अगले पन्ने पर जब हनुमान मिले सीता से अशोक वाटिका में...
अगले पन्ने पर सीता को ले जाने के लिए क्या कहा हनुमान ने...
हनुमान ने कहा- 'हे माता, मेरे लिए राक्षस और दानवों का कोई मूल्य नहीं। मैं चाहूं तो आपको अभी तत्क्षण राम के समक्ष ले चलूं लेकिन मुझे इसकी आज्ञा नहीं है।'
'हे माता! मैं आपको अभी यहां से लिवा ले जाऊं, पर श्रीरामचन्द्रजी की शपथ है। मुझे प्रभु (राम) की आज्ञा नहीं है। अतः हे माता! कुछ दिन और धीरज धरो। श्रीरामचन्द्रजी वानरों सहित यहां आएंगे।'
सीता माता ने संदेह प्रकट किया कि कैसे तुम मुझे यहां से ले जाओगे?
हनुमानजी ने कहा- श्रीरामचन्द्रजी यहां आएंगे और राक्षसों को मारकर आपको ले जाएंगे। नारद आदि (ऋषि-मुनि) तीनों लोकों में उनका यश गाएंगे। तब सीताजी ने कहा- 'हे पुत्र! सब वानर तुम्हारे ही समान नन्हे-नन्हे-से होंगे। राक्षस तो बड़े बलवान, शक्तिशाली, मायावी और योद्धा हैं, तो यह कैसे होगा संभव?'
सीताजी ने कहा- 'हे वानर पुत्र, मेरे हृदय में बड़ा भारी संदेह होता है कि तुम जैसे बंदर कैसे समुद्र पार करेंगे और कैसे राक्षसों को हरा पाएंगे?'
यह सुनकर हनुमानजी ने अपना शरीर प्रकट किया। सोने के पर्वत (सुमेरु) के आकार का अत्यंत विशाल शरीर था, जो युद्ध में शत्रुओं के हृदय में भय उत्पन्न करने वाला, अत्यंत बलवान और वीर था।
तब विराट रूप को देखकर सीताजी के मन में विश्वास हुआ। हनुमानजी ने फिर छोटा रूप धारण कर लिया और सीता माता से फल खाने की आज्ञा मांगी।
संदर्भ : सुंदरकांड