ख्वाजा मीर दर्द(1720-1784) की ग़ज़लें
ख्वाजा मीर दर्दअर्ज़ ओ समाँ कहाँ तेरी वुसअत को पा सकेमेरा ही दिल है वो कि जहाँ तू समाँ सकेवेहदत में तेरी हर्फ़ दुई का न आ सकेआईना क्या मजाल तिझे मुंह दिखा सकेमैं वो फ़तादा हूँ कि बग़ैर अज़ फ़ना मुझेनक़्श ए क़दम की तरहा न कोई उठा सके क़ासिद नहीं ये काम तेरा अपनी राह ले उस का प्याम दिल के सिवा कौन ला सके ग़ाफ़िल खुदा की याद पे मत भूल ज़ीन्हार अपने तईं भुला से अगर तू भुला सकेयारब ये क्या तिलिस्म है इद्राक ओ फ़ेहम याँ दोड़े हज़ार,आप से बाहर न जा सके गो बहस करके बात बिठाई प क्या हुसूल दिल स उठा ग़िलाफ़ अगर तू उठा सके इतफ़ा ए नार ए इश्क़ न हो आब ए अश्क से ये आग वो नहीं जिसे पानी बुझा सकेमस्त ए शराब ए इश्क़ वो बेखुद है जिस को हश्र ऎ दर्द चाहे लाए बखुद पर न ला सके