कबूतर (भाग-1) : कौसर सिद्दीक़ी
कौसर सिद्दीक़ी की नज़्में
कबूतर तुम बहुत भोले हो एहदे नौ में भी जीना नहीं सीखाअभी तक बेवक़ूफ़ों की तरह रोज़न में राख के चार तिनके मस्त रहते हो तुम्हारे अंडों बच्चों पर झपटती रहती हैं चीलें मगर अपनी हिफ़ाज़त करना सीखा ही नहीं तुमने ग़ुटरग़ूं करते रहनाऔर पुजारी अम्न का बनकरख़मोशी से सितम सहनाअगर चीलों के हमले हों अलामत अम्न की बनाया कर सरे तसलीम ख़म करनाये भोलापन नहीं है बेवक़ूफ़ी हैकबूतर --2--कबूतर तुम बहुत भोले हो तुमको अब तलक जीना नहीं आयाजहाँ को देखते हो तुम तमाशाई निगाहों सेख़बर कुछ भी नहीं है अपने गर्दोपेश की तुमको तुम्हारे हर तरफ़ हैं मकडि़यों के मकर के जालेजहाँ कुछ तेज़ दाँतों वाली ज़ालिम मकडि़याँ मिलकर तुम्हारा ख़ून पीती हैंये मंज़र देखते रहते हो तुम लेकिन तुम्हारा हिस नहीं बेदार हो पातातुम इन जालों के ताने-बाने मिलकर तोड़ सकते हो नहीं है तुमको अपनी क़ुव्व्ते बाज़ू का अंदाज़ाकबूतर तुम बहुत भोले सही लेकिन ये भोलापन नहीं हैबेवक़ूफ़ी है
कबूतर--तीन---कबूतर तुम बहुत भोले होअब तक तुमको चालाकी नहीं आईन जीने का हुनर सीखाहज़ारों साल पहले एहदे हज़रत नूह में तूफ़ान आया थासफ़ीने से तुम्हें भेजा गया थाताके तूफ़ाँ की ख़बर लाओइसी इक बात से ये नुक्ता वाज़े है के तुमको बेवक़ूफ़ों का लक़ब हम दे नहीं सकते यक़ीनन तुम हो दानिशवरख़ुदा ने तुमको बख्शी है परो बाज़ू की मज़बूती नज़र में रखते हो तुम दूर के मंज़र मगर इस एहद में भी आज तक तुमको तशद्दुद का निशाना बनाया के जी लेना गवारा है मगर सोचोअहिंसावादी बनकर भी तुम्हारे हाथ क्या आयाअहिंसावाद की तसबीह पढ़-पढ़कर जहाँ हिंसा से तुम परहेज़ करते हो वहाँ पर आदमी ही आदमी को नोचे खाता है अहिंसावाद का परचम उठानावो भी कलजुग मेंये भोलापन नहीं हैबेवक़ूफ़ी है