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Written By WD

हर शख़्स मेरा साथ निभा नहीं सकता

उर्दू साहित्य शेर हमारी पसंद
उसको रुखसत तो किया था, मुझे मालूम न था,
सारा घर ले गया, घर छोड़ के जानेवाला - निदा फ़ाज़ली

तुम्हारा प्यार तो साँसों में साँस लेता है
जो होता नश्शा, तो इक दिन उतर नहीं जात

'वसीम' उसकी तड़प है, तो उसके पास चलो
कभी कुआँ किसी प्यासे के घर नहीं जाता

वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से
मैं ऐतबार न करता तो और क्या करता - वसीम बरेलवी

क्या दुख है समंदर को बता भी नहीं सकता
आँसू की तरह आँख में आ भी नहीं सकता

वैसे तो एक आँसू बहाकर मुझे ले जाए
ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता

तू छोड़ रहा है तो ख़ता इसमें तेरी क्या
हर शख़्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता

“कौनसी बात, कब और कहाँ कहनी चाहिए
ये सलीक़ा आता हो तो हर बात सुनी जाएगी“

पूछना है तो ग़ज़ल वालों से पूछो जाकर
कैसे हर बात सलीक़े से कही जाती है