राम और श्याम दोनो जुड़वाँ भाई थे और प्री-यूनिवर्सिटी और ग्रेजुएशन में मेरे छात्र भी थे। ये दोनों ही वहाँ से एमसीए कर रहे थे।
जिसका मतलब यह हुआ की उनको पढ़ाते हुए अब मुझे 7 साल हो चुके थे और इन 7 सालों में मैं इन दोनों को और इनके परिवार से भलीभाँति परिचित हो गई थी। दूसरे जुड़वाँ बच्चों की तरह ही राम और श्याम हमेशा एक दूसरे के साथ ही रहते थे।
अपना होमवर्क, लैब और क्लास के नोट्स भी एक दूसरे से बाँटा करते थे। कभी-कभी तो वे दोनों बिलकुल एक जैसे दिखते थे और उनमें अंतर कर पाना मेरे लिए मुश्किल हो जाता था। मैं उन दोनों के साथ बहुत मजाक किया करती थी।
मैं उनसे कहती थी कि 'तुम लोग कुछ ऐसा पहना करो जिससे यह पता चले की राम कौन है और श्याम कौन? जब तुम दोनों की शादी हो जाएगी तब क्या होगा? तुम दोनों को जुड़वाँ लड़कियों से ही शादी कर लेनी चाहिए फिर जो मजा और उलझन होगी उसमें मजा आएगा।
मैंने उन दोनों की शादी में जाकर उन दोनों नवविवाहित जोड़ों को आशीष दिया। मैंने सोचा कि उन दोनों के माता-पिता के लिए यह सबसे अच्छा लम्हा होगा क्योंकि अगर दोनों ही जुड़वाँ बहनों से शादी करेंगे तो जीवन में आगे चलकर दोनों में कोई मतभेद नहीं होंगे।
अपनी एमसीए की डिग्री पूरी होने के बाद उन दोनों ने एक सॉफ्टवेयर कंपनी में नौकरी शुरू कर दी। उनके पिता एक उद्योगपति हैं और माँ एक विद्यालय की प्राचार्या।
वे दोनों एक संपन्न परिवार के थे और उनका घर भी काफी बड़ा था और उनका एक फार्म हाउस भी था।
एक दिन वे दोनों ही मुझे अपने विवाह का न्योता देने आए और मजे की बात यह थी कि वे दोनों जुड़वाँ बहनों से शादी कर रहे थे।
मैंने एक बार फिर मजाक में कहा कि 'ऐसा लगता है कि तुम्हारे जीवन की कहानी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट की तरह है। वैसे तुमने जुड़वाँ बहनें ढूँढी कैसे? उनके नाम क्या हैं?
'मैडम, जब हमने शादी करने का निर्णय लिया तो हमने जुड़वाँ बहनों को ढूँढना शुरू किया क्योंकि हमने सोचा कि सिर्फ दो जुड़वाँ बहनें ही हमारी आपसी समझ और दोस्ती को समझ पाएँगी। उनके नाम स्मिता और सविता हैं। आपको हमारी शादी में जरूर आना होगा। आखिर जुड़वाँ लड़कियों से शादी करने का सुझाव आपका ही तो था।'
मैंने उन दोनों की शादी में जाकर उन दोनों नवविवाहित जोड़ों को आशीष दिया। मैंने सोचा कि उन दोनों के माता-पिता के लिए यह सबसे अच्छा लम्हा होगा क्योंकि अगर दोनों ही जुड़वाँ बहनों से शादी करेंगे तो जीवन में आगे चलकर दोनों में कोई मतभेद नहीं होंगे।
बहुत महीनों बाद उनकी माँ का मेरे पास फोन आया और उन्होंने मुझे उनके घर आने को कहा। उनकी आवाज में जो चिन्ता थी वह मैंने महसूस कर ली थी। मैं समझ गई थी की कोई न कोई परेशानी जरूर थी और उसी हफ्ते के आखिर में उनके घर गई यह जानने कि आखिर बात क्या है?
मैं उस घर के सामने खड़ी हुई थी। अब वहाँ एक की जगह दो दरवाजे थे। वहाँ स्थित गार्डन भी अब दो भागों में विभाजित हो चुका था। मैंने यह सोचा कि मेरे पास उनके घर का गलत पता है या फिर वे लोग कहीं और शिफ्ट हो गए हैं लेकिन राम की माँ ने मुझे देखा और मुझे अंदर बुलाया।
मैंने जैसे ही घर में प्रवेश किया मुझे कुछ अजीब लगा। पूरे घर को बड़े ही अजीब तरीके से दो भागों में बाँट दिया गया था। बैठक वाला कमरा अब पहले से छोटा लग रहा था, बेडरूम पहले से बड़े लग रहे थे और रसोई घर को भी अजीब तरीके से दो भागों में किया हुआ था। पूरे घर में एक दीवार खड़ी कर दी गई थी जो हॉल से लेकर रसोई तक फैली हुई थी।
पूरे घर में शांति पसरी हुई थी। मैंने उनकी माँ से पूछा कि ' क्या हुआ? आपने यहाँ यह दीवार क्यों बनवाई है? तब उन्होंने मुझे अपनी दुखभरी कहानी सुनाई।
ND
ND
'राम और श्याम में मतभेद हो गया और उन दोनों ने अलग होने का फैसला कर लिया था इसलिए यह दीवार बनवानी पड़ी।
आप इतना आश्चर्य क्यों कर रही हैं, लोग जब बड़े हो जाते हैं तो उनका स्वभाव बदल जाता है।'
मैंने कहा कि 'भाइयों में अक्सर इस तरह के मतभेद उनके जीवनसाथी की वजह से होते हैं लेकिन यहाँ तो यह दोनों ही बहने हैं, तो फिर इस तरह के मतभेद क्यों?'
हम भी यही सोचते थे जब इन दोनों की शादी हुई थी। कुछ समय तक सभी चीजें ठीक रहीं लेकिन जब इनके पिताजी रिटायर हुए तो हमने सारी प्रॉपर्टी दोनों में एक समान बाँटने के बारे में सोचा और यहीं से सारी परेशानी शुरू हुई।
दोनों ही भाइयों को एक ही घर और फार्म हाउस चाहिए था। इस समस्या का कोई और हल नहीं था। दोनों ही अपनी बात पर अड़े हुए थे और ऐसे में इस दीवार को बनाने के अलावा कोई समाधान नहीं था।'
एक पुरानी कहावत है जो कई बार सच हो जाती है 'पैसा एक ऐसी चीज है जो जोड़ने से ज्यादा तोड़ने का काम करता है।' मतभेद प्रॉपर्टी की वजह से था।
एक पुरानी कहावत है जो कई बार सच हो जाती है 'पैसा एक ऐसी चीज है जो जोड़ने से ज्यादा तोड़ने का काम करता है।' मतभेद प्रॉपर्टी की वजह से था।
उनकी माँ चाहती थी कि मैं उनकी अध्यापक होने के नाते उनसे बात करूँ और उन्हें समझाऊँ। लेकिन मैं जानती थी कि आर्थिक मतभेद एक ऐसा मतभेद है जिसमें उनके कॉलेज की अध्यापिका शायद ही कुछ बदल पाए।
लेकिन फिर भी मैंने एक कोशिश की और उनसे कहा कि ' तुम दोनों ही जन्म से पहले भी एक ही जगह में रहा करते थे, तुम दोनों ने अपनी माँ की कोख में एक साथ रहकर जन्म लिया है।
इस घर में तुम्हारा पालन पोषण एक साथ ही हुआ है, तुमने सारे दुख और खुशियाँ साथ मिलकर देखी हैं। तुम दोनों ने दो जुड़वाँ बहनों से शादी की ताकि वो तुम दोनों के बीच के प्यार और मित्रता को समझ पाएँ। तुम दोनों को समझना चाहिए कि कभी-कभी जीवनकाल में अपने प्रियजनों के साथ रहने के लिए समझौते करना महत्वपूर्ण हो जाता है।'
मेरे सवालों का उन दोनों के पास कोई जवाब नहीं था, मैं जानती थी कि मैं दो ऐसे लोगों से बात कर रही हूँ जो मेरे कहे हुए शब्दों को सुन भी नहीं रहे हैं। मैं अपनी नाकाम कोशिश के बाद घर के लिए चल पड़ी। मैंने रात के खाने के लिए एक पुराने दोस्त को बुलाया था लेकिन घर पहुँचते-पहुँचते मुझे बहुत देर हो गई थी।
मैं उसे बहुत समय से जानती थी और वह मेरा सहकर्मी था। मुझे देर से आते देख उसने मुझसे कहा कि 'समय से आना एक अध्यापक की पहचान होती है-सिर्फ कक्षा में ही नहीं, हर जगह।'
मैंने उसकी इस बात से सहमति जताई और माफी भी माँगी। 'मुझे माफ कर दीजिए। लेकिन अब हम किस रेस्टॉरेन्ट में जा रहे हैं?' उनकी पत्नी मुस्कुराईं और बोलीं 'हम यहाँ से 30 किलोमीटर दूर एक गाँव में जा रहे हैं।'
'क्या वह कोई फार्महाउस है?' मेरे इस सवाल पर उनका जवाब था, 'नहीं, हमारे पास कोई फार्म हाउस नहीं है। हम एक किसान के घर खाने पर जा रहे हैं।'
ND
ND
मैं इस बात को समझ नहीं पाई, चुपचाप उनकी कार में जाकर बैठ गई। मेरा दोस्त पहले हमें बाजार ले गया। वहाँ से हमने कुछ मिठाईयाँ और फल खरीदे। उसकी पत्नी ने कुछ कपड़े खरीदे। उत्सुकता से मैंने पूछा कि आखिर हम जा कहाँ रहे हैं?
इस पर उसने जवाब दिया कि 'मेरे भाई के घर। वह हमसे बहुत समय से उसके घर आने के लिए कह रहा था।
मुझे विश्वास है कि आपको वहाँ अच्छा लगेगा।' जहाँ तक मुझे पता था, उसका कोई भाई नहीं था। वह अपने माता-पिता की इकलौती संतान था।
मैंने उससे पूछा कि ' तुम्हारा भाई अचानक कहाँ से आ गया? क्या वह तुम्हारा चचेरा भाई है? या फिर हिन्दी फिल्मों की तरह तुम्हारा कोई बिछड़ा हुआ भाई मिल गया है?
मेरे पिताजी मेरे लिए बहुत चिंतित थे लेकिन क्या करें, यह उन्हें समझ नहीं आ रहा था। हमारे नौकर की पत्नी सीतक्का उस समय एक मदद के रूप में सामने आईं। उन्होंने भी कुछ समय पहले ही एक शिशु को जन्म दिया था।
उसने एक शरारत भरी हँसी से सारी बात टाल दी। जल्द ही हम बेंगलुरू के बाहर थे और अब कार भी स्पीड में हाईवे पर चल रही थी।
वह एकदम चुप था और मुझे लग रहा था कि शायद मैंने उसकी पर्सनल लाइफ के बारे में बहुत ज्यादा सवाल पूछ लिए थे।
अगर इस समय हम अमेरिका में होते तो शायद वह मुझे चुप रहने के लिए बोल चुका होता। लेकिन यहाँ भारत में हम किसी की जिंदगी के बारे में बिना सोचे ही सवाल पर सवाल पूछ सकते हैं, चाहे वो जवाब देना चाहता हो या नहीं।
अचानक मेरे दोस्त ने बातें करनी चालू कर दीं। जिस गाँव में हम जा रहे हैं वहाँ 55 साल पहले मेरा जन्म हुआ था। मैंने अपनी माँ को खो दिया था जब मैं सिर्फ 10 दिन का था। मेरे पिताजी मेरी माँ से बहुत प्यार करते थे और उनकी मौत के बाद वे पूरी तरह टूट चूके थे।
मुझे गाय के दूध से एलर्जी थी और माँ के नहीं रहने से मेरा हाल बुरा था। मैं पूरा दिन भूख से तड़पते हूए रोता रहता क्योंकि उस समय पाउडर वाला दूध भी नहीं मिलता था। इसी वजह से दिन-प्रतिदिन मैं कमजोर होता जा रहा था और मेरे जीवित रहने की उम्मीद भी खत्म हो रही थी।
मेरे पिताजी मेरे लिए बहुत चिंतित थे लेकिन क्या करें, यह उन्हें समझ नहीं आ रहा था। हमारे नौकर की पत्नी सीतक्का उस समय एक मदद के रूप में सामने आईं। उन्होंने भी कुछ समय पहले ही एक शिशु को जन्म दिया था।
मेरी हालत को देखकर उन्होंने मेरे पिताजी से कहा कि 'अन्ना, क्या मैं मेरे बेटे के साथ इस बच्चे के पोषण का भी ध्यान रख सकती हूँ?' हालाँकि बहुत से रिश्तेदारों ने इसके लिए असहमति जताई लेकिन मेरे पिताजी मान गए।
सीतक्का ने माँ का फर्ज निभाकर मेरी जान बचाई। मैं हमेशा उनको याद करता हूँ और उन्हें एक महान स्त्री मानता हूँ। मैं उनके बेटे हनुम्मा को अपने भाई की तरह मानता हूँ।
मैंने जायदाद के अपने हिस्से में उसे भी भागीदार बनाया है। मेरे रिश्तेदारों ने इस बात का बहुत विरोध किया लेकिन उनके लिए सीतक्का सिर्फ एक नौकर थीं लेकिन मेरे लिए वह एक बड़े दिल वाली, सीधी-सादी स्त्री थीं, जिनकी ममता की कोई सीमा नहीं थी।
'मैं बेंगलुरू में व्यस्त रहता हूँ लेकिन साल में एक बार उनके बेटे से मिलना मैं कभी नहीं भूलता। आखिरकार सीतक्का ने मुझ पर अपना नि:स्वार्थ प्यार बरसाया और इसके बदले किसी चीज की आशा नहीं की। हमने एक ही माँ का प्यार पाया है इसलिए हम दोनों एक दूसरे को भाई मानते हैं।'
जब तक उसकी कहानी खत्म हुई हम उस गाँव में पहुँच चुके थे और मेरे दोस्त ने मुझे हनुम्मा से मिलवाया। पूरे समय मैं उन दोनों के प्यार को देखती रही और राम और श्याम के परिवार के बारें में सोचती रही कि किस तरह किस्मत ने दोनों को अजनबियों की तरह आमने-सामने लाकर खड़ा कर दिया है और यहाँ इन दोनों में सगे भाइयों जैसा प्यार भर दिया है।