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Written By अनिरुद्ध जोशी
Last Updated : शुक्रवार, 12 जून 2020 (11:49 IST)

Shri Krishna 10 June Episode 39 : मदिरा पिलाकर जब हाथी को छोड़ा गया कृष्ण की ओर

Shri Krishna 10 June Episode 39 : मदिरा पिलाकर जब हाथी को छोड़ा गया कृष्ण की ओर - Shri Krishna on DD National Episode 30
निर्माता और निर्देशक रामानंद सागर के श्रीकृष्णा धारावाहिक के 10 जून के 39वें एपिसोड ( Shree Krishna Episode 30 ) में उधर, कंस को सपना आता है कि वह गधे पर बैठा है और राक्षसों ने उसे मारने के लिए घेर रखा है। तलवार लहराते हुए राक्षस उसे डरा रहे हैं। दो राक्षस उसे खून से नहला देते हैं। फिर वह खुद को सिंहासन पर बैठा हुआ पाता है। एक राक्षस आकर उसकी गर्दन काट देता है। तभी कंस की नींद खुल जाती है। 
 
रामानंद सागर के श्री कृष्णा में जो कहानी नहीं मिलेगी वह स्पेशल पेज पर जाकर पढ़ें...वेबदुनिया श्री कृष्णा
 
 
कंस घबराकर उठता है और दर्पण में खड़ा होकर खुद को देखता है जो उसे दर्पण में उसका चेहरा नजर नहीं आता है। वह घबरा जाता है। उसके सामने अब तक उसने जो ‍जीवन जिया उसकी समृतियां उभर जाती हैं। अंत में उसे भविष्यवाणी की याद आती है जिसमें कहा गया था कि देवकी की आठवीं संतान तेरा वध करेगी।
 
उधर, प्रात: उठकर भगवान कृष्ण सूर्य की उपासना करते हैं। तभी वहां ब्रह्मा सहित सभी देवता प्रकट होकर कहते हैं, हे श्रीकृष्ण अब कंस वध का समय आ गया है। आप दया करके उस पापी को छोड़ न देना अन्यथा वह आपके भक्तों और सभी पर अत्याचार करता रहेगा। श्रीकृष्ण कहते हैं कि हम जो प्रण करते हैं उसे अवश्य पूरा करते हैं। अत: आप चिंतित ना हों और कृपया अपने-अपने धाम पधारें।
 
उधर, कंस की रंगशाला में उत्सव प्रारंभ हो जाता है। बड़े-बड़े योद्धा पधारते हैं। जनता भी अपना-अपना स्थानगृहण कर लेती हैं। रंगशाला के अखाड़े में कंस के चार पहलवान उतरते हैं। सभी उनका तालियों से स्वागत करते हैं।
 
इधर, अक्रूरजी के साथ श्रीकृष्ण और बलराम रंगशाला जाने के लिए निकलते हैं तो रास्ते में सभी उनका फूलों से स्वागत करते हैं। रंगशाला के द्वारा पर चाणूर मदिरापान किया हुआ मदमस्त कुवलयापीड हाथी खड़ा रखता है जिसे वह श्रीकृष्ण के मार्ग पर छुड़वा देता है। महावत उस हाथी को लेकर चल देता है। कुछ दूर जाने के बाद हाथी की चिंघाड़ और चाल से जनता में भगदड़ मच जाती है। उस हाथी को सीधे श्रीकृष्ण की ओर ले जाया जाता है। श्रीकृष्ण उसे देखकर सबकुछ समझ जाते हैं। कई लोगों को कुचलता हुआ वह हाथी श्रीकृष्ण की ओर बढ़ता है। बलराम ये देखकर क्रोधित हो जाते हैं। अक्रूरजी अपनी तलवार निकाल लेते हैं। दूर खड़ा चाणूर ये सब देखता रहता है।
 
वह हाथी जैसे ही श्रीकृष्ण के पास पहुंचने वाला ही रहता है तो अक्रूरजी और बलराम आगे कदम बढ़ते हैं लेकिन श्रीकृष्ण दोनों को रोक देते हैं। फिर श्रीकृष्ण अपना मुकुट निकालकर बलरामजी को देते हैं और‍ फिर उस हाथी की ओर कदम बढ़ाकर उसके दोनों दांत पकड़ लेते हैं। वह हाथी अपने दांत छुड़ाकर फिर से श्रीकृष्ण पर हमला करता है लेकिन श्रीकृष्ण फिर से उसके दोनों दांत पकड़कर उसे हिला देते हैं और पीछे धकेल देते हैं जिसके चलते हाथी पर बैठा महावत ‍नीचे गिर पड़ता है। फिर वह हाथी श्रीकृष्ण को अपनी सूंड में लपेट लेता हैं। श्रीकृष्ण सूंड के माध्यम से उसके सिर पर चढ़कर उसके सिर पर मुक्के से प्रहार करते हैं। फिर वह हाथी श्रीकृष्ण को नीचे पटक देता है तो अक्रूरजी उन्हें संभालने के लिए आगे बढ़ते हैं लेकिन बलरामजी उन्हें रोक देते हैं। 
 
फिर श्रीकृष्ण उस हाथी को सूंड और दांत से पकड़कर उसे हवा में उछाल देते हैं। यह दृश्य देखकर सभी अ‍चंभित होकर आसमान में देखते हैं। हाथी कई गुलाटियां खाता हुआ भूमि पर गिर पड़ता है। यह देखकर चाणूर के होश उड़ जाते हैं और वहां से भाग जाता है। अक्रूरजी और बलरामजी सहित सभी जनता और देवता श्रीकृष्ण को नमस्कार करते हैं। 
 
तभी वहां पर नंदरायजी अपने साथियों के साथ पहुंच जाते हैं और वे कान्हा कान्हा कहते हुए कान्हा को गले लगा लेते हैं और पूछते हैं तुझे कोई चोट तो नहीं आई ना। श्रीकृष्ण कहते हैं नहीं बाबा मुझे कुछ नहीं हुआ। मैंने यशोदा मैया के हाथ का माखन खाया है बाबा। ये हाथी मेरा क्या बिगाड़ सकता था। यह सुनकर नंदबाबा प्रसन्न हो जाते हैं। फिर श्रीकृष्ण गांववालों को देखकर कहते हैं अरे तुम सब भी आ गए? यह सुनकर एक ग्रामीण कहता है हां हमें तोषक ने बताया था कि तुम्हारे प्राण संकट में है तो हम सभी आ गए हैं। अब तुम चिंता न करना हम तुम्हारी रक्षा के लिए हम सब तैयार हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं ये बहुत अच्छा किया। मुझे भी तुम सबकी बड़ी याद आ रही थी। फिर श्रीकृष्ण कहते हैं बाबा मैया कैसी हैं? नंदबाबा कहते हैं कि वह तुझे बहुत याद करती हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं मैं भी उसे बहुत याद करता हूं बाबा। फिर दोनों गले मिलते हैं।
 
उधर, रंगशाला के उत्सव में कंस का स्वागत होता है और वह सिंहासन पर विराजमान हो जाता है। तभी चाणूर आकर बताता है कि महाराज उसने उस कवंलयापीड़ हाथी को मार डाला। यह सुनकर कंस घबराकर कहता है नहीं ये असंभव है। चाणूर कहता है मैंने अपनी आंखों से देखा है महाराज। कंस कहता है अब क्या करें? तब चाणूर कहता है एक जानवर से बचना आसान है परंतु वह हमारे इन वीर योद्धाओं से नहीं बच सकता। एक-एक योद्धा सौ-सौ हाथियों का बल रखता है। यह सुनकर कंस निश्चिंत हो जाता है।
 
फिर रंगशाला में सबसे पहले अक्रूरजी पधारकर कंस को प्रणाम करते हैं। कंस उन्हें आसन पर विराजने का इशारा करता है। अक्रूरजी अपने आसन पर जाकर बैठ जाते हैं। फिर नंदरायजी पधारते हैं और कंस को प्रणाम कहते हैं। तब कंस कहता है आइये गोकुलपति। आने में बहुत देर कर दी? तब नंदरायजी कहते हैं क्षमा चाहता हूं महाराज! यमुना पार करने में विलंब हो गया। तब कंस कहता है जाइये क्षमा किया, परंतु तुम्हारे जिस वीरपुत्र के बहुत चर्चे सुने हैं वह अब तक क्यों नहीं आया? नंदरायजी कहते हैं वह अपने ग्वाल सखाओं की टोली के साथ पीछे-पीछे ही आ रहा है महाराज। यह सुनकर कंस कहता है अच्छी बात है आप अपने स्थान पर विराजिये।
 
उधर, रंगशला के बाहर श्रीकृष्ण के नाम के नारे लगते हैं जिसकी आवाज भीतर तक सुना देती है राजकुमार कृष्ण की जय। यह सुनकर कंस दंग रह जाता है। श्रीकृष्ण के पीछे-पीछे उनकी जय-जयकार करते हुए कई लोग उनके साथ भीतर आते हैं। श्रीकृष्ण और बलराम के कंधे पर हाथी का एक-एक दांत रखा होता है। वह दोनों भव्य तरीके से रंगशाला में प्रवेश करते हैं। यह देखकर कंस हैरान रह जाता है। 
 
दोनों भाई सीधे रंगशाला के अखाड़े के पास जाकर खड़े हो जाते हैं। उनके पहुंचते ही प्रांगण में बैठी और खड़ी जनता उनकी जय-जयकार करने लगती है। उनकी जय-जयकार से रंगशाला गुंज उठती है। कंस ये देखककर कुछ समझ नहीं पाता है। दोनों भाई कंस को प्रणाम करे बगैर ही अखाड़े की बाउंड्री के ऊपर अपना-अपना एक पैर रखकर खड़े हो जाते हैं। सभी यह देखकर आश्चर्य करने लगते हैं। सभी श्रीकृष्ण को देखते रहते हैं।
 
कंस चाणूर की ओर देखता है और फिर श्रीकृष्ण और बलराम से कहता है, पहली बार किसी राजसभा में आए हो। शायद इसीलिए इतनी मर्याद भी नहीं जानते हो कि राजा के सामने आने पर राजा को प्रणाम किया जाता है। तब श्रीकृष्ण कहते हैं राजन! ये मर्यादा तो केवल उनके लिए है जो राजा से कुछ याचना करने आते हैं, कुछ मांगने आते हैं। परंतु हमें तो स्वयं आपने अक्रूरजी के हाथों हमें यहां आने का न्यौता दिया था और फिर मथुरा में प्रवेश करने से पहले हमें आपका राजपत्र भी मिल गया था जिसमें लिखा था कि मथुरा में आपका स्वागत है। ऐसे समय में मर्यादा यही है कि जिसने निमंत्रण पत्र भेजा हो तो पहले उसका धर्म है कि मेहमान के आने पर पहले वो मेहमान का अभिवादन करें।
 
तब कंस खुद को संयमित करके हंसते हुए कहता है वाह, तुम्हारी वाक चतुराई से हम प्रसन्न हुए। इसलिए हम तुम्हारी इस भूल को क्षमा कर देते हैं जो तुमसे अनजाने में हुई है, क्योंकि गांव में रहने के कारण तुम्हें अभी राज मर्यादा का पूरा ज्ञान नहीं है।
 
तब श्रीकृष्ण कहते हैं नहीं राजन! हमें राज मर्यादा का भी ज्ञान है और हम जानते हैं कि पहली बार जब किसी राजा से मिलने जाओ तो खाली हाथ नहीं जाना चाहिए। कुछ उपहार लेकर जाना चाहिए। यही सोचकर रास्ते में आते समय एक पालल हाथी को मारकर उसके ये अमुल्य दांत आपको भेंट करने के लिए लाएं हैं। इसे स्वीकार करें राजन। यह कहकर वे दोनों हाथी दांत अखाड़ें की बाउंड्री पर रख देते हैं।
 
यह सुनकर कंस अपनी मुठ्ठी भींच लेता है। फिर कंस चाणूर की ओर देखता है फिर श्रीकृष्ण की ओर देखते हुए कहता है, वाह इसे कहते हैं वीरता। इससे सिद्ध होता है कि हमने आज तक तुम्हारी वीरता के जो किस्से सुने हुए थे वो झूठ नहीं है। हमें गर्व है कि हमारे राज्य में तुम्हारे जैसा एक परमवीर बालक भी है। इसीलिए हमने मथुरा के इस महान उत्सव में आने के लिए तुम्हें निमंत्रण भेजा था ताकि देश-विदेश से आए योद्धाओं के सामने तुम्हें परमवीरता पदवी प्रदान करके तुम्हारा राजकीय सम्मान किया जाए। परंतु उस सम्मान समारोह से पहले हम चाहते हैं और यहां बैठे सभी लोग भी अवश्य चाहते होंगे कि जिसकी वीरता के इतने किस्से अपने कानों से सुने हैं उसकी ‍वीरता का एक प्रदर्शन अपनी आंखों से भी देखा जाए।
 
यह सुनकर अक्रूरजी और नंदबाबा घबरा जाते हैं। फिर कंस कहता है, इसलिए हमने अपने और दूसरे राज्यों से भी चार चोटी के पहलवान बुलवाएं हैं। वह पहलवान ये सुनकर श्रीकृष्ण और बलराम की ओर देखकर जोर-जोर से हंसते हैं। तब कंस कहता है, हम चाहते हैं कि आज इस अखाड़े में तुम्हारा मल्ल युद्ध देखा जाए। इनमें से चाहे जिसे तुम चुन लो और इनके साथ कुस्ती करके जनता का मनोरंजन करो।
 
तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि आज तो हम मथुरा का उत्सव देखने आए हैं राजन! कुछ दिखाने नहीं आए हैं। किसी दूसरे अवसर पर आपकी ये इच्‍छा भी पूरी कर देंगे। फिर दोनों हंसते हैं। यह सुनकर एक पहलवान अपनी भुजाएं ऊपर उठाकर कहता है कि इससे अच्छा दूसरा अवसर कब आएगा? देश-विदेश से लोग फिर कब इकट्ठा होंगे? यह सुनकर कंस प्रसन्न हो जाता है। फिर वह पहलवान कहता है। आज हम इन सबके सामने मल्ल युद्ध में अपना-अपना थोड़ा पराक्रम दिखा दें तो दर्शक कितना आनंद लेंगे। यह कहकर वह हंसने लगता है। फिर एक दूसरा पहलवान कहता है, और यदि हमें देखकर तुम्हें डर लगता हो तो दूसरी बात है। तीसरा कहता है, सबके सामने हाथ जोड़कर क्षमा मांग लो हम तुम्हें छोड़ देंगे। लगता है कि तुमने जितने कारमाने किए हैं वह भोले-भाले ग्वालों के सामने जंगल में छुपकर किए हैं। कौन जानता है कि किए हैं भी की नहीं। फिर वह चारों पहलवान कई तरह की व्यंगात्मक बातें करके दोनों भाइयों को उकसाने का कार्य करते हैं। जनता के सामने उन्हें कमजोर सिद्ध करने का कार्य करते हैं। 
 
बलराम को क्रोध आता है वे उन्हें मारने के लिए उत्तेजित हो जाते हैं लेकिन श्रीकृष्ण उन्हें रोक देते हैं। कंस और चाणूर ये दृश्य देखकर अति प्रसन्न हो जाते हैं। सभी सभासद जोर-जोर से हंसने लगते हैं। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि हे मल्ल शिरोमणि हम मानते हैं कि मल्ल युद्ध की चुनौति मिलने के कारण एक वीर को ताल ठोंकर आखाड़े में आ जाना चाहिए। परंतु मल्ल युद्ध के भी कुछ नियम होते हैं। पहला तो यही है कि मल्ल युद्ध हमेशा दो बराबर वालों में होता है। हमारी और आपकी बराबरी कैसे हो सकती है? हम एक छोटे से बालक है और आप मल्ल युद्ध विशारद हैं। आपकी विशालकाय के सामने तो हमारा शरीर एक चौथाई भी नहीं है। इसीलिए आपके और हमारे बीच इस प्रतियोगिता को यहां पर बैठा कोई भी उचित नहीं कहेगा। यह सुनकर सभी ओर चुप्पी छा जाती है।
 
जनता के बीच से एक कहता है, कृष्ण ठीक कहते हैं ये लड़ाई उचित नहीं। तब दूसरा कहता है एक छोटे बालक के साथ ऐसे महामल्ल की कुस्ती नियम विरुद्ध है। ये अन्याय है। सभी जनता एक साथ कहती हैं ये अन्याय है। यह सुनकर कंस और चाणूर सोच में पड़ जाते हैं। तब चाणूर चीखता हुआ कहता है, नहीं.. ये कदाचित अन्याय नहीं है। वीरता की कोई आयु नहीं होती। सांप यदि छोटा हो तो उसका विष कम जहरिला नहीं हो जाता। एक छोटीसी अग्निशीखा सारे वन को जला डालती है। इसलिए यदि ये अपने आप को परमवीर कहने का दावा करता है तो उसे आज सारी जनता के सामने इस अखाड़े में उसका प्रदर्शन करना चाहिए।
 
यह सुनकर अक्रूरजी उठकर कहते हैं, ये सरासर अ‍नुचित है। इसे हम कभी स्वीकार नहीं कर सकते। महाराज आपकी आंखों के सामने ये अन्याय हो रहा है। राजा होने के नाते आपका यही धर्म है कि राज्यसभा में एक नन्हें बालक के साथ घोर अन्याय मत होने दीजिये।
 
तब कंस कहता है नहीं अक्रूर हम तुमसे सहमत नहीं है। जो हो रहा है वह युक्ति संगत है अन्याय नहीं है क्योंकि जिसके बारे में ये कहा जाता है कि बकासुर और अघासुर जैसे परमशक्तिशाली दैत्यों को अकेले ही मार दिया हो और जिसने गोवर्धन पर्वत को अपनी एक अंगुली पर उठा लिया हो उसे छोटा बालक कहना यानी उसकी वीरता का अपमान करना होगा। राजा होने के नाते प्रजा के प्रति हमारा कुछ कर्तव्य बनता है कि जिसे हम वीरता की पदवी प्रदान करने जा रहे हैं प्रजा उसकी वीरता अपनी आंखों से देख लें ताकि कल कोई ये ना कह सके कि राजा ने अपने किसी रिश्तेदार को सर्वोच्च पदवी प्रदान की और यहां बैठे हुए बाकी ‍वीरों पर अन्याय किया है और वैसे भी जिसने दैत्यों को मार डाला हो उसके लिए इन मानवों से लड़ने में क्या डर हो सकता है? इसलिए आप निश्चिंत होकर बैठे रहिये अक्रूरजी।
 
अक्रूरजी कहते हैं महाराज कंस हम निश्चिंत होकर नहीं बैठ सकते क्योंकि हम देख रहे हैं कि आपकी समस्त युक्तियों के पीछे कृष्ण की हत्या का षड़यंत्र है। महाराज कंस ये अन्याय ही नहीं अत्याचार भी है और मैं एवं मेरे यादव वीर अपने जीतेजी ये अत्याचार होने नहीं देंगे। ऐसा कहते हुए अक्रूरजी अपनी तलवार निकाल लेते हैं। उन्हें देखते ही सभी यादव वीर भी अपनी-अपनी तलवार निकाल लेते हैं। यह देखकर कंस भी जब अपनी तलवार निकाल लेता है तो उसके लोग भी अपनी-अपनी तलवार निकल कर खड़े हो जाते हैं।
 
तब श्रीकृष्ण कहते हैं, अक्रूरजी आप लोग अपनी-अपनी तलवारें वापस म्यान में डाल लीजिये। इनकी आवश्यकता नहीं है। यह सुनकर कंस सहित सभी अचंभित हो जाते हैं। अक्रूजी अपनी तलवार म्यान में रख लेते हैं। यह देखकर दोनों ओर के सभी लोग अपनी-अपनी तलवार म्यान में रखकर बैठ जाते हैं। 
 
तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि हम महाराज कंस की बात से सहमत हैं कि प्रजाजनों के मनों को आश्वस्त करने के लिए और उन्हें ये विश्वास दिलाने के लिए कि हम ही वो हैं जिन्होंने महान दैत्यों का संहार करके अब तक इस राज्य की रक्षा की है, हमें आज फिर अपना पराक्रम दिखाना ही होगा। यह सुनकर कंस देखने लगता है। फिर श्रीकृष्ण कहते हैं कि हम तो अब तक केवल महाराज को एक अवसर दे रहे थे कि वो न्याय का साथ देकर अपने राजा होने का कर्तव्य पूरा करें। परंतु उनकी ऐसी ही इच्छा है तो इसे राजा की आज्ञा मानकर हम सबके सामने अपने कर्तव्य को पूरा करेंगे। हम इस मल्ल युद्ध के लिए तैयार है। आप चरों में से जो चाहे हमसे युद्ध करने के लिए आ जाए।
 
यह कहकर श्रीकृष्ण अकेले ही अखाड़े में उतर जाते हैं। कंस यह देखकर मुस्कुरा देता है। एक पहलवान श्रीकृष्ण के हाथ पकड़ लेता है तो कृष्ण उसे उठाकर नीचे पटक देते हैं। यह देखकर दूसरा पहलवान कृष्ण की ओर लपकता है और उनसे युद्ध करने लगता है। यह देखकर बलरामजी भी अखाड़े में उतरकर पहलवानों से युद्ध करने लगते हैं। फिर दोनों भाई मिलकर चार में से दोनों पहलवानों को उठा-उठाकर पटकने लगते हैं। यह देखकर नंदबाबा और अक्रूरजी सहित सभी जनता में हर्ष व्याप्त हो जाता है। कंस और चाणूर ये देखकर घबरा जाते हैं।जय श्रीकृष्ण।
 
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