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Last Modified: सोमवार, 9 अगस्त 2021 (11:56 IST)

टोक्यो में दिख गया भारतीय खेलों का भविष्य, 3 साल बाद पेरिस ओलंपिक में 10 मेडल जीतने पर होगी नजर

टोक्यो में दिख गया भारतीय खेलों का भविष्य, 3 साल बाद पेरिस ओलंपिक में 10 मेडल जीतने पर होगी नजर - Tokyo Olympics gives hope for Indian Contingent
नई दिल्ली: भारत को रविवार को समाप्त हुए टोक्यो ओलम्पिक से भविष्य की उम्मीद मिली है कि वह आगे चलकर और अच्छा प्रदर्शन कर सकता है। भारत ने इन खेलों में 127 सदस्यों का अपना अब तक का सबसे बड़ा दल उतारा था लेकिन इस दल ने एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य सहित कुल सात पदक जीतकर ओलम्पिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर डाला। भारत ने इस प्रदर्शन से 2012 के लंदन ओलम्पिक में दो रजत और चार कांस्य सहित छह पदक जीतने के अपने पिछले सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को पीछे छोड़ दिया।
 
कोरोना महामारी के कारण एक साल के लिए स्थगित हुए टोक्यो 2020 भारतीय खेलों में नया इतिहास बना गए। क्रिकेट को धर्म समझने वाले देश भारत का टोक्यो ओलम्पिक में पदक जीतने के लिए हमेशा संघर्ष रहा है। वर्ष 1996 के अटलांटा ओलम्पिक में टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस के एकमात्र कांस्य पदक, 2000 के सिडनी ओलम्पिक में भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी के कांस्य पदक और निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठोड के 2004 के एथेंस ओलम्पिक में जीते गए एकमात्र रजत पदक तक भारत के लिए ओलम्पिक में कुछ नहीं बदला था।
 
बीजिंग में 2008 में भारत ने एक स्वर्ण सहित तीन पदक और 2012 में लंदन में छह पदक जीतकर इतिहास को कुछ बदलने की कोशिश की लेकिन 2016 में रियो में भारतीय गाड़ी एक रजत और एक कांस्य सहित दो पदकों पर आकर अटक गयी। लेकिन टोक्यो में नया इतिहास रचा गया। भारत ने कुल सात पदक जीते और भाला फेंक एथलीट नीरज चोपड़ा ने समापन समारोह से एक दिन पहले स्वर्णिम थ्रो के साथ भारतीय एथलेटिक्स को नया मुकाम पर पहुंचा दिया।
 
भारत ने टोक्यो में भारोत्तोलन में रजत से शुरुआत की और मुक्केबाजी, बैडमिंटन, हॉकी, कुश्ती में पदक जीतने से लेकर एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक तक पहुंचे। भवानी देवी ने तलवारबाजी में अपना पदार्पण किया जबकि फवाद मिर्जा ने घुड़सवारी में अपनी छाप छोड़ी जबकि महिला गोल्फर अदिति अशोक महिला गोल्फ में कांस्य पदक जीतने से चूक गयीं।
 
बैडमिंटन में पीवी सिंधू फाइनल में जाने से चूकीं लेकिन उन्होंने कांस्य पदक जीतकर लगातार दो ओलम्पिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनाने का इतिहास रचा। मीराबाई चानू ने भारोत्तोलन में रजत जीतने का इतिहास बनाया जबकि लवलीना बोर्गोहैन ने मुक्केबाजी में सेमीफाइनल में पहुंचकर कांस्य जीतने के साथ एमसी मैरीकॉम के इतिहास को दोहराया।
भारत को कुश्ती में काफी उम्मीदें थीं और रवि कुमार दहिया ने फाइनल में पहुंचकर रजत जीता जबकि बजरंग पूनिया ने कांस्य पदक जीतकर 2012 के लंदन ओलम्पिक की तरह भारत को कुश्ती में दो पदक दिलाये। लंदन में सुशील कुमार ने रजत और योगेश्वर दत्त ने कांस्य पदक जीता था।
 
टोक्यो ओलम्पिक भारतीय हॉकी की किस्मत को बदलने वाले साबित हुए। आठ स्वर्ण, एक रजत और तीन कांस्य पदक जीतने वाला भारत 1980 के बाद से पिछले 41 वर्षों में एक अदद पदक की तलाश में था और वर्षों की उसकी इस खोज को पुरुष हॉकी टीम ने जर्मनी को कांस्य पदक मुकाबले में 5-4 से हराकर पूरा किया। महिला हॉकी टीम बेशक चौथे स्थान पर रही लेकिन उसने सबका दिल जीत लिया। महिला टीम क्वार्टरफाइनल में ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम को 1-0 से हराकर 1972 के बाद से पहली बार सेमीफाइनल में पहुंची। महिला टीम कांस्य पदक मुकाबले में ब्रिटेन से जबरदस्त संघर्ष करने के बावजूद 3-4 से हारकर चौथे स्थान पर रही। यह प्रदर्शन भारतीय हॉकी में नया जीवन फूंकने वाला माना जा रहा है।
 
आखिर जिस पल का भारत को पिछले 100 वर्षों से इन्तजार था वह पल एथलेटिक्स के भाला फेंक मुकाबलों में सामने आया जब नीरज चोपड़ा ने 87.58 मीटर की थ्रो के साथ नया इतिहास रच दिया। नीरज ने अपनी इस कामयाबी को लीजेंड धावक मिल्खा सिंह को समर्पित किया जिनका हाल में निधन हो गया था। मिल्खा चाहते थे कि कोई धावक या धाविका उनके जीते जी ओलम्पिक एथलेटिक्स में पदक जीते। उनकी इस इच्छा को नीरज ने उनके निधन के बाद पूरा किया और वो भी ओलम्पिक में देश का पहला स्वर्ण जीतकर। नीरज की इस स्वर्णिम उपलब्धि पर पूरा भारत गदगद महसूस कर रहा है ।
 
इस प्रदर्शन के बाद यह देखकर अच्छा लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि वह पूरे भारतीय दल को चाय पर आमंत्रित कर उनका धन्यवाद करेंगे। कई राज्यों और औद्योगिक घरानों ने पदक विजेता खिलाड़ियों के लिए बड़े पुरस्कारों की घोषणा की है।
 
भारत ने 2028 के ओलम्पिक में शीर्ष 10 देशों में आने का लक्ष्य रखा है और इस प्रदर्शन के बाद से यह लक्ष्य संभव होता दिखाई दे रहा है। (वार्ता)
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