उत्तरप्रदेश में चुनावी पारा अब पूरे उफान पर पहुंच चुका है। सियासी दलों ने विधानसभा चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों के नामों का एलान करना शुरु कर दिया है। कोरोना के चलते चुनाव आयोग की पाबंदियों के बाद भले ही बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियां थम गई हो लेकिन राजनीतिक दलों को चर्चा बनी हुई है। उत्तर प्रदेश के वर्तमान सियासत के नेरेटिव को अगर देखा जाए तो सबसे अधिक चर्चा भाजपा और समाजवादी पार्टी की हो रही है। मौजूदा समय का चुनावी नेरेटिव बता रहा है कि मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा में होने जा रहा है। जबकि 2017 में प्रदेश में वोटों के लिहाज से दूसरे नंबर (सपा से अधिक वोट हासिल) पर रहने वाली मायावती की पार्टी बहुजन समाज पार्टी सियासी परिदृष्य पर चर्चा से गायब है।
एक तरह भाजपा और सपा के नेताओं ने अपनी पूरी ताकत चुनाव में झोंक दी है और दोनों ही पार्टियों के प्रमुख नेता अब तक सैकड़ों रैलियां कर चुके है। वहीं दूसरे ओर बहुजन समाजपार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्षम मायावती चुनाव एलान होने के दो महीने पहले आखिरी रैली लखनऊ में पार्टी के संस्थापक काशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर 9 अक्टूबर 2021 को की थी। इसके पहले मायावती सितंबर में एक रैली में नजर आई थी। इसके साथ मायावती ने एलान कर दिया है कि वह विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेगी और न ही उनके सिपाहसालार और पार्टी में नंबर दो हैसियत रखने वाले सतीश चंद्र मिश्रा चुनाव लड़ेंगे।
अकेले चुनावी मैदान में मायावाती की पार्टी-उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव जहां सपा और भाजपा का पूरा जोर गठबंधन की राजनीति पर है तब गठबंधन को लेकर गर्माई प्रदेश की सियासत में मायावती की बहुजन समाज पार्टी अकेले चुनावी मैदान में है। मायावती कई बार साफ कर चुकी है कि उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी और किसी भी बड़े या छोटे दल से गठबंधन नहीं लड़ेगी।
जातिगत राजनीति को साधने वाला चुनावी जीत का गणित- देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तरप्रदेश जो अपनी जातिगत राजनीति के लिए देश भऱ में पहचाना जाता है, उस राज्य में मायावती की पूरी चुनावी बिसात जातिगत वोटों के साधने पर टिकी हुई है। उत्तर प्रदेश में 21 फीसदी दलित वोट बैंक को मायावती अपनी पार्टी का सबसे बड़ा जानाधार मानती है। इसके साथ मायावती की नजर 17 फीसदी मुस्लिम वोटरों और 12 फीसदी वाली ब्राह्मण वोट बैंक पर टिकी हुई है। विधानसभा चुनाव में बसपा के सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले को अपनाने का सबसे बड़ा कारण यहीं वोट बैंक का गणित है।
अगर जातीय समीकरण की बात करें तो कुल वोट बैंक में 21 फीसदी वोटर दलित, 12 फीसदी ब्राह्मण और 17 फीसदी मुस्लिम है। 2007 के विनिंग सोशल इंजनियिरिंग फॉर्मूले के आधार पर मायावती इस बार फिर 100 के करीब ब्राह्मण चेहरों को चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रही है और अपना टिकट पक्का मानकर उम्मीदवारों ने अपनी पूरी ताकत भी लगा दी है।
विधानसभा चुनाव में मायावती की नजर अपने कोर वोटर दलित के साथ भाजपा से नाराज चल रहे ब्राह्मण वोटरों पर है। दरअसल मायावती की पार्टी बसपा का अकेले चुनाव लड़ने का एलान एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। 2007 में जिस ब्राह्मण और दलित गठजोड़ के विनिंग फॉर्मूले ने मायावती को मुख्यमंत्री बनाया था पार्टी इस बार भी उसी रणनीति पर काम कर रही है।
2007 में बसपा ने 86 विधानसभा सीटों पर ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे थे और इसमें करीब आधे 41 जीतकर विधानसभा पहुंचे थे और इसके बल पर बसपा ने 206 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई थी। मायावती अगर इन दोनों वोट बैंक को एकजुट रखने में सफल हुई तो वह सत्ता का वनवास खत्म कर लोकभवन (मुख्यमंत्री कार्यालय) की सीढ़ियां चढ़ सकती है।
उत्तर प्रदेश में सत्ता का वनवास खत्म करने के लिए बसपा 15 साल बाद एक बार 2007 के फॉर्मूले पर चलते हुए सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपना रही है। बसपा का सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला है दलित+बाह्मण वोटर। फॉर्मूले को अमल में लाते हुए बसपा ने ब्राह्मण वोट बैंक को साधने के लिए बसपा ने कोरोनाकाल में ही अयोध्या में अपना पहला प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन किया था।
जातिगत वोटरों को साधता चुनावी प्लान- उत्तर प्रदेश में सत्ता का वनवास खत्म करने के लिए बसपा 15 साल बाद एक बार 2007 के फॉर्मूले पर चलते हुए सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला अपनाते हुए चुनावी मैदान में है। बसपा के सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूला है दलित+बाह्मण वोटरों को साधने के लिए पार्टी ने पूरे प्रदेश में प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन किया। वहीं पार्टी प्रदेश सभी 18 मंडलों में रिजर्व सीटों पर चुनावी जनसभाएं भी की।
दरअसल मायावती ने अपने पूरे चुनावी प्लान को तैयार करते वक्त प्रदेश के 86 रिजर्व सीटों पर खासा फोकस किया है। बसपा ने मिशन 2022 में को दो भागों में बांटते हुए 'प्रबुद्ध विचार संगोष्ठियां और दूसरे चरण में मंडल स्तर पर जनसभाएं करने का प्लान तैयार किया। मायावती अपने ब्राह्म्ण और दलित के रिजर्व सीटों पर मुस्लिम समाज के उन नेताओं को टिकट देने की तैयारी में है जिनकी क्षेत्र में अच्छी पकड़ है।
सपा की काट के लिए मिशन क्लीन इमेज-बताया जा रहा है कि मायावती शनिवार (15 जनवरी) को अपने जन्मदिन पर जब उम्मीदवारों के नामों की सूची जारी कर अपनी चुनावी रणनीति को खुलासा करेगी। मायावती इस पर साफ सुथरी छवि वाले नेताओं को टिकट देने पर फोकस कर ही है। असल में पिछले दिनों ही बीएसपी चीफ मायावती ने साफ किया था कि वह चुनाव में साफ छवि के नेताओं को टिकट देगी।
मायावती ने साफ सुथरी राजनीति का संदेश देने के लिए बाहुबली विधायक और माफिया डॉन मुख्तार अंसारी का टिकट काटा था. बीएसपी चीफ ने मुख्तार अंसारी की जगह पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर को टिकट दिया है। वहीं मायावती ने सेक्टर प्रभारियों को निर्देश दिए थे कि आपराधिक इतिहास रखने वाले किसी भी व्यक्ति को टिकट की सिफारिश न की जाए। इसके साथ ही बीएसपी ने टिकट पाने वाले प्रत्याशियों से एक शपथ पत्र लेने का भी ऐलान किया था। जिसमे प्रत्याशी अपने ऊपर चल रहे मामलों की जानकारी पार्टी को देगा।