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Last Updated : बुधवार, 7 सितम्बर 2016 (20:27 IST)

पैरालंपिक में सीरिया और ईरान के शरणार्थियों पर निगाहें

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रियो डि जेनेरियो। सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध में अपना एक पैर गंवाने वाले इब्राहिम अल हुसैन ब्राजील में बुधवार से शुरू हुए पैरालंपिक खेलों में दो सदस्‍यीय शरणार्थी दल का हिस्सा हैं और वैश्विक मंच से दुनिया को इस समस्या से अवगत कराने का प्रयास करेंगे।
           
इब्राहिम के लिए यह बड़ा मौका है, जिन्हें अपने देश में चल रहे गृहयुद्ध के कारण अपाहिज होने के बावजूद दुनिया के सर्वश्रेष्ठ पैरा एथलीटों के साथ खेलने का मौका मिला है। सीरिया में तनाव शुरू होने से पहले तैराक रहे इब्राहिम वर्ष 2013 में अपना एक पैर गंवाने के बाद भागकर तुर्की चले गए  थे और उसके बाद यूरोप चले गए थे। फिलहाल उनके पिता ही उनके कोच हैं।
         
हुसैन ने कहा, मेरे दोस्तों ने मुझे सीमा पार मदद की। मैं छड़ी के सहारे चलता था। मैं अब पहला पैरालंपिक स्वर्ण पदक विजेता बनना चाहता हूं। 27 वर्षीय तैराक 50 मीटर और 100 मीटर फ्री स्टाइल तैराकी स्पर्धा में हिस्सा लेंगे।
         
हुसैन के अलावा शाहराद नसाजपोर ईरान के पैरालंपिक एथलीट हैं जो शरणार्थी टीम के दूसरे सदस्य हैं। इससे पहले रियो में हुए ओलंपिक खेलों में भी पहली बार शरणार्थियों की टीम उतारी गई थी। नसाजपोर को सेरेबल पाल्सी की बीमारी है और वे डिस्कस स्पर्धा में हिस्सा लेंगे।
           
रियो में शुरू हुए पैरालंपिक खेलों में 160 से अधिक देशों से 4300 पैराथलीट 22 विभिन्न स्पर्धाओं में हिस्सा ले रहे हैं। इनमें तैराकी, पावर लिफ्टिंग, व्हीलचेयर बास्केटबॉल और सीटिंग बास्केटबॉल शामिल हैं।
 
हुसैन ने रियो वेबसाइट पर दिए अपने साक्षात्कार में बताया कि वर्ष 2013 में जब वह सीरिया में थे तो उनके दोस्त ने उन्हें मदद के लिए बुलाया। इसी दौरान एक रॉकेट सड़क पर आ गिरा, जहां उनके अलावा तीन दोस्त और मौजूद थे, लेकिन इसमें उनका पैर बुरी तरह घायल हो गया।
                    
उन्होंने बताया कि तुर्की में केवल व्हीलचेयर ही मिल सकी, लेकिन दवाइयां और ट्रेनिंग उन्हें नहीं मिली। इसके बाद वह तुर्की छोड़कर यूनान चले गए जहां उन्हें यूनानी अधिकारियों ने ट्रेनिंग दी और पैरालंपिक के लिए तैयार किया। 
 
हालांकि कई पैराथलीटों को यह मौका हासिल नहीं हुआ। उन्होंने कहा सीरीज से कई एथलीट यूरोप गए हैं, जिनमें तैराक, मुक्केबाज और भारोत्तोलक हैं। यदि उन्हें भी मदद मिले तो वह भी ओलंपियन बन सकते थे।
                     
दुनियाभर में चल रहे शरणार्थी संकट में कई देशों से करीब 6.5 करोड़ लोग अपना देश छोड़ने के लिए बाध्य हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शरणार्थी संकट है। (वार्ता)