भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र के बारे में क्या जानते हैं आप?
Geeta : चक्र को छोटा, लेकिन सबसे अचूक अस्त्र माना जाता था। सभी देवी-देवताओं के पास अपने-अपने अलग-अलग चक्र होते थे। उन सभी के अलग-अलग नाम थे। शंकरजी के चक्र का नाम भवरेंदु, विष्णुजी के चक्र का नाम कांता चक्र और देवी का चक्र मृत्यु मंजरी के नाम से जाना जाता था। सुदर्शन चक्र का नाम भगवान कृष्ण के नाम के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है।
सुर्शन चक्र की शक्ति : भगवान श्रीकृष्ण के पास सुदर्शन चक्र था जिसके चलते उस दौर में सभी शुत्र पक्ष भयभीत रहते थे। यह बहुत ही खतरनाक अस्त्र था, जो छोड़े जाने के बाद शत्रु का वध करके पुन: लौट आता था। इस अस्त्र को किसी भी प्रकार से रोक पाना असंभव था। आओ जानते हैं श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र का रहस्य।
श्रीकृष्ण और सुदर्शन चक्र : भगवान परशुराम से सुदर्शन चक्र प्राप्त करने के बाद श्रीकृष्ण की शक्ति बढ़ गई थी। श्रीकृष्ण और दाऊ के मुख से सुदर्शन प्राप्त करने वाली घटना सुनकर सत्यकि तो सुन्न ही रह गया था। यादवों के तो हर्ष का ठिकाना नहीं रहा। श्रीकृष्ण और दाऊ दो दिनों तक भृगु आश्रम में रहने के बाद क्रौंचपुर के यादव राजा सारस के आमंत्रण पर उनके राज्य के लिए निकल पड़े।
श्रीकृष्ण से अपने सुदर्शन चक्र से सबसे पहला वध राजा श्रृगाल का किया था। पद्मावत राज्य के करवीर नगर का राजा श्रृगाल हिंसक वृत्ति का हो गया है। वह किसी की भी स्त्री, संपत्ति और भूमि को हड़प लेता है।
सुदर्शन चक्र का इतिहास : कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र भगवान परशुराम ने दिया था। परशुराम के पहले यह चक्र उन्होंने वरुणदेव से प्राप्त किया था। वरुणदेव ने अग्निदेव से, अग्निदेव ने भगवान विष्णु से यह चक्र प्राप्त किया था।
ऐसी भी मान्यता है कि यह बहुत कम ही लोग जानते हैं कि सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शंकर ने किया था। प्राचीन और प्रामाणिक शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण भगवान शंकर ने किया था। निर्माण के बाद भगवान शिव ने इसे श्रीविष्णु को सौंप दिया था। जरूरत पड़ने पर श्रीविष्णु ने इसे देवी पार्वती को प्रदान कर दिया। माता पार्वती ने इसे परशुराम को दे दिया और भगवान कृष्ण को यह सुदर्शन चक्र परशुरामजी से मिला।
सुदर्शन चक्र की कथा : भगवान विष्णु के हर चित्र व मूर्ति में उन्हें सुदर्शन चक्र धारण किए दिखाया जाता है। यह सुदर्शन चक्र भगवान शंकर ने ही जगत कल्याण के लिए भगवान विष्णु को दिया था। इस संबंध में शिवमहापुराण के कोटिरुद्रसंहिता में एक कथा का उल्लेख है।
एक बार जब दैत्यों के अत्याचार बहुत बढ़ गए तब सभी देवता श्रीहरि विष्णु के पास आए। तब भगवान विष्णु ने कैलाश पर्वत पर जाकर भगवान शिव की विधिपूर्वक आराधना की। वे हजार नामों से शिव की स्तुति करने लगे। प्रत्येक नाम पर एक कमल पुष्प भगवान विष्णु शिव को चढ़ाते। तब भगवान शंकर ने विष्णु की परीक्षा लेने के लिए उनके द्वारा लाए एक हजार कमल में से एक कमल का फूल छिपा दिया।
शिव की माया के कारण विष्णु को यह पता न चला। एक फूल कम पाकर भगवान विष्णु उसे ढूंढने लगे। परंतु फूल नहीं मिला। भगवान विष्णु को कमलनयन भी कहा जाता है। तब विष्णु ने एक फूल की पूर्ति के लिए अपना एक नेत्र निकालकर शिव को अर्पित कर दिया। विष्णु की भक्ति देखकर भगवान शंकर बहुत प्रसन्न हुए और श्रीहरि के समक्ष प्रकट होकर वरदान मांगने के लिए कहा। तब विष्णु ने दैत्यों को समाप्त करने के लिए अजेय शस्त्र का वरदान मांगा। तब भगवान शंकर ने विष्णु को अपना सुदर्शन चक्र दिया। विष्णु ने उस चक्र से दैत्यों का संहार कर दिया। इस प्रकार देवताओं को दैत्यों से मुक्ति मिली तथा सुदर्शन चक्र उनके स्वरूप से सदैव के लिए जुड़ गया।
Edited by Anirudh Joshi