इस बार पितृ पक्ष ( Pitru Paksha 2021 Start Date) 20 सितंबर 2021, सोमवार को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से आरंभ हो गए हैं। पितृ पक्ष का समापन 6 अक्टूबर 2021, बुधवार को आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि अर्थात सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या ( sarva pitru moksha amavasya 2021 ) को होगा। आओ जानते हैं घर पर कैसे सरल तरीके से कर सकते हैं श्राद्ध कर्म।
श्राद्ध की सामग्री : तांबे का लोटा, चम्मच, तरभाणा (ताबें की छोटी प्लेट), काले तिल, जौ, कच्चा दूध, सफेद फूल, चावल, तुलसी, कुश का आसन, कुश, धोती, घी, गुड़, शहद, यज्ञोपवित, चंदन, गुलाब के फूल, फूल-माला, सुपारी आदि सामग्री एकत्रित करें। महिलाएं शुद्ध होकर पितरों और सभी के लिए भोजन बनाकर रखें।
कैसे करें श्राद्ध में तर्पण :
1. पहले धोती पहनकर, यज्ञोपवित धारण करके कुश आसन पर पूर्वमुखी होकर बैठें। देव, ऋषि और पितरों के लिए घी का दीप जलाएं, चंदन की धूप जलाएं। फूल माला चढ़ाएं। सुपारी रखें।
2. इसके बाद और एक भगोने में पवित्र जल में तिल, कच्चा दूध, जौ, तुलसी मिलाकर रख लें। पास में ही तरभाणा रखें जिसमें लोटे से लेकर जल छोड़ा जाएगा।
3. आसन पर बैठकर तीन बार आचमन करें। ॐ केशवाय नम:, ॐ माधवाय नम:, ॐ गोविन्दाय नम: बोलें।
4. आचमन के बाद हाथ धोकर अपने ऊपर जल छिड़के अर्थात् पवित्र होवें, फिर गायत्री मंत्र से शिखा बांधकर तिलक लगाकर कुशे की पवित्री (अंगूठी बनाकर) अनामिका अंगुली में पहनकर हाथ में जल, सुपारी, सिक्का, फूल लेकर निम्न संकल्प लें।
5. अपना नाम एवं गोत्र उच्चारण करें फिर बोले अथ् श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलप्राप्त्यर्थ देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणम करिष्ये।।
6. इसके बाद जल, कच्चा दूध, गुलाब की पंखुड़ी डाले, फिर हाथ में चावल लेकर देवता एवं ऋषियों का आह्वान करें। स्वयं पूर्व मुख करके बैठें, जनेऊ को रखें। कुशा के अग्रभाग को पूर्व की ओर रखें, देवतीर्थ से अर्थात् दाएं हाथ की अंगुलियों के अग्रभाग से तर्पण दें। अर्थात लोटे के जल को लेकर उसे तरभाणे में अंगुलियों से अर्पित कर दें।
7. इसी प्रकार उत्तर में मुख करके ऋषियों को तर्पण दें। अब उत्तर मुख करके जनेऊ को कंठी करके (माला जैसी) पहने एवं पालकी लगाकर बैठे एवं दोनों हथेलियों के बीच से जल गिराकर दिव्य मनुष्य को तर्पण दें।
8. ध्यान रखें कि अंगुलियों से देवता और अंगूठे से पितरों को जल अर्पण किया जाता है।
9. इसके बाद दक्षिण मुख बैठकर, जनेऊ को दाहिने कंधे पर रखकर बाएं हाथ के नीचे ले जाए, थाली में काली तिल छोड़े फिर काली तिल हाथ में लेकर अपने पितरों का आह्वान करें- ॐ आगच्छन्तु में पितर इमम ग्रहन्तु जलान्जलिम। फिर पितृ तीर्थ से अर्थात् अंगूठे और तर्जनी के मध्य भाग से तर्पण दें।
10. तर्पण करते वक्त अपने गोत्र का नाम लेकर बोलें, गोत्रे अस्मत्पितामह (पिता का नाम) वसुरूपत् तृप्यतमिदं तिलोदकम गंगा जलं वा तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः, तस्मै स्वधा नमः। इस मंत्र से पितामह और परदादा को भी 3 बार जल दें। इसी प्रकार तीन पीढ़ियों का नाम लेकर जल दें। इस मंत्र को पढ़कर जलांजलि पूर्व दिशा में 16 बार, उत्तर दिशा में 7 बार और दक्षिण दिशा में 14 बार दें। जिनके नाम याद नहीं हो, तो रूद्र, विष्णु एवं ब्रह्मा जी का नाम उच्चारण कर लें। भगवान सूर्य को जल चढ़ाए।
11. इसके बाद हाथ में जल लेकर ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: ॐ विष्णवे नम: बोलकर यह कर्म भगवान विष्णु जी के चरणों में छोड़ दें। इस कर्म से आपके पितृ बहुत प्रसन्न होंगे एवं मनोरथ पूर्ण करेंगे।
कैसे करें पिंडदान ( Pitru tarpan pind daan ) :
1. चावल को गलाकर और गलने के बाद उसमें गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर गोल-गोल तीन पिंड बनाए जाते हैं।
2. पहले तीन पिंड बनाते हैं। पिता, दादा और परदादा। यदि पिता जीवित है तो दादा, परदादा और परदादा के पिता के नाम के पिंड बनते हैं।
3. जनेऊ को दाएं कंधे पर पहनकर और दक्षिण की ओर मुख करके उन पिंडो को पितरों को अर्पित करने को ही पिंडदान कहते हैं।
4. पहले पिंड को तैयार कर लें और फिर चावल, कच्चा सूत्र, मिठाई, फूल, जौ, तिल और दही से उसकी पूजा करें। पूजा करते वक्त अगरबत्ती जलाएं।
5. पिंड को हाथ में लेकर इस मंत्र का जाप करते हुए, 'इदं पिण्ड (पितर का नाम लें) तेभ्य: स्वधा' के बाद पिंड को अंगूठा और तर्जनी अंगुली के मध्य से छोड़ें।
6. पिंडदान करने के बाद पितरों का ध्यान करें और पितरों के देव अर्यमा का भी ध्यान करें। अब पिंडों को उठाकर अलग रख दें और उन्हें कभी भी नदी में प्रवाहित कर दें।
अंत में करें ये कार्य :
1. कंडे पर पितरों के निमित्त कंडे जलाकर उस पर गुड़-घी की धूप दें। उसी में पितरों के लिए बनाया गया भोजन की कुछ भाग अर्पित करें।
2. धूप के बाद पांच भोग निकालें जो पंचबली कहलाती है। देव, गाय, कौवे, कुत्ते और पिपल के लिए भोग निकालें।
3. पंचबलिक कर्म के बाद यथाशक्ति अनुसार ब्राह्मणों को भोज कराकर दक्षिणा दें।
4. इसके साथ ही जमई, भांजे, मामा, नाती और कुल खानदान के सभी लोगों को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा जरूर दें।
ये कार्य न करें :
इस दिन गृह कलह न करें, चरखा, मांसाहार, बैंगन, प्याज, लहसुन, बासी भोजन, सफेद तील, मूली, लौकी, काला नमक, सत्तू, जीरा, मसूर की दाल, सरसो का साग, चना आदि वर्जित माना गया है। कोई यदि इनका उपयोग करना है तो पितर नाराज हो जाते हैं। शराब पीना, मांस खाना, श्राद्ध के दौरान मांगलिक कार्य करना, झूठ बोलना और ब्याज का धंधा करने से भी पितृ नाराज हो जाता हैं।