ओलिंपिक में भारत न बाँस रहेगा, न बाँसुरी
-
बीजी जोशीएशिया कप में धमाकेदार जीत भी बीजिंग ओलिंपिक खेल-2008 में भारतीय टीम को स्थान आरक्षित नहीं करवा पाई। अगले वर्ष की शुरुआत में भारत को ओलिंपिक पात्रता टूर्नामेंट में अव्वल आने की चुनौती होगी। यहीं नहीं भारत को वर्ष 2010 में अपने ही घर में होने वाले विश्व कप के लिए भी पात्रता टूर्नामेंट में भाग लेना होगा, जो वर्ष 2009 में होगा। खैर, एशिया कप में खिताबी जीत से भारत की एशिया में एक स्थान की तरक्की हुई है। एशियाई चैंपियन दक्षिण कोरिया का शीर्ष स्थान बरकरार है। दोहा एशियाई खेल (2006) के पाँचवें क्रम से एशिया कप विजेता भारत दूसरे स्थान पर आ गया। वह द.कोरिया से 50 अंक पीछे है। चीन को तीसरा, मलेशिया को चौथा, जापान को पाँचवाँ और पाकिस्तान को छठा स्थान है। विश्व रैंकिंग में भारत आठवें स्थान पर है। सातवें स्थान के अर्जेंटीना से भारत सिर्फ 38 अंक पीछे है। चैंपियंस ट्रॉफी की मेजबानी मिलने पर भारत को न्यूनतम 180 अंक मिलेंगे। उस टूर्नामेंट में विजेता को 300 और अंतिम स्थान की टीम को 180 अंक मिलते हैं। चैंपियंस ट्रॉफी खेलने पर भारत विश्व में सातवें स्थान पर आ जाएगा। ऐसी स्थिति में भारत को ओलिंपिक पात्रता टूर्नामेंट के लिए सैंटियागो (चिली, मार्च 08) में आसान समूह मिलेगा। वहाँ उसकी टक्कर इंग्लैंड, फ्रांस, चिली, त्रिनिदाद-टोबैगो, क्यूबा से होगी।
याद रहे कि ओलिंपिक पात्रता टूर्नामेंट में ही विजेता टीम को ओलिंपिक का टिकट मिलेगा। चैंपियंस ट्रॉफी नहीं मिलने पर भारत को ऑकलैंड (न्यूजीलैंड-फरवरी 08) में मेजबान न्यूजीलैंड के अलावा आयरलैंड, मिस्र, बांग्लादेश, इटली से खेलना होगा। नौवें विश्व क्रम की न्यूजीलैंड का उसी की माँद में घुसकर शिकार करने की क्षमता अभी भारतीय टीम में नहीं है। क्योंकि अंपायरिंग भी वहाँ न्यूजीलैंड के पक्ष में होगी। भारत विरोधी ऑस्ट्रेलियन अंपायर टिम पुलमैन वहाँ भारत को खदेड़ देंगे। बहुत मजबूत भारतीय टीम ही धरती से बीजिंग की उड़ान भर सकेगी। सौ फीसदी मजबूत टीम चुनने का भारतीयों का चरित्र नहीं रहा है।वर्ष 1991 के ऑकलैंड ओलिंपिक पात्रता टूर्नामेंट में भारत ने गिरते-पड़ते मंजिल पाई थी, उस टूर्नामेंट में मलेशिया द्वारा बेल्जियम को हराने पर ही भारत को बार्सिलोना ओलिंपिक (1992) का टिकट मिल पाया था। मलेशिया के तत्कालीन ऑस्ट्रेलियन कोच टैरी वॉल्श ने तो मलेशिया को बेल्जियम के खिलाफ हारने को कहा था। ऑस्ट्रेलियन मानते थे कि पता नहीं कौनसा भारतीय ओलिंपिक हॉकी में अपनी विलक्षणता उडेल कर हमें चित कर दें। अतः भारत ओलिंपिक में ही नहीं पहुँचेगा यानी ना बाँस रहेगा, ना बाँसुरी। ऑकलैंड (1991) में मलेशिया के प्रबंधन ने कोच की सलाह को दरकिनार कर अपने नैसर्गिक खेल में बेल्जियम को मात देकर भारत को उपकृत किया था। ऐसी ही अनहोनी सद्भावना इस बार भी ऑकलैंड (न्यूजीलैंड) में खेलने पर भारत की तारणहार बनेगी। ऐसी, शुभेच्छा हम सभी की है। नहीं तो एशिया कप में जीत की खुमारी, वहाँ मिट्टी में मिल जाएगी।