बलराम के हल की यह कथा आपको भी पता नहीं होगी
श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम को बलदाऊ, बलभद्र, दाऊ, संकर्षण और हलधर भी कहा जाता है। हलधर इसलिए क्योंकि वे अपने पास हमेशा हल रखते थे। बलराम का सबसे प्रमुख अस्त्र हल और मूसल है। हल से किसान खेत जोतते हैं। हल कृषि प्रधान भारत का प्रतीक है।
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी को बलरामजी का जन्मोत्सव मनाया जाता है। वे शेषनाग के अवतार थे। इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र की कामना को लेकर हल षष्ठी का व्रत रखती हैं। देश के पूर्वी भाग उत्तर प्रदेश, बिहार आदि में इसे ललई छठ और मध्य भारत में हरछट कहा जाता है।
कहते हैं कि श्रीकृष्ण गोपालक थे और बलराम कृषक। इसीलिए बलराम कृषकों के आराध्य हैं। बलराम बहुत बलशाली थे। सामान्य व्यक्ति हल उठाकर उसे हथियार के रूप में प्रयोग नहीं कर सकता लेकिन बलरामजी उसे उठा उसका हथियार के रूप में प्रयोग कर लेते थे।
बलराम के हल के प्रयोग के संबंध में किवदंती के आधार पर दो कथाएं मिलती है। कहते हैं कि एक बार कौरव और बलराम के बीच किसी प्रकार का कोई खेल हुआ। इस खेल में बलरामजी जीत गए थे लेकिन कौरव यह मानने को ही नहीं तैयार थे। ऐसे में क्रोधित होकर बलरामजी ने अपने हल से हस्तिनापुर की संपूर्ण भूमि को खींचकर गंगा में डुबोने का प्रयास किया। तभी आकाशवाणी हुई की बलराम ही विजेता है। सभी ने सुना और इसे माना। इससे संतुष्ट होकर बलरामजी ने अपना हल रख दिया। तभी से वे हलधर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
दूसरी कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी जाम्बवती का पुत्र साम्ब का दिल दुर्योधन और भानुमती की पुत्री लक्ष्मणा पर आ गया था और वे दोनों प्रेम करने लगे थे। दुर्योधन के पुत्र का नाम लक्ष्मण था और पुत्री का नाम लक्ष्मणा था। दुर्योधन अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के पुत्र से नहीं करना चाहता था। इसलिए एक दिन साम्ब ने लक्ष्मणा से गंधर्व विवाह कर लिया और लक्ष्मणा को अपने रथ में बैठाकर द्वारिका ले जाने लगा। जब यह बात कौरवों को पता चली तो कौरव अपनी पूरी सेना लेकर साम्ब से युद्ध करने आ पहुंचे।
कौरवों ने साम्ब को बंदी बना लिया। इसके बाद जब श्रीकृष्ण और बलराम को पता चला, तब बलराम हस्तिनापुर पहुंच गए। बलराम ने कौरवों से निवेदनपूर्वक कहा कि साम्ब को मुक्तकर उसे लक्ष्मणा के साथ विदा कर दें, लेकिन कौरवों ने बलराम की बात नहीं मानी।
ऐसे में बलराम का क्रोध जाग्रत हो गया। तब बलराम ने अपना रौद्र रूप प्रकट कर दिया। वे अपने हल से ही हस्तिनापुर की संपूर्ण धरती को खींचकर गंगा में डुबोने चल पड़े। यह देखकर कौरव भयभीत हो गए। संपूर्ण हस्तिनापुर में हाहाकार मच गया। सभी ने बलराम से माफी मांगी और तब साम्ब को लक्ष्मणा के साथ विदा कर दिया। बाद में द्वारिका में साम्ब और लक्ष्मणा का वैदिक रीति से विवाह संपन्न हुआ।