लोग समझते हैं माई लेकिन ये हैं बालकदास महाराज
- आलोक 'अनु'
उज्जैन। सिंहस्थ महापर्व के दौरान कई ऐसे साधु-संत और महात्माओं का आगमन हो रहा है, जिनके अतीत में अगर झांका जाए तो उनके नामांकरण से लेकर उनके बारे में कई रोचक बाते सामने आती है, उसी में शामिल है दिगंबर अखाड़े से जुड़े बालकदासजी महाराज जो जन्म से ही संन्यासी हैं, लेकिन इनकी वेशभूषा देखकर कोई भी धोखा खा जाता है कि यह महिला संन्यासी (माई) हैं या पुरुष संन्यासी।
मंगलनाथ मेला क्षेत्र निर्मोही अखाड़े के महंत परमात्मादासजी महाराज के आश्रम में अचानक एक बाबा दिखाई दिए, जिनके लंबे-लंबे बाल और वेशभूषा देखकर पहले प्रतीत हुआ कि यह कोई महिला संन्यासी (माई) हैं, लेकिन जब परमात्मानंदजी जो कि उनके गुरू भाई है, ने उन्हें गले लगाया तो पता चला कि वे कोई महिला संत (माई) नहीं बल्कि बालकदास जी महाराज हैं, इन्हें देखकर कई लोग धोखा खा जाते हैं, क्योंकि वर्षों से अपने बाल उन्होंने नहीं काटे है।
दिंगबर अखाड़े से जुड़े बालकदासजी महाराज से जब पूछा गया कि आपका नाम बालकदास कैसे रखा गया तो उन्होंने कहा कि मैं जन्म से संन्यासी हूं, कब पैदा हुआ कहां पैदा हुआ, इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है, जब से होश संभाला है, तब से सन्यासियों के बीच में रह रहा हूं और इसलिए मैं भी बचपन से संन्यासी बन गया, यही कारण है कि मुझे लोग बालकदासजी महाराज के नाम से पहचानते हैं।
केवल मोरधन खाते हैं : बालकदास महाराज ने जबसे संन्यास लिया है, तब से उन्होंने अन्न ग्रहण नहीं किया है, वे केवल मोरधन खाते हैं। तपसीजी की छावनी, अयोध्या गुरूद्वारा में रहने वाले बालकदासजी का कहना है कि संत की उम्र नहीं कर्म होता है, वहीं संत के पास धन नहीं साधना होती है। संन्यासी जीवन जीने वाले बालकदास ने आज तक कोई नशा ग्रहण नहीं किया है, जबकि वे जिन साधु-संतों और महात्माओं के बीच रहते हैं, उनमें से अधिकांश कोई न कोई नशा करते हैं, लेकिन सात्विक जीवन को अपना आधार बना चुके बालकदास इन सभी व्यसनों से दूर हैं।
जटाएं तोड़कर ले जाते हैं घर : बालकदासजी महाराज ने बताया कि उनकी लंबी जटाएं उनके भक्त अक्सर हाथ से तोड़कर अपने घर ले जाते हैं। लगभग 14 सालों से उन्होंने अपने बाल नहीं कटवाए हैं, इसलिए उनकी जटाओं की लंबाई लगभग 8 फुट से अधिक है, जिन्हें धोने में लगभग दो घंटे और सुखाने में तीन से चार घंटे लग जाते हैं।