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Written By ND

शादी का बंधन है जरूरी

वामा
- मीरा राय

ND
पच्चीस वर्षीय रागिनी के घर में पिछले 2-3 हफ्तों से शादी का हल्ला-गुल्ला चल रहा था। न...न... ये हल्ला-गुल्ला शादी के रस्मों-रिवाज, मेहमानों की चिल्ल-पौं और खुशियों की धमाचौकड़ी से नहीं उपजा है। असल में तो पिछले दिनों रागिनी के माता-पिता उसकी शादी के लिए एक रिश्ते लाने की गुस्ताखी (!) कर बैठे। गुस्ताखी इसलिए क्योंकि रागिनी को शादी के बंधन में बँधने से इंकार है। उसे लगता है कि इसकी कोई जरूरत नहीं। क्या आप भी ऐसा ही कुछ सोचते हैं?

रागिनी ने इस पर न सिर्फ घर में वबाल मचाया बल्कि अपने पापा से यह भी कह दिया कि यदि आज के बाद मेरे लिए कोई रिश्ते लेकर आए तो मैं घर छोड़कर चली जाऊँगी। उसकी इन बातों ने उसके पिता को बुरी तरह झकझोर दिया। वे डर गए कि कहीं उनकी बेटी शादी के दबाव के चलते कोई गलत कदम न उठा ले। अंततः उन्होंने तय किया कि अब उसके लिए कोई नया रिश्ता नहीं देखेंगे।

वहीं पिछले दिनों जब रागिनी अपनी एक सहेली की बहन की शादी में गई तो वहाँ पाया कि नया जोड़ा और कई अन्य शादीशुदा जोड़े पूरी तन्मयता से विवाह की रस्में एन्ज्वॉय कर रहे थे। यही नहीं कुछ रस्में तो बड़ी ही दिल छू लेने वाली थीं और कई अविवाहित युवक-युवतियाँ भी मनोयोग से उन्हें देख-सुन रहे थे।

इसके कुछ ही दिनों बाद रागिनी का अपनी बचपन की सहेली रेशमी के घर जाना हुआ। उसने वहाँ देखा कि किस तरह रेशमी का पति देवेश उसकी छोटी-छोटी चीजों का ध्यान रखता है। वह अपने से ज्यादा रेशमी की फिक्र करता है। इन सभी बातों के कारण अंततः रागिनी के मन में भी शादी करने की भावना जागने लगी।

रागिनी ही नहीं बल्कि ज्यादातर लड़कियाँ जो 20 साल के पड़ाव से गुजर रही होती हैं, शादी से दूर भागती हैं। दरअसल कहने का मतलब यह है कि जमाना बदल चुका है, सोच-विचार में खुलापन आया है, लिव-इन-रिलेशनशिप तक को अर्ध कानूनी मान्यता मिल चुकी है। इन सबके बावजूद शादी आज भी हमारी जरूरत है।

ND
अच्छी बात यह है कि इस दौर में भी शादी के मायने हमारे लिए नहीं बदले हैं। हम यह भलीभाँति जानते हैं कि हमें हर मोड़ पर किसी विशेष व्यक्ति की जरूरत होती है जो हमारी बातों को हमारी आँखों से समझ जाए। कोई ऐसा हो जो हमें हमसे बेहतर जानता हो, हमारे लिए जीता हो। शादी हमारी भावनाओं को भी एक खास मुकाम देती है।

अक्सर देखा जाता है कि 30 या 35 साल की उम्र के बाद जो पुरुष या महिला अकेले होते हैं, उन्हें अकेलापन कचोटता है। वे अपनी तन्हाइयों से घिरे होते हैं। नतीजतन आम लोगों की तुलना में ये ज्यादा कठोर हो जाते हैं।

समाजशास्त्रियों का मानना है कि ताउम्र अकेले रहना कोई आसान काम नहीं है। अकेले में न हमारी भावनात्मक जरूरतें पूरी हो पाती हैं, न ही हम अपने दिल की बात किसी से शेयर कर पाते हैं। फिर समाज ऐसी महिलाओं क्या पुरुषों तक को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता।

वजह चाहे जो भी हो महिला हो या पुरुष दोनों के लिए ही जीवनसाथी की बेहद जरूरत होती है। जिंदगी जीने के लिए हमारे पास एक साथी का होना बहुत जरूरी है। सिर्फ इसलिए नहीं कि हमें समाज का हिस्सा बनना है बल्कि इसलिए भी क्योंकि यह हमारी मानसिक जरूरत है वरना हम जिंदगी के हर मोड़ पर खुद को अकेला पाते हैं और इसकी पूर्ति कोई अन्य शख्स नहीं कर सकता।

सो, जिंदगी चाहे कितनी ही तेजी से आगे क्यों न बढ़ रही हो, समय हमारे लिए जीवनसाथी की कमी को कभी पूरा नहीं कर सकता। अतः शादी आज भी हमारे लिए उतनी ही अहम है जितनी कि पुराने जमाने में हुआ करती थी।