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ग़ज़ल
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राहत इन्दौरी------
ख़ुश्क दरियाओं में हल्की सी रवानी और है रेत के नीचे अभी थोड़ा सा पानी और है इक कहानी ख़त्म करके वो बहुत है मुतमइन भूल बैठा है कि आगे इक कहानी और है बोरिए पर बैठिए, कु्ल्हड़ में पानी पीजिएहम क़लन्दर हैं हमारी मेज़बानी और है जो भी मिलता है उसे अपना समझ लेता हूँ मैंएक बीमारी ये मुझमें ख़ानदानी और है