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महिला आरक्षण बिल का सफरनामा
सोमवार,मार्च 8, 2010
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महिलाओं के लिए समानता के बारे में बड़े बड़े दावे किए जाते हैं लेकिन समानता की बात तो दूर, यह आधी आबादी आज तक अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित है और इन्हें पाने के लिए आवाज खुद उसे ही उठानी होगी।
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समय के साथ-साथ या यूँ कह लें कि समय ने जब से साथ दिया तब से 'महिला' ये शब्द विवशता, भेदभाव और अत्याचार जैसी कई लड़ाइयाँ लड़ते हुए इतिहास और भविष्य कि उस पंक्ति में आ खड़ा हुआ है जहाँ से सिर्फ सफलता, गौरव और ऊँचाई की इबारत लिखी जा सकती
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भाषा|
सोमवार,मार्च 8, 2010
महिला आरक्षण विधेयक के बारे में हिन्दी की वरिष्ठ लेखिकाओं का मानना है कि यह विधेयक स्त्रियों का वाजिब हक है और इसमें वर्ग विभेद की बात कर रोड़े अटकाना पुरूषों का वर्चस्व कायम रखने की साजिश है।
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उनका विश्वास और आत्मविश्वास देखकर सचमुच अच्छे अर्थों में मुझे उनसे ईर्ष्या होती है-अपनी ही बेटियों से ईर्ष्या! और जो लड़कियाँ मध्य वर्ग की नहीं है, उनसे नीचे पायदान पर हैं, वे इतनी आगे अगर नहीं हैं तो बहुत पीछे भी नहीं है। वे भी संभल-संभलकर दृढ़ता ...
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अर्द्ध-नारीश्वर का फ़लसफ़ा इस बात की तस़दीक है कि दुनिया का पहला शायर सिर्फ़ मर्द नहीं था, औरत भी थी। ईसा से दो-ढाई हजार साल पहले या चार हजार साल पहले ऋग्वेद की रचना हुई और उसमें रोमिशा, लोपामुद्रा, इंद्राणी, सूर्या, सावित्री- यानी सत्ताईस ...
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माला सेन एक नारीवादी लेखिका हैं, जो वर्षों से लंदन में रहते हुए भी भारतीय समाज व नारी के प्रति गहरा सरोकार रखती आई हैं। 1991 में फूलनदेवी पर 'बैंडिट क्वीन' उपन्यास लिखकर वे रातो-रात चर्चा में आई थीं। वे विभिन्न सामाजिक आंदोलनों से न केवल जुड़ी रहीं, ...
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एक पढ़ी-लिखी हिन्दुस्तानी औरत की त्रासदी यह है कि अपनी निजी जिंदगी का एक महत्वपूर्ण और सुनहरा हिस्सा वह अपना घर सुचारु रूप से चलाने में, पति की रुचि और पसंद के अनुसार अपने-आपको ढालने में और अपने बच्चों की पढ़ाई तथा उनके भविष्य की चिंता में होम कर देती ...
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पुरुष प्रधान समाज में नैतिकता की सारी नसीहतें महिलाओं के लिए ही हैं। पुरुष तो जैसे दूध का धुला है। पुरुष चाहे कितना ही दुश्चरित्र हो पर उँगली सदैव महिला के चरित्र पर ही उठेगी। बलात्कार की घटनाओं में भी पीड़िता के प्रति लोगों की सहानुभूति नहीं होती ...
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WD|
गुरुवार,मार्च 4, 2010
महिलाओं के बदले हुए रूप को अगर आजादी का नाम दिया जा रहा है तो इसके भी कुछ अपने ही तर्क हैं। इनमें सबसे पहले आती है महिलाओं की विकसित होती तर्क-क्षमता। दो दशक पहले की तुलना में आज की महिलाएँ शिक्षा के प्रति कहीं ज्यादा जागरूक हैं।
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गुरुवार,मार्च 4, 2010
इसमें कोई दो राय नहीं कि पिछले दो दशकों में हिन्दुस्तान की आधी दुनिया यानी स्त्रियों ने आँधी-तूफान की भाँति तरक्की करके समाज में अपनी एक अलग पहचान बना ली है व हर क्षेत्र में स्वयं को साबित कर रही हैं। आज की शहरी युवा महिला पढ़ी-लिखी है, करियर ...
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WD|
गुरुवार,मार्च 4, 2010
चंद महिलाओं की उपलब्धियों पर पीठ थपथपाता भारत इस सत्य को स्वीकार करेगा कि भारतीय महिलाएँ न केवल दफ्तर में भेदभाव का शिकार होती हैं, बल्कि इसके साथ ही साथ कई बार उन्हें यौन शोषण का भी शिकार होना पड़ता है। देश में महिलाओं को न तो काम के बेहतर अवसर ...
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