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Written By WD

कल तो इक सिकन्दर था

कल तो इक सिकन्दर था -
- अज़ीअंसार

Aziz AnsariWD
कल तो इक सिकन्दर था आज सब सिकन्दर हैं
उसके हाथ बाहर थे, इनके हाथ अन्दर हैं

वक़्त का सितम देखो, रिशतों का भरम देखो
कल जो घर के अन्दर थे, आज घर के बाहर हैं

कल थी इनसे ख़ुशहाली, आज इनसे बदहाली
ये वही समन्दर थे, ये वही समन्दर हैं

यारी दुश्मनी से हम, जूझते रहे पैहम
अब हमारे हाथों में, फूल हैं न पत्थर हैं

इनमें अपने बापू की, हैं नसीहतें पिनहाँ
तीन मशवरे इनमें, वरना तीन बन्दर हैं

कल भी राज था अपना, आज भी हुकूमत है
कल भी हम क़लन्दर थे, आज भी क़लन्दर हैं

फिर भी चोट लगती है, फिर भी दर्द होता है
हाथ में ज़माने के, तीर हैं न ख़ंजर हैं

बस यही हक़ीक़त है, आज मैं ये समझा हूँ
आप ही करम फ़रमा, आप ही सितमगर हैं

अजीब हाल है
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ND

तेरे ख़्याल, तेरी अंजुमन की बातें हैं
अजीब हाल है, दीवानापन की बातें हैं

करें वो प्यार तो, वो उनका इश्क़ केहलाए
करूँ मैं प्यार तो, आवारापन की बातें हैं

फ़लक के चाँद की, दिलकश किरन की बात नहीं
ग़ज़ल में गाँव की, चंचल किरन की बातें हैं

यहाँ गुलाब है, नरगिस है, सर्व ओ सुम्बुल है
ये गुल्सिताँ की नहीं, गुलबदन की बातें हैं

इसी अदा पे तो हम, जाँ निसार करते हैं
अज़ीज़ तुझमें सभी बाँकपन की बातें हैं