इश्क़ का राज़ गर न खुल जाता
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मीर हसन इश्क़ का राज़ गर न खुल जाताइस क़दर तू न हम से शर्माताआके तब बैठता है वह हम पासआप में जब हमें नहीं पाताज़िंदगी ने वफ़ा न की वर्ना-मैं तमाशा वफ़ा का दिखलातामर गए हम तो कहते-कहते हालकुछ तो तू भी जबाँ से फ़रमातासब यह बातें हैं चाह की वर्नाइस क़दर तू न हम पे झुँझलातामैं न सुनता किसी की बात 'हसन'दिल जो बातें न मुझ को सुनवाता