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खिलाड़ियों के 'दर्द' पर मोदी का मरहम

खिलाड़ियों के 'दर्द' पर मोदी का मरहम - Other Sport News Rio Olympics, Narendra Modi
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2 सितंबर के दिन एक समाचार चैनल को दिए विशेष साक्षात्कार के अंत में एंकर से कहा था कि आप हम जैसे राजनेताओं का इंटव्यू लेते हैं, औरों का भी लीजिये। देश में राजनेताओं से भी और ज्यादा लोग हैं जिनका आपको इंटव्यू करना चाहिए... 
स्पोर्ट्‍समैन की दिनचर्या क्या होती है, ये यह सामान्य लोगों को पता ही नहीं चलता...हमारे खिलाड़ी कितनी मेहनत करते हैं, वे अपनी नींद पर कितना कंट्रोल करते हैं, खाने पर कितने बंधन स्वीकार हैं, कितनी कठोर तपस्या करते हैं। 10-10, 12-12 साल की तपस्या के बाद जाकर एक खिलाड़ी तैयार होता है। आप राजनेताओं के पीछे समय खराब करते हैं, कभी उन खिलाड़ियों की तरफ भी देखें वे कैसी तपस्या करके आगे आते हैं। वो हार भी जाए तो उसकी तपस्या कम नहीं होती, ये देश के नौजवानों को देखना चाहिए। प्रधानमंत्री ने ये भी सुझाव दिया कि आप रियो ओलंपिक में गए भारत के 30 खिलाड़ियों की सूची बनाइए और उनकी पूरी दिनचर्या को दिखाएं।  
दरअसल 75 मिनट के इस साक्षात्कार में सभी सवाल पूरे हो चुके थे और अंत में हल्के-फुल्के अंदाज में मोदी के निजी जीवन के बारे में बातें हो रही थीं। मोदी ने साक्षात्कार का अंत खिलाड़ियों के इंटरव्यू लेने के सुझाव के साथ किया। इंदिरा गांधी के बाद मोदी देश के ऐसे पहले प्रधानमं‍त्री हैं, जो खिलाड़ियों के लिए अपने दिल में सॉफ्ट कॉर्नर रखते हैं। जब भी कोई भारतीय विदेशी जमीन पर परचम लहराकर आता है, उससे वे अपने निवास 7 RCR पर मुलाकात करते हैं, वक्त देते हैं और उनका हौसला बढ़ाते हैं। फिर चाहे वह सानिया मिर्जा हो या फिर साइना नेहवाल... 
 
जब भारत का 118 सदस्यीय दल ओलंपिक में जा रहा था, तब खिलाड़ियों ने मोदी से मुलाकात की थी और मोदी ने उन्हें जीत का मंत्र भी दिया था...ध्यानचंद स्टेडियम में 'रियो रन' हरी झंडी भी दिखाई थी... रियो ओलंपिक के भारतीय दल में से केवल पीवी सिंधु रजत और साक्षी मलिक कांसे का पदक ही जीत पाई लेकिन मोदी ने भारत के निराशाजनक प्रदर्शन पर एक शब्द नहीं कहा, यह भी नहीं कहा कि सवा सौ करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में सिर्फ दो लड़कियां ही जीतकर लौटीं, अलबत्ता उन्होंने निराश खिलाड़ियों की हौसलाअफजाई की। 
 
मोदी प्रदर्शन से चिंतित जरूर थे, लेकिन निराश नहीं...यदि ऐसा नहीं होता तो मोदी की जुबान से यह शब्द नहीं निकलते 'क्या आप जानते हैं कि एक खिलाड़ी कितनी मेहनत और तपस्या करता है? वो अपने जीवन के कई सुनहरे साल खेल पर न्योछावर कर देता है...ठीक ढंग से पूरी नींद भी नहीं ले पाता। 12 साल तक वह मेहनत करता रहता है...देश इन खिलाड़ियों के बारे में जानेगा कि वे कैसे आगे बढ़े...
 
मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले गुजरात के तीन बार मुख्यमंत्री रहे और उससे पहले संघ प्रचारक के रूप में सालों तक उन्होंने संगठन का काम किया...जमीन से जुड़े मोदी आज शीर्ष पर जरूर हैं लेकिन जमीनी दर्द को अच्छी तरह पहचानते हैं। यही कारण है कि वे खिलाड़ियों के संघर्ष, उनके दर्द और पीड़ा को समझते हैं। यही कारण है कि अगले तीन ओलंपिक 2020, 2024 और 2028 के लिए एक 'एक्शन प्लान' तैयार करने का फैसला लिया है ताकि पदक तालिका में भारत भी अपनी सम्मानजनक उपस्थिति दर्ज करवा सके। मोदी ने बाकायदा मंत्रिपरिषद की बैठक में टॉस्क फोर्स बनाने की घोषणा की है। 
 
वाकई यदि ईमानदारी से 'एक्शन प्लान' मूर्त रूप लेता है तो हम आने वाले ओलंपिक खेलों में पदकों की संख्या में इजाफा करेंगे। एक बात जरूर खलती है कि राष्ट्रीय टीवी चैनल टीआरपी की अंधी दौड़ में दिल्ली के पूर्व मंत्री संदीप कुमार के महिला शोषण की अश्लील सीडी पर बहस करते हैं, राजनीतिक गलियारे में इस कांड पर रोटियां सेंकी जाती है लेकिन यही मीडिया प्रधानमंत्री के उस अमूल्य सुझाव पर क्यों नहीं तवज्जो देता, जिसमें वे राजनेताओं का साक्षात्कार लेने के बजाय खिलाड़ियों का साक्षात्कार लेने की बात करते हैं??