शनिवार, 21 दिसंबर 2024
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Written By अजीज अंसारी

फ़ाज़िल अंसारी के अशआर

फ़ाज़िल अंसारी के अशआर -
Aziz AnsariWD
* ये भी दुरुस्त है के नशेमन में बर्क़ थी
ये भी ग़लत नहीं के नशेमन में कुछ न था

* आया था अपने गाँव से दामन में लेके फूल
जाता हूँ दिल में ज़ख़्म लिए तेरे शहर से

* क्या दोस्तो बताऊँ तुम्हें अपने दिल का हाल
गुज़रे तो होगे तुम किसी वीरान शहर से

* मेरे सर को बेसबब ज़ख़्मी किया ऐसा नहीं
आज पत्थर ने दिया है मेरी ठोकर का जवाब

* सोचता हूँ मैं के फ़ाज़िल फूल के होते हुए
लोग पत्थर ही से क्यों देते हैं पत्थर का जवाब

* शरारे बन के दामन ज़िन्दगी का फूँक देते हैं
वो अश्क-ए-तर के जो आँखों से फ़ाज़िल बेह नहीं सकते

* मुबारक दिल को ग़म जैसा मुसाफ़िर
मुबारक ग़म को दिल जैसा ठिकाना

* इतना न अपनी क़िस्मत-ए-रोशन पे नाज़ कर
चढ़ता है आफ़ताब तो ढलता ज़रूर है

Aziz AnsariWD
* ख़ुदा का शुक्र है फ़ाज़िल के ज़िन्दगी अपनी
ग़मों के साथ बहुत ख़ुशगवार गुज़री है

* वही चारों तरफ़ अब भी अंधेरों का तसल्लुत है
बड़ा अरमान था फाज़िल हमें सूरज निकलने का

* हासिल न होगा साँप से कुछ ज़हर के सिवा
फ़ाज़िल न रख उमीद-ए-वफ़ा बेवफ़ाओं से

* इस बार-ए-गिराँ का है उठाना बहुत आसाँ
ग़म है किसी कमज़र्फ़ का एहसाँ तो नहीं है

* फ़ाज़िल बहुत से अच्छे सुख़नवर भी हैं यहाँ
है तू ही एक शाइर-ए-बुरहानपुर क्या?

* लावे की तरह अश्क न किस दिन रवाँ हुआ
ख़ामोश कब हयात का आतिश फ़िशाँ हुआ

* ग़म-ए-हस्ती, ग़म-ए-जानाँ, ग़म-ए-दुनिया, ग़म-ए-दौराँ
मिटा कर मुझको फ़ाज़िल इन सितमगारों ने क्या पाया

* हमलाज़न मुझ पे हुआ है मौज की शम्शीर लिए
आज दरिया भी मेरे ख़ून का प्यासा निकला

* लब पे आहें हैं आँख में आँसू
आँधियों में चिराग़ जलता है

* कोई देखे तो फ़ाज़िल क़ाबिलियत बाग़बानों की
वहाँ काँटे ही काँटे हैं जहाँ गुलज़ार होना था