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Written By WD

रियलिटी शोज़ : कितना सच, कितना झूठ ?

रियलिटी शो
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टीवी और रियलिटी शो आजकल एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं। ऐसा कोई भी टीवी चैनल नहीं है जिसमें कोई न कोई रियलिटी शो न आ रहा हो। मुद्दा यह है कि रियलिटी शोज़ के नाम पर सच दिखाने वाले इन कार्यक्रमों में असल में कितना सच और कितना झूठ (बुना हुआ) शामिल रहता है यह किसी को भी पता नहीं।

अधिकांश दर्शक इनके भावनात्मक ड्रामे और सनसनीखेज रोमांच की पकड़ में आ ही जाते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या वाकई दर्शक इतने बुद्धिहीन हैं कि वे रियलिटी शो के सच और झूठ को समझ नहीं पाते? आइए जानें युवा क्या कहते हैं इस बारे में।

आईटी के क्षेत्र में काम करने वाली दिव्या सामड़ कहती हैं- 'आज जितने भी रियलिटी शो दिखाए जा रहे हैं उनके पीछे शुद्ध व्यावसायिकता छुपी हुई है। हालाँकि मैं रियलिटी शो बहुत कम देखती हूँ लेकिन मुझे यही लगता है कि इनमें बहुत कम सच्चाई होती है।

मुझे लगता है कि अधिकांश लोग भी रियलिटी शो इसलिए देखते हैं कि इनमें उन्हें सामान्य, एकरसता वाले सीरियल्स से हटकर कुछ देखने को मिल जाता है। ऐसा नहीं है कि रियालिटी शो अच्छे या सच्चे नहीं हो सकते लेकिन अगर ऐसा हुआ तो इनमें से व्यावसायिकता को हटाना पड़ेगा, जो संभव नहीं है। हालाँकि मेरा यह भी मानना है कि कुछ रियलिटी शो प्रतिभाओं को मंच भी उपलब्ध करवाते हैं लेकिन फिर वही व्यावसायिकता आड़े आ जाती है और असल उद्देश्य कहीं खो जाता है।'

'देखा जाए तो साठ प्रतिशत से भी ज्यादा झूठ ही रियलिटी शो की बुनियाद होता है। कई बार तो आम दर्शक इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते कि जो वो देख रहे हैं असल में वैसा कुछ है ही नहीं। फिर इसे भी रोमांच तथा सनसनी का तड़का लगाकर दिखाया जाता है। कुछ मिलाकर मामला पैसे कमाने का ही होता है।' -कहती हैं आईटी क्षेत्र से ही जुड़ी पूजा लालन।

पूजा मानती हैं कि वर्तमान में दिखाए जा रहे कई रियलिटी शोज का नकारात्मक असर समाज पर पड़ रहा है। खासतौर पर बच्चे इससे बहुत बुरी तरह प्रभावित हैं। गाने और डांस के कई रियलिटी शो ऐसे हैं जो बच्चों के नाम पर भावनाओं, रोमांच और दिखावे का ताना-बाना बुनते हैं और बच्चों को इस्तेमाल करते हैं।

इससे भी बुरी बात यह है कि आम माता-पिता अपने बच्चों को भी उस रियलिटी शो में भाग ले रहे बच्चे जैसा बनाने पर तुल जाते हैं। इसी तरह इन कार्यक्रमों में किए जाने वाले एसएमएस का फंडा भी मुझे तो अविश्वसनीय तथा कल्पनात्मक लगता है। जरूरी है कि लोग अब इनकी असलियत समझ जाएँ।