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अज़ीज़ अंसारी की ग़ज़ल
झूठ का लेकर सहारा जो उबर जाऊँगा मौत आने से नहीं शर्म से मर जाऊँगासख़्त जाँ हो गया तूफानों से टकराने परलोग समझते थे कि तिनकों सा बिखर जाऊँगाहै यक़ीं लौट के आऊँगा मैं फ़तेह बनकर सर हथेली पे लिए अपना जिधर जाऊँगासिर्फ़ ज़र्रा हूँ अगर देखिए मेरी जानिबसारी दुनिया में मगर रोशनी कर जाऊँगा कुछ निशानात हैं राहों में तो जारी है सफ़रये निशानात न होंगे तो किधर जाऊँगा जब तलक मुझमें रवानी है तो दरिया हूँ 'अज़ीज़'मैं समंदर में जो उतरूँगा तो मर जाऊँगा