने के लिए विवश कर पाता है। हमले के बाद से घटी कुछ घटनाएँ तो यही बात चीख-चीख कर कहती हैं। आरआर पाटिल को गृह मंत्री की कमान क्यों : मुंबई हमले के दौरान महाराष्ट्र के गृह मंत्री आरआर पाटिल ने अपने उद्गार कुछ इस तरह व्यक्त किए थे- ''आतंकवादी तो पाँच हजार लोगों को मारने की योजना बनाकर आए थे, हमने कितने कम लोगों को मरने दिया। इतने बड़े शहर में एकाध हादसा तो हो ही जाता है।''महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री छगन भुजबल कह चुके हैं-''मैंने पाटिल से हमले वाली रात घर से बाहर निकलने को कहा था, लेकिन वे नहीं निकले।'' महाराष्ट्र में सरकार की साझेदार कांग्रेस इस बात का जवाब दे कि पाटिल की गृह मंत्री के पद पर दोबारा ताजपोशी क्या भारतीयों की भावना और उनकी सुरक्षा के साथ मजाक नहीं है? क्या एनसीपी में दूसरा कोई नेता नहीं है, जिसे यह जिम्मेदारी सौंपी जाए। क्या ऐसे नाकारा नेताओं को सहना अब देश की मजबूरी बन गई है?मृतकों के परिजनों को अब तक मुआवजा नहीं : कितनी शर्मनाक और हास्यास्पद स्थिति है कि मुंबई हमले में मारे गए शहीदों और आम नागरिकों के परिजनों को अब तक मुआवजा ही नहीं मिला है। महाराष्ट्र के गृहमंत्री पाटिल साहब ने अभी इसके लिए और 15 दिन और माँगे हैं। ज्ञात हो कि आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे को सालभर बीत जाने के बाद भी पेट्रोल पंप नहीं मिला। वे अगर पिछले दिनों सोनिया गाँधी से नहीं मिलतीं तो शायद मुरली देवड़ा आज (26/11) को पंप देने का वादा पता नहीं करते या नहीं।अब तक जवानों के पास बुलेट प्रूफ जैकेट नहीं : हमले को एक साल बीतने के बावजूद केंद्र सरकार पुलिस के जवानों को बुलेट प्रूफ जैकेट तक उपलब्ध नहीं करा पायी। शायद रक्षा खर्च के लिए आवंटित राशि में इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है। बंकर बने पीकदान : हमले के तत्काल बाद उठाए गए जिन ऐहतियाती कदमों के तहत मुंबई के प्रमुख इलाकों में निगरानी बंकर बनाए गए थे, उन्होंने आज पीकदान की शक्ल ले ली है। इसके आगे महाराष्ट्र सरकार की किसी लापरवाही का जिक्र करना ही बेकार है।भारत में दोबारा 26/11 जैसा हमला न होने देने का दावा करने वाला केंद्र सरकार का गृह मंत्रालय सुरक्षा पर भारी-भरकम खर्च और योजनाओं की फेहरिस्त जारी करता है तो दूसरी तरफ प्रशासन के स्तर पर जारी उपरोक्त काहिली सरकार के असल इरादों की पोल खोलती है। अब जो दिखाई दे रहा है उसके लिए जिम्मेदार लोगों को 'सबक' सिखाएँ या सरकार के दावों पर आँख मूँदकर भरोसा करें। फैसला आपका...।