- लाइफ स्टाइल
» - उर्दू साहित्य
» - नई शायरी
कल तो इक सिकन्दर था
-
अज़ीज़ अंसारी कल तो इक सिकन्दर था आज सब सिकन्दर हैंउसके हाथ बाहर थे, इनके हाथ अन्दर हैंवक़्त का सितम देखो, रिशतों का भरम देखो कल जो घर के अन्दर थे, आज घर के बाहर हैंकल थी इनसे ख़ुशहाली, आज इनसे बदहाली ये वही समन्दर थे, ये वही समन्दर हैंयारी दुश्मनी से हम, जूझते रहे पैहमअब हमारे हाथों में, फूल हैं न पत्थर हैं इनमें अपने बापू की, हैं नसीहतें पिनहाँतीन मशवरे इनमें, वरना तीन बन्दर हैंकल भी राज था अपना, आज भी हुकूमत हैकल भी हम क़लन्दर थे, आज भी क़लन्दर हैंफिर भी चोट लगती है, फिर भी दर्द होता हैहाथ में ज़माने के, तीर हैं न ख़ंजर हैं बस यही हक़ीक़त है, आज मैं ये समझा हूँआप ही करम फ़रमा, आप ही सितमगर हैं
अजीब हाल है------------------
तेरे ख़्याल, तेरी अंजुमन की बातें हैंअजीब हाल है, दीवानापन की बातें हैंकरें वो प्यार तो, वो उनका इश्क़ केहलाएकरूँ मैं प्यार तो, आवारापन की बातें हैंफ़लक के चाँद की, दिलकश किरन की बात नहींग़ज़ल में गाँव की, चंचल किरन की बातें हैंयहाँ गुलाब है, नरगिस है, सर्व ओ सुम्बुल है ये गुल्सिताँ की नहीं, गुलबदन की बातें हैंइसी अदा पे तो हम, जाँ निसार करते हैंअज़ीज़ तुझमें सभी बाँकपन की बातें हैं