किसी भी कारण से या बुरी आदतों के कारण उत्पन्न यौन दुर्बलता और यौन विकारों को दूर करने की शक्ति इस आयुर्वेदिक योग कामचूड़ामणि रस में है। यह योग पुरुषों के लिए ही नहीं बल्कि स्त्रियों के लिए भी पूरी तरह उपयोगी व गुणकारी है। यह पुरुषों की तरह स्त्री शरीर को भी बलवान, स्फूर्तिवान और क्षमतावान बनाता है। गर्भाशय, डिम्बाशय, योनि प्रदेश आदि अंगों को सबल और स्वस्थ्य बनाता है तथा स्तनों को सुडौल रखता है। मासिक धर्म की अनियमितता दूर करता है और जैसे पुरुषों को सही मायनों में पुरुषत्व प्रदान करता है उसी प्रकार स्त्रियों को 'स्त्रीत्व' प्रदान कर उन्हें 'संपूर्ण स्त्री' बनाता है। किसी भी आयु के विवाहित स्त्री-पुरुष किसी भी ऋतु में आवश्यकता के अनुसार अवधि तक इसका सेवन कर सकते हैं।
घटक द्रव्य- मुक्ता पिष्टी, सुवर्णमाक्षिक भस्म, सुवर्ण भस्म, भीमसेनी कर्पूर, जावित्री, जायफल, लौंग, वंग भस्म और रजत भस्म- ये औषधियाँ 20-20 ग्राम तथा दालचीनी, तेजपात, छोटी इलायची के दाने और असली नागकेशर का मिश्रित चूर्ण 90 ग्राम।
विधि- सबका चूर्ण मिलाकर शतावर के रस में सात दिन तक खरल करके 1-1 रत्ती की गोलियाँ बना लें।
मात्रा- 1 या 2 गोली सुबह-शाम मीठे दूध के साथ सेवन करना चाहिए। दूध को मीठा करने के लिए शकर के स्थान पर पिसी मिश्री (खड़ी
किसी भी कारण से या बुरी आदतों के कारण उत्पन्न यौन दुर्बलता और यौन विकारों को दूर करने की शक्ति इस आयुर्वेदिक योग कामचूड़ामणि रस में है
साखर) डालें।
गुण एवं उपयोग- यह रसायन शीतवीर्य, पौष्टिक एवं कामोत्तेजक है और वाजीकारक नुस्खों का सरताज है। शीतवीर्य होने से यह पित्त प्रकृति के, गरम तासीर वाले, गाँजा, शराब, मांसाहार, तेज मिर्च-मसाले का सेवन करने से बढ़ी हुई उष्णता से ग्रस्त लोगों के लिए भी अत्यन्त अनुकूल और लाभकारी है। इसीलिए इसे सिर्फ शीतकाल में ही नहीं बल्कि अन्य ऋतुओं में भी सेवन किया जा सकता है। यह अत्यन्त लाभकारी तो है ही, निरापद भी है क्योंकि इसमें अफीम-गाँजा जैसी मादक चीज नहीं है।