गुरुवार, 14 नवंबर 2024
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  4. A Group of women for social service Takshashila

तक्षशिला महिला स्व सहायता समूह : समाज के लिए समर्पित संवेदनशील महिलाओं का सशक्त संगठन

तक्षशिला महिला स्व सहायता समूह  : समाज के लिए समर्पित संवेदनशील महिलाओं का सशक्त संगठन - A Group of women for social service Takshashila
स्वयं से समाज की तरफ बढ़ते सशक्त कदम 
 
मुश्किलों से मुस्कान की मंजिल हासिल करती समाज की सजग महिलाएं 
 
किसी मदद करने के लिए धन से ज्यादा मन की आवश्यकता होती है। मजबूत इरादों और संवेदनशील दिल की जरूरत होती है। तक्षशिला महिला स्व सहायता समूह समाज के लिए समर्पित सशक्त महिलाओं का एक ऐसा संगठन है जो तिनका तिनका उम्मीदों से शुरू हुआ था और आज यह नीड़ अपने सशक्त स्वरूप में हमारे सामने है। समाज के वंचितों का सुकोमल सहारा बने इस समूह ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के सशक्तिकरण से अपना पहला कदम समाजसेवा की दिशा में रखा....आज समूह की गतिविधियां हर दिन एक नए विचार, नई सोच और नए संकल्प के साथ आगे बढ़ रही है... चाहे मजदूरों के बच्चों के सूखे चेहरे पर शिक्षा की मुस्कान सजाना हो या फिर गरीब बच्चों को उनकी जरूरत के साथ रूचि की सामग्री जैसे टिफिन बॉक्स, बॉटल, जूते-मोजे और ड्रेस आदि उपलब्ध करवाना हो.... चाहे आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को समुचित रोजगारोन्मुख प्रशिक्षण देना हो चाहे उन्हें उनके ही दायरे में रहकर छोटी छोटी चीजों में हुनरमंद बनाना हो, यह संगठन अपनी पूरी लगन और समर्पण भाव से मदद के तत्पर दिखाई देता है। वास्तव में महिलाएं थोड़ी भी फुरसत और क्षमता का उपयोग अगर रचनात्मकता के साथ समाज के लिए करना चाहे तो तक्षशिला महिला स्व सहायता समूह जैसे संगठन आकार लेते हैं। जहां वे अपने नहीं बल्कि दूसरों की आंखों में सजे सपने साकार करते हैं।

सपने कहने को तो बहुत बहुत सरल हैं लेकिन उनके लिए पूरा करना कठिन हैं, उनके रास्ते कठोर हैं। संगठन का एक लक्ष्य यह भी था कि महिलाएं अपने को न भूलें, अपने को भी पहचानें, अपने मन की खुशी के लिए भी कुछ करें, कुछ ऐसा जिसकी उपयोगिता समाज के लिए भी हो और खुद के व्यक्तित्व निर्माण और विकास में भी सहायक हो... मन की संवेदनशीलता भी बनी रहे और समाज में सशक्त भागीदारिता भी दर्ज हो...  

तक्षशिला महिला स्व सहायता समूह कैसे अपनी सामाजिक गतिविधियों को अंजाम देता है। किस तरह अपना कोमल हाथ खुरदूरे हाथों की तरफ बढ़ाता है और कैसे उनकी आंखों में चमकीले सपने रोपता है, खुशियों के जुगनू कैसे उनके आंचल में बिखेर देता है, आइए जानते हैं... 
 
तक्षशिला समूह की स्थापना के बारे में संस्थापक माया कौल बताती हैं कि कुछ मुस्कराहटें मुश्किलों और अभावों के जंगल मे गुम हो रहीं थीं। कुछ मुरझाए अधखिले फूल यूं ही झड़ रहे थे, इन्हीं गुम होती मुस्कराहटों को जीवन देने, मुरझाए फूलों को शाख पर खिलखिलाने का अवसर देने के लिए बना निस्वार्थ प्रेममयी सखियों से 'तक्षशिला समूह'। 
 
 4 जून 2019 को गठित तक्षशिला समूह की स्थापना का मुख्य ध्येय था-स्वयं को पहचानना,मजबूत करना और आगे बढ़ना, अपने सपनों में, कल्पना में,साहस, लगन में हमेशा प्रेम, उम्मीद, आत्मविश्वास जिंदा रखना... और अपने साथ उनके लिए भी स्वयं को प्रस्तुत करना जो अपने छोटे छोटे दायरों में बड़े बड़े संघर्षों से जुझ रहे हैं।       


संस्थापक माया कौल के साथ इस समूह के अन्य संस्थापक सदस्य हैं    
2.पुष्पा शुक्ला 
3.प्रीति सिसोदिया
4.सुलोचना शर्मा
5.मंजुला अत्रे
6.ऊषा छाबड़िया
7.रमा तिवारी
8.विजय ओझा
9.विमल मिसिर
10.उपमा कौल
11.कविता चौधरी
12.शशि कोरी
13.पुष्पलता सोलंकी

पहली मीटिंग में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं ने भाग लिया, तब उन्होंने जीवन के कुछ अद्भुत नए सुख के मोहक पल संजोए। पहली बार किसी होटल में प्रवेश से लेकर आवभगत का सुख, खुद का पहचान पत्र, मनोरंजक खेल, स्टेज परफॉर्मेंस, रेंपवाक पुरस्कार, सम्मान साड़ियां सब कुछ उनके लिए नया था, रोमांचित और अचंभित करने वाला था... 
 
समूह की प्रारंभिक गतिविधि में धार जिले में आंगनवाड़ियों को सजाने और महिलाओं के प्रशिक्षण के माध्यम से उनको रोजगार देने की पहल की। महिलाओं को पेपरमेशी से चीजें बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। जो भी चीजें बनी उनकी बिक्री में समूह की सदस्य शशि कोरी ने सहयोग दिया।  इस तरह हमने शुरुआत की... धीरे धीरे समाज के प्रति और खुद के प्रति जिम्मेदारियों को महसूसते हुए यह नदी बह निकली और अब हम उस क्षेत्र में कार्य करने को प्रतिबद्ध है जिन पर कोई विचार नहीं करता.... 
 
बात सिर्फ वंचितों और मजबूरों की हीं नहीं है बात पूरे समाज की सोच और विचारधारा से भी निपटने की है। हमने अपने आसपास देखा कि पति के देहांत के बाद महिलाए शुभ और शगुन के कार्यों से दूर कर दी जाती हैं... यहां तक कि सुहागनों को समर्पित हमारे व्रत त्योहार भी पति को खो चुकी महिलाओं से अजीब और उपेक्षित व्यवहार करते हैं... हम क्यों किसी की खुशी छीन लेते है बेवजह ही.... जबकि पतिविहीन स्त्रियों को साथ और खुशी देने की ज्यादा जरुरत है। हमने पहली बार करवा चौथ मनाई उन सदस्यों के साथ जो अपने जीवनसाथी को खो चुकी हैं...मन में यही ख्याल आया कि क्यों वे मुस्कुरा नहीं सकती,क्यों वे सजधज नहीं कर सकती, क्यों वे शुभ कार्यों में शामिल नहीं हो सकती? आखिर क्यों वे सिर्फ विधवा होने का दंश झेलते हुए अपनी सारी खुशियों को ग्रहण लगा लेती हैं...मैं विधवा के बेचारेपन और मनहूसियत को खत्म कर देना चाहती हूं... 
 
तक्षशिला महिला स्व सहायता समूह की सदस्य अपने व्यक्तित्व निर्माण के लिए भी सजग है और अपने आसपास की महिलाओं को मजबूत करने के लिए भी प्रतिबद्ध हैं... 
 
तक्षशिला महिला स्व सहायता समूह बच्चों की एक नए तरह से शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करना चाह रही है। जिसमें रटने की जगह बच्चे "देखो करो फिर लिखो योजना के अंतर्गत मनोरंजक ढंग से पढ़ाई कर सकेंगे। इस हेतु समूह के पास पूरी योजना तैयार है। 
 
समूह की विभिन्न संथाओं के सहयोग से एक कैंप लगाने की योजना है जिसमें उन्हें दैनिक और सामाजिक जीवन से जुड़ी काम की बातें बताई जाए। विभिन्न कार्ड जैसे पेन कार्ड, समग्र कार्ड, आयुष्मान कार्ड आदि कैसे आसानी से बनाए जा सकते हैं और इनका क्या उपयोग है।

बड़ी बात यह है कि सिर्फ जरूरत और अपेक्षाओं पर ही समूह का ध्यान केंद्रित नहीं है बल्कि मनोरंजन, खेल, प्रतियोगिता,लेखन, तीज, त्योहार, दिवस उत्सव और सैरसपाटे के लिए भी प्रोत्साहित किया जाता है। विभिन्न अवसरों पर विशेषज्ञ और अधिकारी वर्ग को भी आमंत्रित किया जाता है। समूह ने एक पत्रिका भी निकाली है- महकता मन कलम की गिरफ्त में' इसमें उन महिलाओं के संस्मरण है जिन्होंने कभी नहीं लिखा...

मजदूरों के बच्चों के लिए आकर्षक प्रतियोगिता भी रखी जाती है और साथ ही उनके बौद्धिक विकास के लिए अन्य दर्शनीय स्थल घुमाया भी जाता है। सामाजिक सुरक्षा के मद्देनजर आदिवासी इलाकों में गुड टच बेड टच के बारे में समझाने के भी अभियान चलाए गए हैं। 
 
तक्षशिला महिला स्व सहायता समूह एक पहल है, एक कदम है, एक बूंद है, एक संकल्प है, एक किरण है.... 
 
प्रेरणा के ये चमकते दीप, समाज के प्रकाश पुंज अपनी सोच, सेवा और संकल्प की रोशनी से ना जाने कितने लोगों के जीवन की अमावस को दीपोत्सव में बदल रहे हैं।

संस्थापक माया कौल कहती हैं- मेरे चारों तरफ दीपशिखाएं हैं लोग भ्रमित रहते हैं कि मैं चमक रही हूं....

सही मायनों में निस्वार्थ भाव से समाज में कार्यरत इन समूहों का नूर ही है जो चमकाता है वंचितों के चेहरों को वरना कौन देखता इनको अंधेरों में....एक सलाम इनकी सार्थक सोच और समर्पित सेवा के नाम...