हर शख़्स मेरा साथ निभा नहीं सकता
उसको रुखसत तो किया था, मुझे मालूम न था, सारा घर ले गया, घर छोड़ के जानेवाला - निदा फ़ाज़लीतुम्हारा प्यार तो साँसों में साँस लेता हैजो होता नश्शा, तो इक दिन उतर नहीं जाता'
वसीम' उसकी तड़प है, तो उसके पास चलोकभी कुआँ किसी प्यासे के घर नहीं जातावो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके सेमैं ऐतबार न करता तो और क्या करता - वसीम बरेलवीक्या दुख है समंदर को बता भी नहीं सकताआँसू की तरह आँख में आ भी नहीं सकतावैसे तो एक आँसू बहाकर मुझे ले जाएऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकतातू छोड़ रहा है तो ख़ता इसमें तेरी क्याहर शख़्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता“कौनसी बात, कब और कहाँ कहनी चाहिएये सलीक़ा आता हो तो हर बात सुनी जाएगी“पूछना है तो ग़ज़ल वालों से पूछो जाकर कैसे हर बात सलीक़े से कही जाती है