शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. खेल-संसार
  2. »
  3. क्रिकेट
  4. »
  5. समाचार
Written By भाषा

नाम से नहीं काम से भी 'महाराज' रहेंगे गांगुली

नाम से नहीं काम से भी ''महाराज'' रहेंगे गांगुली -
कोई उन्हें ऑफ साइड का भगवान कहता है तो कोई शॉर्ट पिच गेंदों को खेलने की उनकी क्षमता पर सवाल उठाता है। टीम को पिरोकर उसे शिखर के करीब पहुँचाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है तो खिलाड़ियों में गुटबाजी का आरोप भी उन पर लगता रहा है लेकिन यह शख्स यानी सौरव गांगुली प्रत्येक विवाद और आलोचना से आगे बढ़कर हर मोड़ पर खुद को साबित करता रहा।

गांगुली कब संन्यास लेंगे यह सवाल पिछले दो साल से अक्सर उठता रहा है लेकिन अब यह सवाल कभी नहीं पूछा जाएगा। कोलकाता के महाराज ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चार टेस्ट मैचों की श्रृंखला के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह देंगे, जिसमें 16 साल के दौरान उन्होंने कई उपलब्धियाँ हासिल की कई उतार चढ़ाव देखे और कई विवादों से उनका वास्ता पड़ा।

बाएँ हाथ के इस बल्लेबाज को लेकर कई सवाल उठते रहे लेकिन कोई इस बात को नहीं नकार सकता कि वह भारत के सबसे सफल कप्तान हैं भारत को दूसरी टीमों में आतंक पैदा करने वाली टीम उन्होंने बनाया तथा एकदिवसीय क्रिकेट के वह सर्वकालिक महान बल्लेबाजों में हमेशा शामिल रहेंगे।

गांगुली ने अपने करियर में अब तक 109 टेस्ट मैच की 180 पारियों में 41.74 की औसत से 6888 रन बनाए हैं, जिसमें 15 शतक शामिल हैं। इसके अलावा 311 एकदिवसीय मैचों की 300 पारियों में उन्होंने 41.02 की औसत से 11363 रन बनाए हैं जिसमें 22 शतक और 72 अर्धशतक शामिल हैं।

गांगुली को 1992 में ऑस्ट्रेलियाई दौरे पर गई भारतीय टीम में जगह दी गई, जहाँ उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ ब्रिस्बेन में 11 जनवरी को अपना पहला एकदिवसीय मैच खेला लेकिन 12वें बल्लेबाज की भूमिका निभाने से इनकार करने के कारण उन पर हठी होने के आरोप लगे और अगले चार साल तक यह सितारा घरेलू क्रिकेट में खो गया।

महान नेपोलियन ने कभी कहा था असंभव शब्द उनके शब्दकोश में नहीं है और गांगुली ने अपने करियर के हर मोड़ पर इस शब्द को अपने पास नहीं फटकने दिया। गांगुली ने 1993 से 1995 तक रणजी ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन किया तथा 1995-96 में दलीप ट्रॉफी में 171 रन की पारी से इंग्लैंड जाने वाली टीम में जगह बनाई।

उन्होंने लॉर्ड्स में पहला टेस्ट मैच खेला। महान अंपायर डिकी बर्ड जब अपने अंतिम टेस्ट मैच के लिए उतर रहे थे, तब दो दिग्गज बल्लेबाज गांगुली और राहुल द्रविड़ ने टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया। बाद में द्रविड़ ने गांगुली के बारे में कहा था कि ऑफ साइड में पहले भगवान हैं और उसके बाद गांगुली।

गांगुली ने इस मैच में 131 रन बनाए जो लॉर्ड्स में टेस्ट पदार्पण पर अब भी उच्चतम स्कोर है। उन्होंने फिर ट्रेंटब्रिज में 136 रन की लाजवाब पारी खेली।

'दादा' के नाम से भी मशहूर गांगुली इसके बाद भारतीय टीम के नियमित सदस्य बन गए। वह 2005 तक विभिन्न कारणों विशेषकर फिटनेस की वजह से सात टेस्ट मैचों में नहीं खेल पाए। वर्ष 2000 में यदि गांगुली कप्तान बने तो उसी साल आईसीसी ने वनडे में एक ओवर में एक बाउंसर का नियम बनाया।

जिनका मानना है कि गांगुली बाउंसर सही तरीके से नहीं खेल पाते। उनके लिए यह आंकड़ा काफी है कि जब यह नियम था, तब गांगुली ने 45.5 की औसत से रन बनाए जबकि 2001 से 2005 के बीच उनका औसत 34.9 रन रहा।

गांगुली की सबसे बड़ी उपलब्धि हालांकि भारतीय टीम को पिरोकर उसे विजेता बनाना रहा। उन्होंने 49 मैच में कप्तानी की जिसमें 21 में भारत जीता और इसमें भी 12 मैच उसने विदेशी धरती पर जीते।

गांगुली की अगुवाई में भारत ने ऑस्ट्रेलिया और पाकिस्तान को उसकी सरजमीं पर हराया। भारत ने 2001 में जब ऑस्ट्रेलिया को अपनी सरजमीं पर श्रृंखला में हराया था तो गांगुली ही कप्तान थे।

यह भी संयोग है कि गांगुली की सिफारिश पर चैपल को कोच बनाया गया जिनके कारण आखिर में न सिर्फ उनकी कप्तानी छिनी बल्कि वह भारतीय टीम से भी बाहर हुए। 2005 के बाद उनके लिए संघर्ष भरे दिन रहे। उन्हें टीम से अंदर बाहर किया जाता रहा और 2006 में तो उन्हें लगभग दस महीने 'वनवास' में बिताने पड़े।

गांगुली ने 2006 के अंत में ही दक्षिण अफ्रीका में वापसी की और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने 2007 में दस टेस्ट मैचों में 61.44 की औसत से 1106 रन बनाए। इस बीच उन्होंने अपने घरेलू मैदान ईडन गार्डन पर टेस्ट शतक और अपना पहला दोहरा शतक पाकिस्तान के खिलाफ बेंगलूर में 239 रन बनाया।

गांगुली अब नागपुर में उसी वीसीए स्टेडियम में अपना अंतिम मैच खेलेंगे जिसमें चार साल पहले ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ विभिन्न कारणों से वह नहीं खेले थे।