क्यों दशरथ ने शान्ता को वर्षिणी को दे दिया था, अगले पन्ने पर...
शान्ता का विवाह किससे हुआ, जानिए अगले पन्ने पर...
शांता का विवाह महर्षि विभाण्डक के पुत्र ऋंग ऋषि से हुआ। एक दिन जब विभाण्डक नदी में स्नान कर रहे थे, तब नदी में ही उनका वीर्यपात हो गया। उस जल को एक हिरणी ने पी लिया था जिसके फलस्वरूप ऋंग ऋषि का जन्म हुआ था।
एक बार एक ब्राह्मण अपने क्षेत्र में फसल की पैदावार के लिए मदद करने के लिए राजा रोमपद के पास गया, तो राजा ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। अपने भक्त की बेइज्जती पर गुस्साए इंद्रदेव ने बारिश नहीं होने दी, जिस वजह से सूखा पड़ गया। तब राजा ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करने के लिए बुलाया। यज्ञ के बाद भारी वर्षा हुई। जनता इतनी खुश हुई कि अंगदेश में जश्न का माहौल बन गया। तभी वर्षिणी और रोमपद ने अपनी गोद ली हुई बेटी शांता का हाथ ऋंग ऋषि को देने का फैसला किया।
दशरथ ने पुत्र की कामना से जब बुलाया अपने दामाद को...
राजा दशरथ और इनकी तीनों रानियां इस बात को लेकर चिंतित रहती थीं कि पुत्र नहीं होने पर उत्तराधिकारी कौन होगा। इनकी चिंता दूर करने के लिए ऋषि वशिष्ठ सलाह देते हैं कि आप अपने दामाद ऋंग ऋषि से पुत्रेष्ठि यज्ञ करवाएं। इससे पुत्र की प्राप्ति होगी।
दशरथ ने उनके मंत्री सुमंत की सलाह पर पुत्रकामेष्ठि यज्ञ में महान ऋषियों को बुलाया। इस यज्ञ में दशरथ ने ऋंग ऋषि को भी बुलाया। ऋंग ऋषि एक पुण्य आत्मा थे तथा जहां वे पांव रखते थे वहां यश होता था। सुमंत ने ऋंग को मुख्य ऋत्विक बनने के लिए कहा। दशरथ ने आयोजन करने का आदेश दिया।
पहले तो ऋंग ऋषि ने यज्ञ करने से इंकार किया लेकिन बाद में शांता के कहने पर ही ऋंग ऋषि राजा दशरथ के लिए पुत्रेष्ठि यज्ञ करने के लिए तैयार हुए थे। लेकिन...
शांता के आने से हुई अयोध्या में वर्षा, अगले पन्ने पर
दशरथ ने केवल ऋंग ऋषि (उनके दामाद) को ही आमंत्रित किया लेकिन ऋंग ऋषि ने कहा कि मैं अकेला नहीं आ सकता। मेरी पत्नी शांता को भी आना पड़ेगा। ऋंग ऋषि की यह बात जानकर राजा दशरथ विचार में पड़ गए, क्योंकि उनके मन में अभी तक दहशत थी कि कहीं शांता के अयोध्या में आने से फिर से अकाल नहीं पड़ जाए।
लेकिन जब पुत्र की कामना से पुत्र कामेष्ठि यज्ञ के दौरान उन्होंने अपने दामाद ऋंग ऋषि को बुलाया, तो दामाद ने शांता के बिना आने से इंकार कर दिया।
तब पुत्र कामना में आतुर दशरथ ने संदेश भिजवाया कि शांता भी आ जाए। शांता तथा ऋंग ऋषि अयोध्या पहुंचे। शांता के पहुंचते ही अयोध्या में वर्षा होने लगी और फूल बरसने लगे। शांता ने दशरथ के चरण स्पर्श किए। दशरथ ने आश्चर्यचकित होकर पूछा कि 'हे देवी, आप कौन हैं? आपके पांव रखते ही चारों ओर वसंत छा गया है।' जब माता-पिता (दशरथ और कौशल्या) विस्मित थे कि वो कौन है? तब शांता ने बताया कि 'वो उनकी पुत्री शांता है।' दशरथ और कौशल्या यह जानकर अधिक प्रसन्न हुए। वर्षों बाद दोनों ने अपनी बेटी को देखा था।
दशरथ ने दोनों को ससम्मान आसन दिया और उन दोनों की पूजा-आरती की। तब ऋंग ऋषि ने पुत्रकामेष्ठि यज्ञ किया तथा इसी से भगवान राम तथा शांता के अन्य भाइयों का जन्म हुआ। -सत्यसाई बाबा।
यज्ञ कराने से ऋंग ऋषि का पुण्य नष्ट हो गया तब उन्होंने क्या किया...
कहते हैं कि पुत्रेष्ठि यज्ञ कराने वाले का जीवनभर का पुण्य इस यज्ञ की आहुति में नष्ट हो जाता है। इस पुण्य के बदले ही राजा दशरथ को पुत्रों की प्राप्ति हुई। राजा दशरथ ने ऋंग ऋषि को यज्ञ करवाने के बदले बहुत-सा धन दिया जिससे ऋंग ऋषि के पुत्र और कन्या का भरण-पोषण हुआ और यज्ञ से प्राप्त खीर से राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ। ऋंग ऋषि फिर से पुण्य अर्जित करने के लिए वन में जाकर तपस्या करने लगे।
रामायण और रामचरित मानस में शांता के चित्र क्यों नहीं...
जनता के समक्ष शान्ता ने कभी भी किसी को नहीं पता चलने दिया कि वो राजा दशरथ और कौशल्या की पुत्री हैं। यही कारण है कि रामायण या रामचरित मानस में उनका खास उल्लेख नहीं मिलता है।
दुख तो तब हुआ शान्ता को जब कोई भाई मिलने नहीं आया...
कहते हैं कि जीवनभर शांता राह देखती रही अपने भाइयों की कि वे कभी तो उससे मिलने आएंगे, पर कोई नहीं गया उसका हाल-चाल जानने। मर्यादा पुरुषोत्तम भी नहीं, शायद वे भी रामराज्य में अकाल पड़ने से डरते थे।
कहते हैं कि वन जाते समय भगवान राम अपनी बहन के आश्रम के पास से भी गुजरे थे। तनिक रुक जाते और बहन को दर्शन ही दे देते। बिन बुलाए आने को राजी नहीं थी शांता। सती माता की कथा सुन चुकी थी बचपन में, दशरथ से।
अगले पन्ने पर कौन से राजपूत हैं ऋंग ऋषि के वंशज...
ऐसा माना जाता है कि ऋंग ऋषि और शांता का वंश ही आगे चलकर सेंगर राजपूत बना। सेंगर राजपूत को ऋंगवंशी राजपूत कहा जाता है।