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Written By निर्मला भुरा‍ड़‍िया

महिला दिवस : पराई नहीं हैं बेटियां

बेटियों को मिले सामाजिक सम्मान

Mahila Diwas in Hindi | महिला दिवस : पराई नहीं हैं बेटियां
एक कॉलोनी की एक गर्भवती स्त्री एक दूसरी स्त्री के पैर छूने आई। जिसके पैर छूने आई थी उसने पूछा- मेरे ही पैर क्यों छूना है, तो गर्भवती स्त्री ने बताया- क्योंकि आप एक लड़के की मां हैं। मेरे घरवालों ने भेजा है कि कॉलोनी में जो-जो बेटे की मांएं हैं, ढूंढ-ढूंढकर उनके पैर छू आओ ताकि उनके आशीर्वाद से बेटा ही हो, बेटी न हो।

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यह बहुत ही अवैज्ञानिक बात है। इसमें बहुत बड़ा अंधविश्वास भी है। मगर सबसे खराब बात है वह भावना जो लड़कियों को अवांछित मानती है। पुत्रेष्णा में हम भारतीय कुछ भी कर गुजरते हैं। एक नहीं ऐसे अनेक किस्से सुने हैं जिनमें कोई अपनी गर्भवती बहू को फलां मंत्र देता है कि इसे रोज पढ़ो और बेटा (ही) जनो! कोई यज्ञ-हवन, पूजा-पाठ कराता है। कोई गाय के दूध में घोलकर फलां दवा पीने को कहता है।

भ्रूण हत्या के खिलाफ कड़े कानून बन जाने के बावजूद, लोग कन्या भ्रूण हत्या का अपराध करने की जुगाड़ सोचते रहते हैं। चंद डॉक्टरों की मिलीभगत से कुछ लोग ऐसा करने में सफल भी होते हैं। बेटा और बेटी दोनों एक ही कोख के जाए, एक ही बीज से जन्मे फिर बेटियों से ऐसा बैर क्यों? ये नियम कोई बेटियों ने तो नहीं बनाए कि मां-बाप उनके घर का खाना नहीं खाएंगे। मगर चूंकि ऐसे ही नियमों के कारण बेटी को लोग बुढ़ापे की लाठी नहीं बना पाते इसलिए बेटी पाने पर अपने बुढ़ापे की सुरक्षा में सेंध देखते हैं।

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गोया जिस बेटे को पाकर जोर-जोर से थालियां बजाई थीं वह सुरक्षा दे ही देगा। बेटा हो या बेटी हो, उसके साथ मां-बाप की भावनात्मक और आर्थिक सुरक्षा बनी रहती है या नहीं यह तो समय ही बताता है मगर हम जाने क्यों पहले ही बेटियों से बैर ठान लेते हैं। पता नहीं यह प्रवृत्ति कब दूर होगी।

एक बूढ़ी स्त्री से किसी ने पूछा- अम्मा आपके कोई बाल-बच्चे हैं? अम्माजी ने जवाब दिया, बाल-बच्चे तो कोई नहीं हैं...बस तीन बेटियां हैं! यह बात परिलक्षित करती है हमारी मानसिकता को। साथ ही हमारी सामाजिक स्थितियों को भी। भारतीय मां-बाप बेटियों को अपने सहारे के रूप में गिनकर नहीं चल सकते, उन्हें पराई मानकर ही पाला जाता है।

फिर ससुराल जाती हैं तो अपने मां-बाप की सहायता करती बहू अक्सर ससुराल वालों को भी नागवार गुजरती है। यदि हम चाहते हैं कि बेटे और बेटी के जन्म को समाज में समान रूप से स्वीकार किया जाए, तो ये सामाजिक स्थितियां भी बदलना होंगी। बूढ़े माता-पिता संतान की ओर से प्यार और देखभाल चाहते हैं, वह उन्हें मिलना चाहिए, फिर चाहे वह उन्हें बेटा दे या बेटी।