सहस्रबाहु अर्जुन ने लिया था दो लोगों से पंगा, एक से जीते और दूसरे से मोक्ष गए
प्रतिवर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को सहस्रबाहु जयंती मनाई जाती है। कार्तवीर्य अर्जुन के हैहयाधिपति, सहस्रार्जुन, दषग्रीविजयी, सुदशेन, चक्रावतार, सप्तद्रवीपाधि, कृतवीर्यनंदन, राजेश्वर आदि कई नाम होने का वर्णन मिलता है। सहस्रबाहु अर्जुन ने अपने जीवन में यूं तो बहुतों से युद्ध लड़े लेकिन उनमें दो लोग खास थे। पहले रावण और दूसरे परशुराम।
सहस्रबाहु का परिचय : सहस्त्रार्जुन एक चंद्रवंशी राजा था। सहस्रबाहु का जन्म महाराज हैहय की 10वीं पीढ़ी में माता पद्मिनी के गर्भ से हुआ था। उनका जन्म नाम एकवीर था। चन्द्र वंश के महाराजा कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्तवीर्य-अर्जुन कहा जाता है। कृतवीर्य के पुत्र अर्जुन थे। कृतवीर्य के पुत्र होने के कारण उन्हें कार्त्तवीर्यार्जुन भी कहा गया।
कार्त्तवीर्यार्जुन ने अपनी अराधना से भगवान दत्तात्रेय को प्रसन्न किया था। भगवान दत्तात्रेय ने युद्ध के समय कार्त्तवीर्याजुन को हजार हाथों का बल प्राप्त करने का वरदान दिया था, जिसके कारण उन्हें सहस्त्रार्जुन कहा जाने लगा। इन्हें ही सहस्रबाहु अर्जुन कहा गया।
इन्ही के पूर्वज थे महिष्मन्त, जिन्होंने नर्मदा के किनारे महिष्मति (आधुनिक महेश्वर) नामक नगर बसाया। इन्हीं के कुल में आगे चलकर दुर्दुम के उपरांत कनक के चार पुत्रों में सबसे बड़े कृतवीर्य ने महिष्मती के सिंहासन को संभाला। भार्गववंशी ब्राह्मण इनके राज पुरोहित थे। भार्गव प्रमुख जमदग्नि ॠषि (परशुराम के पिता) से कृतवीर्य के मधुर संबंध थे। भागवत पुराण में सहस्रबाहु महाराज की उत्पत्ति की जन्मकथा का वर्णन मिलता है। उन्होंने भगवान विष्णु की कठोर तपस्या करके 10 वरदान प्राप्त किए और चक्रवर्ती सम्राट की उपाधि धारण की थी।
सहस्रबाहु अर्जुन और रावण युद्ध : नर्मदा नदी के तट पर महिष्मती (महेश्वर) नरेश हजार बाहों वाले सहस्रबाहु अर्जुन और दस सिर वाले लंकापति रावण के बीच एक बार भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में रावण हार गया था और उसे बंदी बना लिया गया था। बाद में रावण के पितामह महर्षि पुलत्स्य के आग्रह पर उसे छोड़ा गया। अंत में रावण ने उसे अपना मित्र बना लिया था।
सहस्रबाहु अर्जुन और परशुराम युद्ध : भृगुक्षेत्र के शोधकर्ता साहित्यकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय के अनुसार परशुराम का जिन क्षत्रिय राजाओं से युद्ध हुआ उनमें से हैहयवंशी राजा सहस्त्रार्जुन इनके सगे मौसा थे। जिनके साथ इनके पिता जमदग्नि ॠषि का इनकी माता रेणुका को लेकर विवाद हो गया था। कथानक के अनुसार इनकी माता के सम्बंधों के लेकर हुए इस विवाद में इन्होंने अपने पिता के आदेश पर माता रेणुका का सिर काट दिया था। जिससे चलते सहस्त्रार्जुन की परशुराम से शत्रुता हो चली थी।
एक दूसरी कथा के अनुसार ऋषि वशिष्ठ से शाप का भाजन बनने के कारण सहस्त्रार्जुन की मति मारी गई थी। तब सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि के आश्रम में एक कपिला कामधेनु गाय को देखा और उसे पाने की लालसा से वह कामधेनु को बलपूर्वक आश्रम से ले गया। जब परशुराम को यह बात पता चली तो उन्होंने पिता के सम्मान के खातिर कामधेनु वापस लाने की सोची और सहस्त्रार्जुन से उन्होंने युद्ध किया। युद्ध में सहस्त्रार्जुन की भुजाएं कट गई और फिर उसका मस्तक भी उतार दिया गया।
ऐसा भी कहा जाता है कि उस काल में हैहयवंशीय क्षत्रिय राजाओं का अत्याचार था। भार्गव और हैहयवंशियों की पुरानी दुश्मनी चली आ रही थी। हैहयवंशियों का राजा सहस्रबाहु अर्जुन भार्गव आश्रमों के ऋषियों को सताया करता था। एक समय सहस्रबाहु के पुत्रों ने जमदग्नि के आश्रम की कामधेनु गाय को लेने तथा परशुराम से बदला लेने की भावना से परशुराम के पिता का वध कर दिया। जब इस बात का परशुराम को पता चला तो क्रोधवश उन्होंने हैहयवंशीय क्षत्रियों की वंश-बेल का विनाश करने की कसम खाई। इसी कसम के तहत उन्होंने इस वंश के लोगों से 36 बार युद्ध कर उनका समूल नाश कर दिया था। तभी से यह भ्रम फैल गया कि परशुराम ने धरती पर से 36 बार क्षत्रियों का नाश कर दिया था।