सर्वपितृ अमावस्या पितरों को विदा करने की अंतिम तिथि होती है। 15 दिन तक पितृ घर में विराजते हैं और हम उनकी सेवा करते हैं फिर उनकी विदाई का समय आता है। इसीलिए इसे 'पितृविसर्जनी अमावस्या', 'महालय समापन' या 'महालय विसर्जन' भी कहते हैं। आओ जानते हैं इसकी 10 खास बातें।
1. कहते हैं कि जो पितृ उनकी मृत्यु तिथि पर नहीं आ पाते हैं, आते हैं तो हम उस समय श्राद्ध नहीं कर पाते हैं या जिन्हें हम नहीं जानते हैं, उन भूले-बिसरे पितरों का भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध करते हैं। अत: इस दिन श्राद्ध जरूर करना चाहिए।
2. कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने पितरों का उनकी तिथि के अनुसार या उनकी मृत स्थिति के अनुसार श्राद्ध नहीं करता है तो माना जाता है कि पितर उसके लिए सर्वपितृ अमावस्य पर पुन: नदी तट या उसके द्वार पर आते हैं और वे देखते हैं कि सभी के पितरों के वंशज आएं हैं परंतु हमारे नहीं तब वह निराश और रुष्ठ होकर चले जाते हैं जिसके चलते व्यक्ति के जीवन में बुरा होने लगता है।
3. अगर कोई श्राद्ध तिथि में किसी कारण से श्राद्ध न कर पाया हो या फिर श्राद्ध की तिथि मालूम न हो तो सर्वपितृ श्राद्ध अमावस्या पर श्राद्ध किया जा सकता है। मान्यता है कि इस दिन सभी पितर आपके द्वार पर उपस्थित हो जाते हैं।
4. इस श्राद्ध में पंचबलि अर्थात गोबलि, श्वानबलि, काकबलि और देवादिबलि कर्म जरूर करें। अर्थात इन सभी के लिए विशेष मंत्र बोलते हुए भोजन सामग्री निकालकर उन्हें ग्रहण कराई जाती है। अंत में चींटियों के लिए भोजन सामग्री पत्ते पर निकालने के बाद ही भोजन के लिए थाली अथवा पत्ते पर ब्राह्मण हेतु भोजन परोसा जाता है। इस दिन सभी को अच्छे से पेटभर भोजन खिलाकर दक्षिणा दी जाती है।
5. सर्वपितृ अमावस्या के दिन पितरों की शांति के लिए और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए गीता के दूसरे और सातवें अध्याय का पाठ करने का विधान भी है।
6. सर्वपितृ अमावस्या पर पीपल की सेवा और पूजा करने से पितृ प्रसन्न होते हैं। स्टील के लोटे में, दूध, पानी, काले तिल, शहद और जौ मिला लें और पीपल की जड़ में अर्पित कर दें।
7. .शास्त्र कहते हैं कि "पुन्नामनरकात् त्रायते इति पुत्रः" जो नरक से त्राण (रक्षा) करता है वही पुत्र है। इस दिन किया गया श्राद्ध पुत्र को पितृदोषों से मुक्ति दिलाता है। अत: पूर्वजों के निमित्त शास्त्रोक्त कर्म करें जिससे उन मृत प्राणियों को परलोक अथवा अन्य लोक में भी सुख प्राप्त हो सके।
8. इस दिन शास्त्रों में मृत्यु के बाद और्ध्वदैहिक संस्कार, पिण्डदान, तर्पण, श्राद्ध, एकादशाह, सपिण्डीकरण, अशौचादि निर्णय, कर्म विपाक आदि के द्वारा पापों के विधान का प्रायश्चित कहा गया है।
9. मान्यता है कि जो व्यक्ति पितृपक्ष में श्राद्ध नहीं करता है और सर्वपितृ अमावस्य को भी श्राद्ध नहीं करता है उसे वर्षभर के लिए अपने पितारों का श्राप झेलने पड़ता है। ऐसे में पितृदोष दो प्रकार से प्रभावित होता है। पहला यह कि जो पितर अधोगति में गए हैं वे ज्यादा अपेक्षा रखकर ज्यादा सताते हैं और जो उर्ध्वगति में गए हैं वे श्राप नहीं देते हैं तो आशीर्वाद भी नहीं देते हैं। उनका आशीर्वाद नहीं देना ही नुकसान दायक सिद्ध होता है।
10. सर्वपितृ अवमावस्या पर तर्पण और पिंडदान का खासा महत्व है। सामान्य विधि के अनुसार पिंडदान में चावल, गाय का दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं और उन्हें पितरों को अर्पित किया जाता है। पिंडदान के साथ ही जल में काले तिल, जौ, कुशा, सफेद फूल मिलाकर तर्पण किया जाता है। पिंड बनाने के बाद हाथ में कुशा, जौ, काला तिल, अक्षत् व जल लेकर संकल्प करें। इसके बाद इस मंत्र को पढ़े. “ॐ अद्य श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त सर्व सांसारिक सुख-समृद्धि प्राप्ति च वंश-वृद्धि हेतव देवऋषिमनुष्यपितृतर्पणम च अहं करिष्ये।।'