वृत्तियाँ पाँच प्रकार की होती है:- (1) प्रमाण, (2) विपर्यय, (3) विकल्प, (4) निद्रा और (5) स्मृति। कर्मों से क्लेश और क्लेशों से कर्म उत्पन्न होते हैं- क्लेश पाँच प्रकार के होते हैं- (1) अविद्या, (2) अस्मिता, (3) राग, (4) द्वेष और (5) अभिनिवेश। इसके अलावा चित्त की पाँच भूमियाँ या अवस्थाएँ होती हैं। (1) क्षिप्त, (2) मूढ़, (3) विक्षित, (4) एकाग्र और (5) निरुद्ध। ऊपर लिखें एक-एक शब्द और उनके अर्थ को समझने से पतंजलि के मनोदर्शन का पता चलता है।
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