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छाते के साथ में
उजली मटमैली है
कंधे पर बैग है
वही मंथर वेग है
खाना-पानी संग है
उड़ा हुआ रंग है
अफसर से तंग है
नीति कर्म में जंग है
गांव तो चाहता है
विभाग न चाहता है
बदली की धमकी है सरपंच की घुड़की है
बच्चे कहते हैं
रोक देंगे रस्ते हैं
माएं दुआ देती
बहुएं घूंघट लेती
निवृत्ति में बरस
चार बाकी बस
प्रमोशन न चाहते
ऊंचाई न चाहते
ये जमीन आन की
वे हांके आसमान की शिक्षक आधी सदी
नेकी एक न बदी।