* 'दहर' में हम 'वफ़ा शआरों' को-------दुनिया, सचाई का साथ देने वाले दोस्ती के भरम ने मार दिया दुश्मनों से तो बच गए लेकिन दोस्तों के 'करम' ने मार दिया
* दर्द मन्दों की सर्द आहों से मुख्तलिफ़ मुख्तलिफ़ निगाहों से दोस्ती का फ़रेब खाया है आप जैसे ही 'खैरख्वाहों' से-------शुभचिंतकों
* 'सालहा साल' की तलाश के बाद----------कई साल ज़िन्दगी के चमन से छांटे हैं ` आप को चाहिए तो पेश करूँ मेरे दामन में चन्द काँटे हैं
* मैंने हर ग़म खुशी में ढाला है मेरा हर इक चलन निराला है लोग जिन 'हादिसों' से मरते हैं-- -------दुर्घटनाओं मुझ को उन हादिसों ने पाला है
* ज़िन्दगी अपने आईने में तुझे अपना चहरा नज़र नहीं आता ज़ुल्म करना तो तेरी आदत है ज़ुल्म सहना मगर नहीं भाता
* तूने तो जिस्म ही को बेचा है एक 'फ़ाक़े' को टालने के लिए----------भूक लोग 'यज़दाँ' ओ बेच देते हैं--------खुदा अपना मतलब निकालने के लिए
* हर 'हसीं काफ़िराँ' के माथे पर---------बहुत सुन्दर अपनी रहमत का ताज रखता है तू भी 'परवरदिगार' मेरी तरह----------ईश्वर आशिक़ाना 'मिज़ाज' रखता है----------तबीयत