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फ़ाज़िल अंसारी के अशआर
* ये भी दुरुस्त है के नशेमन में बर्क़ थीये भी ग़लत नहीं के नशेमन में कुछ न था * आया था अपने गाँव से दामन में लेके फूल जाता हूँ दिल में ज़ख़्म लिए तेरे शहर से* क्या दोस्तो बताऊँ तुम्हें अपने दिल का हाल गुज़रे तो होगे तुम किसी वीरान शहर से * मेरे सर को बेसबब ज़ख़्मी किया ऐसा नहीं आज पत्थर ने दिया है मेरी ठोकर का जवाब * सोचता हूँ मैं के फ़ाज़िल फूल के होते हुए लोग पत्थर ही से क्यों देते हैं पत्थर का जवाब * शरारे बन के दामन ज़िन्दगी का फूँक देते हैं वो अश्क-ए-तर के जो आँखों से फ़ाज़िल बेह नहीं सकते * मुबारक दिल को ग़म जैसा मुसाफ़िर मुबारक ग़म को दिल जैसा ठिकाना * इतना न अपनी क़िस्मत-ए-रोशन पे नाज़ कर चढ़ता है आफ़ताब तो ढलता ज़रूर है
* ख़ुदा का शुक्र है फ़ाज़िल के ज़िन्दगी अपनी ग़मों के साथ बहुत ख़ुशगवार गुज़री है * वही चारों तरफ़ अब भी अंधेरों का तसल्लुत है बड़ा अरमान था फाज़िल हमें सूरज निकलने का * हासिल न होगा साँप से कुछ ज़हर के सिवा फ़ाज़िल न रख उमीद-ए-वफ़ा बेवफ़ाओं से * इस बार-ए-गिराँ का है उठाना बहुत आसाँ ग़म है किसी कमज़र्फ़ का एहसाँ तो नहीं है* फ़ाज़िल बहुत से अच्छे सुख़नवर भी हैं यहाँ है तू ही एक शाइर-ए-बुरहानपुर क्या? * लावे की तरह अश्क न किस दिन रवाँ हुआ ख़ामोश कब हयात का आतिश फ़िशाँ हुआ * ग़म-ए-हस्ती, ग़म-ए-जानाँ, ग़म-ए-दुनिया, ग़म-ए-दौराँ मिटा कर मुझको फ़ाज़िल इन सितमगारों ने क्या पाया * हमलाज़न मुझ पे हुआ है मौज की शम्शीर लिए आज दरिया भी मेरे ख़ून का प्यासा निकला * लब पे आहें हैं आँख में आँसू आँधियों में चिराग़ जलता है * कोई देखे तो फ़ाज़िल क़ाबिलियत बाग़बानों की वहाँ काँटे ही काँटे हैं जहाँ गुलज़ार होना था