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सलासी : अज़ीज़ अंसारी
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अज़ीज़ अंसारी1.
मालिक ए दो जहान है मौलामुझ पे भी इक नज़र करम की होसब पे तू मेहराबान है मौला2.
खुदपरस्ती में चूर रेहता है दुख्र्तर ए ज़र का बन के दीवानासब से वो दूर-दूर रहता है3.
बेहद ओ बेशुमार लिखता हैमुझसे से मिलता नहीं कभी लेकिन प्यार ही प्यार ख्रत में लिखता हैकैसे आएगा ऐतबार मुझेवो जो मिलता नहीं कभी मुझसेप्यार लिखता है बार-बार मुझेप्यारी प्यारी शिकायतें उसकीमैं ज़माने को भूल सकता हूँ कैसे भूलूँ इनायतें उसकीबात अन्दर जनाब से कीजेख्रुद पे रखिए निगाह दुश्मन कीप्यार भी अपने आप से कीजेकैसे समझाऊँ अपने साथी कोचार पैसे क्या मिल गए उसकोभूल बैठा वो अपने माज़ी कोउसका बरताव ताजिराना थाफिर भी उससे निबाह की मैंनेमेरा असलूब शायराना था ताज़ा तेहरीर भी भेजी होतीइक करम और भी किया होताअपनी तस्वीर भी भेजी होती