Ground Report : मेरठ में अस्पताल से श्मशान तक हाहाकार
अस्पतालों से श्मशान तक हाहाकार, जिधर देखो उधर ही बदहवासी का आलम है। अस्पतालों में क्रंदन है। चीत्कार है। बदहवास लोग सिस्टम के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं। अस्पतालों में रोगियों के लिए बेड नहीं हैं। बरामदे तक भरे हुए हैं। कोई डॉक्टर के पैर पकड़कर गिड़गिड़ा रहा है कि उसके रोगी को इलाज मिल जाए तो कोई जीवनरक्षक दवाओं के लिए मारा-मारा घूम रहा है।
अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं है और तीमारदार ऑक्सीजन की जुगाड़ में इधर से उधर भटक रहे हैं। इसी बीच अस्पतालों में ऑक्सीजन के अभाव में लोगों की दम घुटने से मौतों की खबरें आ रही हैं। व्यवस्था पंगु हो चुकी है, लेकिन मौत के सौदागर कालाबाज़ारी कर ऑक्सीजन से लेकर जीवनरक्षक दवाइयों में मोटा माल काट रहे हैं।
दिल्ली तक के मरीज भर्ती : यह नजारा है दिल्ली के निकट पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े जिले मेरठ का, जिसे मेडिकल हब भी कहा जाता है। देश भर में कोरोना के कहर से हाहाकार की खबरों की तरह ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश भी बदहाल है। दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के जिलों- नोएडा, गाजियाबाद और मेरठ की हालत और ज्यादा खराब है। उसकी वजह है दिल्ली के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों से कोरोना पीड़ित इन तीन जिलों में इलाज के लिए दौड़े चले आ रहे हैं।
मेरठ में दो निजी मेडिकल कॉलेजों के अलावा सरकारी मेडिकल कॉलेज हैं, जबकि निजी क्षेत्र के स्पेशियलिटी हॉस्पिटल्स के अतिरिक्त अनेक नर्सिंग होम और हॉस्पिटल्स हैं। पर कोरोना के कहर और शासकीय नीतियों की वजह से यहां की मेडिकल सुविधाओं को भी लकवा मार गया है।
बेड के लिए लंबी बेटिंग : सरकारी मेडिकल कॉलेज के कोविड अस्पताल में बेड के लिए लंबी वेटिंग है। करीब 300 गंभीर रोगी ऑक्सीजन और वेंटीलेटर बेड के लिए कतार में हैं। यही हाल उन निजी अस्पतालों का भी है, जिन्हें शासन-प्रशासन ने कोविड ट्रीटमेंट के लिए एप्रूवल दिया है।
हालात यह हैं कि मरीज के तीमारदारों के हाथों में रेमडिसिविर इंजेक्शन का प्रिस्क्रिप्शन है, लेकिन यह जीवनरक्षक मानी जाने वाली दवा बाजार से गायब है। लोग दवा के इंतजाम के लिए सिस्टम के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं, जनप्रतिनिधियों के यहां दस्तक दे रहे हैं और असरदार लोगों को फोन कर रिरिया रहे हैं, लेकिन कुछ ही भाग्यशाली हैं जिनको कोरोना उपचार में असरदार दवाएं मिल पा रही हैं।
...और ये मानवता के दुश्मन : इनमें भी दुर्भाग्य यह है कि अस्पताल में रेमडिसिविर की जगह पानी का इंजेक्शन मरीजों को लगाने वाले हत्यारे पनप गए हैं। संवेदनाओं की लाश पर खड़े ऐसे ही आठ लोगों को अभी हाल में ही गिरफ्तार किया है। सुभारती मेडिकल कॉलेज के कोविड वार्ड में कोरोना योद्धा कहे जाने वाले मेडिकल स्टाफ का यह कारनामा समूची मानवीयता को शर्मसार करने वाला है। सुभारती मेडिकल कॉलेज पर लगा यह कलंक समूचे चिकित्सा जगत को शर्मसार करने वाला है।
ऐसा कोई कोविड अस्पताल नहीं जहां ऑक्सीजन खत्म होने और वहां हाहाकार मचने की खबरें न हो। ऐसे कोविड सेंटर या तो मरीजों के तीमारदारों से रोगी अन्यत्र शिफ्ट करने के लिए कह देते हैं या ऑक्सीजन का प्रबंध करने के लिए। हालांकि प्रशासन ने ऑक्सीजन सप्लाई को निरंतर बनाए रखने के लिए कई टीमें गठित की हुई हैं, लेकिन फिर भी दिल दहला देने वाले हादसे हो रहे हैं।
ऑक्सीजन की मारामारी : मेरठ में 26 अप्रैल 2021 को ही ऑक्सीजन खत्म हो जाने के कारण 21 दुर्भाग्यशाली लोगों की मौत हो गई। हालात यह हैं कि मेरठ के कोविड के इलाज की सुविधाओं वाले 29 अस्पतालों में ऑक्सीजन का संकट इतना गहरा गया कि मेरठ के जिलाधिकारी को कुछ समझ में ही नहीं आया। कई अस्पतालों में अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट/अधिकारी खुद गाड़ियों में ऑक्सीजन सिलेंडरों को लेकर पहुंचे।
ऐसा भी नहीं है कि ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट या रिफिलिंग सेंटर बंद पड़े हैं। इन सब में दिन के 20-22 घंटे प्लांट चल रहे हैं। बीती 14 अप्रैल को सभी निजी ऑक्सीजन प्लांट्स का प्रशासन ने अस्थायी अधिग्रहण कर वहां के सभी सिलेंडर अपने कब्जे में ले लिए थे।
ऐसे ही एक ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट के संचालक ने अपनी पहचान को गुप्त रखने के आश्वासन पर हमें बातचीत में बताया कि अकेले उसके प्लांट की क्षमता एक हजार टन ऑक्सीजन बनाने की है, लेकिन अब प्लांट प्रशासन के लीग अपनी निगरानी में प्रतिदिन 22 घंटे चलवा रहे हैं हैं और यही अन्य उत्पादन इकाइयों की हालत है, लेकिन उनकी समझ से बाहर है कि शॉर्टेज क्यों है। अगर इन्ही अस्पतालों में अतिरिक्त बेड भी लगाए गए हैं तो भी ऑक्सीजन का उत्पादन पर्याप्त है।
पहले प्लांट से गाड़ी ऑक्सीजन सिलेंडर सप्लाई करने के लिए सुबह निकलती थी और खाली सिलेंडरों की जगह भरे हुए सिलेंडर वापस रिफिलिंग के लिए ले आती थी, लेकिन आज हालात यह हैं कि मरीजों के तीमारदारों की ऑक्सीजन उत्पादन/वितरण केंद्रों पर लाइन में लगी हुई है और घंटों में नंबर आ रहा है। डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन और आधार कार्ड की कॉपी लेकर प्रशासन के लोग ही ऑक्सीजन वितरित करा रहे हैं।
यह सही है कि कोविड का कहर चरम पर है, लेकिन यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि डिजास्टर मैनेजमेंट के दौरान सिस्टम को लकवा मार गया है। हालात यह हैं कि न तो अस्पतालों में जगह है और न श्मशान में। हर जगह कतारें है, चीत्कार है और इन संबके बीच रोगमुक्त होकर घर जाने वाले भाग्यशाली लोगों की अच्छी खबरें नक्कारखाने में तूती की आवाज़ की तरह दब गई हैं।