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Written By अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'

ज्योतिष संबंधी 6 सवाल, जानकर रह जाएंगे हैरान

ज्योतिष संबंधी 6 सवाल, जानकर रह जाएंगे हैरान - astrology
ज्योति का अर्थ होता है प्रकाश और ज्योतिष का अर्थ होता है ज्योति पिंडों का अध्ययन। ज्योतिषशास्त्र का अर्थ प्रकाश वाले पिंडों की गतिविधियों को बताने वाला शास्त्र। वर्तमान में ज्योतिष विद्या विवादों के घेरे में है और इसका कारण वे ज्योतिषशास्त्री हैं, जो लोगों का मनगढ़ंत भविष्य बता रहे हैं या लोगों को ग्रह-नक्षत्र से डरा रहे हैं। डरपोक लोगों के बारे में क्या कहें, वे तो किसी भी चीज से डर जाएंगे।
 
ज्योतिष के त्रिस्कंध हैं यानी इसके 3 प्रमुख स्तंभ हैं- गणित (होरा), संहिता और फलित। कुछ लोग सिद्धांत, संहिता और होरा बताते हैं। एक जमाना था जबकि सारा रेखागणित, बीजगणित, खगोल विज्ञान सब ज्योतिष की ही शाखाएं था, लेकिन अब यह विज्ञान फलित ज्योतिषियों के कारण अज्ञान में बदल गया है।
बहुत से लोगों के मन में आजकल ज्योतिष विद्या को लेकर संदेह और अविश्वास की भावना है जिसका कारण वर्तमान में प्रचलित ज्योतिष और इसको लेकर किया जा रहा व्यापार से है। टीवी चैनलों में ज्योतिष शास्त्री ज्योतिष के संबंध में न मालूम क्या-क्या बातें करके समाज में भय और भ्रम उत्पन्न कर रहे हैं। यही कारण है कि कई लोगों के मन में अब ज्योतिष को लेकर संदेह उत्पन्न होने लगा है, जो कि जायज भी है। आओ जानते हैं मन में उठ रहे ऐसे 10 सवाल जिनके उत्तर आप जानना चाहेंगे।
 
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ज्योतिष का धर्म से क्या संबंध है?
 
'ज्योतिषम् नेत्रमुच्यते'- इसका अर्थ होता है कि वेद को समझने के लिए, सृष्टि को समझने के लिए ‘ज्योतिष शास्त्र’ को जानना आवश्यक है। ज्योतिष को वेदों का नेत्र कहा गया है, लेकिन सवाल यह उठता है कि कौन-सा ज्योतिष? वेदों में जिस ज्योतिष विज्ञान की चर्चा की गई वह ज्योतिष या आजकल जो प्रचलित है वह ज्योतिष?
 
कहते हैं कि ऋग्वेद में ज्योतिष से संबंधित 30 श्लोक हैं, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक हैं। वेदों के उक्त श्लोकों पर आधारित आज का ज्योतिष पूर्णत: बदलकर भटक गया है। भविष्य बताने वाली विद्या को फलित ज्योतिष कहा जाता है जिसका वेदों से कोई संबंध नहीं है। ज्योतिष को 6 वेदांगों में शामिल किया गया है। ये 6 वेदांग हैं- 1. शिक्षा, 2. कल्प, 3. व्याकरण, 4. निरुक्त, 5. छंद और 6. ज्योतिष।
 
फलित ज्योतिष : फलित ज्योतिष के नाम से आजकल प्रचलित हैं, जैसे हस्त-रेखा विज्ञान, भविष्य-फल, राशिफल, जन्म-कुंडली। इससे वर्तमान के ज्योतिषशास्त्री लोगों का भविष्य बताते हैं या उनकी जिंदगी में आए दुखों का समाधान करते हैं और उनमें से कुछ इसी बात का फायदा उठाते हैं। वेदों में आने वाले बुद्ध, बृहस्पति, शनि आदि शब्द ग्रहों के परिचायक नहीं।
 
वेदों में ज्योतिष तो है, परंतु वह फलित ज्योतिष कदापि नहीं है। फलित ज्योतिष में यह माना जाता है कि या तो जीवों को कर्म करने की स्वतंत्रता है ही नहीं, अगर है भी तो वह ग्रह-नक्षत्रों के प्रभावों से कम है अर्थात आपका भाग्य-निर्माता शनि ग्रह या मंगल ग्रह है। यह धारणा धर्म विरुद्ध है। रावण ने जिस शनि को जेल में डाल रखा था, वह कोई ग्रह नहीं था। जिस राहु ने हनुमानजी का रास्ता रोका था, वह भी कोई ग्रह नहीं था। वे सभी इस धरती पर निवास करने वाले देव और दानव थे।
 
हिन्दू धर्म कर्मप्रधान धर्म है, भाग्य प्रधान नहीं। वेद, उपनिषद और गीता कर्म की शिक्षा देते हैं। सूर्य को इस जगत की आत्मा कहा गया है। एक समय था जबकि ध्यान और मोक्ष की प्राप्ति के लिए ज्योतिष का भी सहारा लिया जाता था लेकिन अब नहीं। प्राचीनकाल में ज्योतिष विद्या का उपयोग उचित जगह पर करने के लिए घर, आश्रम, मंदिर, मठ या गुरुकुल बनाने के लिए ज्योतिष विद्या की सहायता ली जाती थी।
 
वैदिक ज्ञान के बल पर भारत में एक से बढ़कर एक खगोलशास्त्री या ज्योतिष हुए हुए हैं। इनमें गर्ग, आर्यभट्ट, भृगु, बृहस्पति, कश्यप, पाराशर, वराह मिहिर, पित्रायुस, बैद्यनाथ आदि प्रमुख हैं। उस काल में खगोलशास्त्र ज्योतिष विद्या का ही एक अंग हुआ करता था। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ज्योतिष के 18 महर्षि प्रवर्तक या संस्थापक हुए हैं। कश्यप के मतानुसार इनके नाम क्रमश: सूर्य, पितामह, व्यास, वशिष्ट, अत्रि, पाराशर, कश्यप, नारद, गर्ग, मरीचि, मनु, अंगिरा, लोमेश, पौलिश, च्यवन, यवन, भृगु एवं शौनक हैं। 
 
गीता में लिखा गया है कि ये संसार उल्टा पेड़ है। इसकी जड़ें ऊपर और शाखाएं नीचे हैं। यदि कुछ मांगना और प्रार्थना करना है तो ऊपर करना होगी, नीचे कुछ भी नहीं मिलेगा। आदमी का मस्तिष्क उसकी जड़ें हैं। उसी तरह यह ज्योतिष विज्ञान भी वृहत्तर है जिसे समझना और समझाना मुश्किल है। यहां हम ज्योतिष विज्ञान का विरोध नहीं कर रहे हैं। 
 
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ज्योतिष विद्या को मानना चाहिए या नहीं?
वर्तमान में प्रचलित ज्योतिष विद्या एक ऐसी विद्या है, जो आपको धर्म और ईश्वर से दूर करके ग्रहों को पूजने की शिक्षा देती है, जो कि गलत है। यह विद्या आपको शनि, राहु, केतु और मंगल से डराने वाली विद्या है और यही कारण है कि वर्तमान में शनि के मंदिर बहुत बन गए हैं। लोग कालसर्प दोष, ग्रह दोष और पितृ दोष से परेशान होकर घाट-घाट के चक्कर काट रहे हैं। 
दरअसल, प्रारंभ में यह ज्ञान राजा, पंडित, आचार्य, ऋषि, दार्शनिक और विज्ञान की समझ रखने वालों तक ही सीमित था। ये लोग इस ज्ञान का उपयोग मौसम को जानने, वास्तु रचना करने तथा सितारों की गति से होने वाले परिवर्तनों को जानने के लिए करते थे। इस ज्ञान के बल पर वे राज्य को प्राकृतिक घटनाओं से बचाते थे और ठीक समय पर ही कोई कार्य करते थे।
 
धीरे-धीरे यह विद्या जन सामान्य तक पहुंची तो राजा और प्रजा सहित सभी ने इस विद्या में मनमाने विश्वास और धारणाएं जोड़ीं। अंध धारणाओं के कारण धीरे-धीरे इसमें विकृतियां आने लगीं, लोग इसका गलत प्रयोग करने लगे। राजा भी इस विद्या के माध्यम से लोगों को डराकर अपने राज्य में विद्रोह को दबाना चाहता था और पंडित ने भी अपना चोला बदल लिया था।
 
इस सब कारण के चलते विद्धान ज्योतिषाचार्य व ज्योतिष ग्रंथ समाप्त हो गए। शोध कार्य मृतप्राय होकर बंद हो गए। अज्ञानी लोगों ने ज्योतिष का दुरुपयोग करना शुरू कर दिया। इसे व्यापार का रूप देकर धन कमाने के लालच में झूठी भविष्यवाणी करके शोषक ‍वर्ग शोषण के धंधे में लग गया। जो भविष्यवाणी सच नहीं होती उसके भी मनमाने कारण निर्मित कर लिए जाते और जो सच हो जाती उसका बढ़ा-चढ़ाकर बखान किया जाता। इसके चलते भारत में ज्योतिष का जन्म होने के बावजूद अब यह विद्या भारत से ही लुप्त हो चली है।
 
अब इस विद्या की जगह एक नई विद्या है कुंडली पर आधारित फलित ज्योतिष। ज्योतिषाचार्यों की महंगी फीस, महंगे व गलत उपायों से जनसामान्य आज भी धोखे में जी रहा है। आज ज्योतिष मात्र खिलवाड़ का विषय बन गया है। टीवी चैनलों के माध्यम से तो इस विद्या के दुरुपयोग का और भी विस्तार हो गया है। अब इसे विज्ञान कहना गलत होगा।
 
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ग्रह, ग्रह है या देवता या देवता एवं ग्रहों में क्या फर्क है?
 
कालांतर में प्रत्येक ग्रह का एक देवता नियुक्त कैसे हो गया, यह शोध का विषय है। कुछ लोग कहते हैं कि जब हमारे ऋषियों के समक्ष ग्रहों की चाल, दशा और दिशा बताने का कोई ठोस उपाय नहीं था तब उन्होंने इस संपूर्ण घटनाक्रम को एक कथा में पिरोया। अब किसी देवता की कहानी को ग्रह की कहानी से निकालकर देखना और किसी ग्रह की कहानी को देवता की कहानी से निकालकर देखना जरूरी है। ऋषियों ने तारामंडल के इस संपूर्ण डाटा को संरक्षित रखने के लिए प्रत्येक ग्रह का एक देवता नियुक्त कर उस आधार पर पंचांग, कैलेंडर आदि बनाए और ग्रहों की चाल को बताने के लिए कथा का भी सृजन किया। 
सूर्य ग्रह को कश्यप ऋषि की पत्नी अदिति के सबसे बड़े पुत्र आदित्य से जोड़ दिया गया। सभी आदित्यों को देवता माना गया। सूर्य रविवार के स्वामी हैं। इसी तरह चन्द्र ग्रह को वैदिक देवता चन्द्र से जोड़ा गया। उन्हें सोम भी कहा जाता है, जो ऋषि अत्रि के कुल के हैं। ये सोमवार के स्वामी हैं। इसी तरह मंगल ग्रह को मंगलदेव से जोड़ा गया जिन्हें अंगारक भी कहा जाता है। इन्हें भूमि पुत्र कहा गया है। इसी तरह अत्रिकुल के ही इला के पुत्र बुध को बुध ग्रह का देवता माना गया। इन्हीं के पुत्र का नाम चन्द्र है। इसका वार बुधवार है। इसी तरह बृहस्पति ग्रह को ऋषि बृहस्पति से जोड़ा गया, जो देवताओं के गुरु हैं। गुरुवार उनका वार है। इसी तरह देवताओं के गुरु शुक्राचार्य के नाम पर शुक्र ग्रह नियुक्त किया गया, जो कि शुक्रवार के स्वामी ग्रह हैं। इसी तरह सूर्य के पुत्र शनि को शनि ग्रह का देवता नियुक्त किया गया, जो शनिवार के स्वामी हैं।
 
निश्‍चित ही देवता और ग्रह दोनों अलग-अलग हैं। जो देवता जिस ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है या जिस देवता का चरित्र जिस ग्रह के समान है या यह कहें कि ग्रहों की प्रकृति को दर्शाने के लिए उसकी प्रकृति अनुसार ग्रहों के नाम उक्त देवताओं पर रखें गए, जो उस प्रकृति के हैं।
 
राहु और केतु एक दानव थे जिन्होंने अमृत मंथन के समय चोरी से अमृत का स्वाद चख लिया था। सभी ग्रहों की छाया को राहु और केतु की छाया माना जाता है। इस छाया का भी धरती पर प्रभाव पड़ता है। कुछ ज्योतिषाचार्य कहते हैं कि यह दक्षिणी और उत्तरी ध्रुव का प्रतीक है। ज्योतिष के अनुसार केतु और राहु आकाशीय परिधि में चलने वाले चन्द्रमा और सूर्य के मार्ग के प्रतिच्छेदन बिंदु को निरूपित करते हैं इसलिए राहु और केतु को क्रमशः उत्तर और दक्षिण चन्द्र आसंधि कहा जाता है। यह तथ्य कि ग्रहण तब होता है, जब सूर्य और चन्द्रमा इनमें से एक बिंदु पर होते हैं।
 
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क्या ग्रहों का मानव जीवन पर प्रभाव पड़ता है?
प्रकाशयुक्त अंतरिक्ष पिंड को नक्षत्र कहा जाता है। हमारा सूर्य भी एक नक्षत्र है। ये नक्षत्र कोई चेतन प्राणी नहीं हैं, जो किसी व्यक्ति विशेष पर प्रसन्न या क्रोधित होते हैं। हमारी धरती पर सूर्य का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है, उसके बाद चन्द्रमा का प्रभाव माना गया है। उसी तरह क्रमश: मंगल, गुरु, बुद्ध और शनि का भी प्रभाव पड़ता है। ग्रहों का प्रभाव संपूर्ण धरती पर पड़ता है, किसी एक मानव पर नहीं। धरती के जिस भी क्षेत्र विशेष में जिस भी ग्रह विशेष का प्रभाव पड़ता है, उस क्षेत्र विशेष में परिवर्तन देखने को मिलते हैं।
धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का प्रभाव संपूर्ण धरती पर रहता है और पृथ्वी एक सीमा तक सभी वस्तुओं को अपनी ओर खींचती है। समुद्र में ज्वार-भाटा का आना भी सूर्य और चन्द्र की आकर्षण शक्ति का प्रभाव है। अमावस्या और पूर्णिमा का भी हमारी धरती पर प्रभाव पड़ता है। 
 
जब हम प्रभाव पड़ने की बात करते हैं तो इसका मतलब यह कि एक जड़ वस्तु ‍चाहे वह चन्द्रमा हो, उसका प्रभाव दूसरी जड़ वस्तु चाहे वह समुद्र का जल हो या हमारे पेट का जल, पर पड़ता है। लेकिन हमारे मन और विचारों को हम नियंत्रण में रख सकते हैं। 
 
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हमें ग्रहों को पूजना चाहिए या नहीं?
ज्योतिष शास्त्र के अंतर्गत बीजगणित, अंकगणित, भूगोल, खगोल और भूगर्भ विधा आती है जिनमें ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, ऋतुएं, उत्तरायन, दक्षिणायन, दिन, मास, वर्ष, युग, मन्वंतर, कल्प, प्रलय आदि अनेक विषयों का अध्ययन किया जाता है, परंतु इस ज्योतिष के नाम पर फलित ज्योतिष खड़ा किया गया है जिसका संबंध जीवों के कर्मफल से जोड़ा गया है।
इस फलित ज्योतिष का उद्देश्य ही जीवों का भविष्य जानना, इष्ट लाभ और अनिष्ट परिहार (नष्ट करना) है। फलित ज्योतिष में भविष्य जानने के लिए जन्म पत्रिका, हस्तरेखा, राशि, ग्रह, नक्षत्र, शकुन, अंग स्फुरण, तिल और स्वप्न आदि को आधार बनाया जाता है। फलित ज्योतिष का वर्तमान में अत्यधिक प्रचार-प्रसार होने से 'ज्योतिष' शब्द का अर्थ फलित ज्योतिष के अर्थ में रूढ़ (निश्चित) हो गया है। अशिक्षितजनों से लेकर शिक्षितजनों तक फलित ज्योतिष के द्वारा भविष्यफल देखने-दिखाने की प्रवृत्ति देखी जाती है, जो समाज में ज्योतिष विषयक फैले अज्ञान का परिचायक है।
 
फलित ज्योतिष द्वारा धूर्त लोग अनेक मिथ्या ग्रंथ बना, लोगों को सत्य ग्रंथों से विमुख कर अपने जाल में फंसाकर अपना उल्लू सीधा करते हैं। इन्हीं लोगों ने ग्रहों की पूजा को प्रचलन में लाया है और अब तो ग्रह और नक्षत्रों के मंदिर भी बन गए हैं। कोई मूर्ख ही होगा, जो ग्रह शांति और ग्रहों की पूजा का कार्य करता होगा। 

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क्या कोई-सा ग्रह खराब या अच्छा होता है?
 
कोई-सा भी ग्रह न तो खराब होता है और न अच्छा। ग्रहों का धरती पर प्रभाव पड़ता है लेकिन उस प्रभाव को कुछ लोग हजम कर जाते हैं और कुछ नहीं। प्रकृति की प्रत्येक वस्तु का प्रभाव अन्य सभी जड़ वस्तुओं पर पड़ता है।
ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार ग्रहों के पृथ्वी के वातावरण एवं प्राणियों पर पड़ने वाले प्रभावों का अध्ययन-विश्लेषण भी किया जाता है। एक ज्योतिष या खगोलविद यह बता सकता है कि इस बार बारिश अच्छी होगी या नहीं।
 
जहां तक अच्छे और बुरे प्रभाव का संबंध है, तो इस संबंध में कहा जाता है कि जब मौसम बदलता है तो कुछ लोग ‍बीमार पड़ जाते हैं और कुछ नहीं। ऐसा इसलिए कि जिसमें जितनी प्रतिरोधक क्षमता है वह उतनी क्षमता से प्रकृति के बुरे प्रभाव से लड़ेगा। दूसरा उदाहरण है कि जिस प्रकार एक ही भूमि में बोए गए आम, नीम, बबूल अपनी-अपनी प्रकृति के अनुसार गुण-धर्मों का चयन कर लेते हैं और सोने की खदान की ओर सोना, चांदी की ओर चांदी और लोहे की खदान की ओर लोहा आकर्षित होता है, ठीक उसी प्रकार पृथ्वी के जीवधारी विश्व चेतना के अथाह सागर में रहते हुए भी अपनी-अपनी प्रकृति के अनुरूप भले-बुरे प्रभावों से प्रभावित होते हैं।