15 अप्रैल 2021 को है मत्स्यावतार जयंती, जानिए पौराणिक कथा
मत्स्य अवतार भगवान विष्णु के 10 अवतारों के क्रम में प्रथम अवतार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को उनका अवतार हुआ था। पुराणों के अनुसार भगवान विष्णु ने सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए मत्स्यावतार लिया था। मत्स्य अर्थात मछली। कहते हैं इस अवतार में उन्होंने वैवस्वत मनु को एक विशाल नाव बनाकर उसमें सभी पशु, पक्षी, नर नारी, ऋषि मुनियों को रखने का आदेश दिया था ताकि जल प्रलय के समय अधिकतर प्रजातियां बची रहें। आओ जानते हैं इस अवतार की कथा।
पौराणिक कथा : द्रविड़ देश के राजर्षि सत्यव्रत कृतमाला नदी में स्नान कर रहे थे। जब उन्होंने अंजलि में जल लिया तो उनके हाथ में एक छोटीसी मछली आ गई। राजा ने मछली को पुन: नदी के जल में छोड़ दिया। छोड़ते ही मछली ने कहा राजा नदी के बड़े बड़े जीव छोटे जीवों को खा जाते हैं। मुझे भी कोई मारकर खा जाएगा। कृपया मेरे प्राणों की रक्षा करें।
यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होंने मछली को अपने कमंडल में डाल दिया। लेकिन एक रात में मछली का शरीर इतना बड़ गया कि कमंडल छोटा पड़ने लगा। तब राजा ने मछली को निकालकर मटके में डाल दिया। वहां भी मछली एक रात में बड़ी हो गई। तब राजा ने मछली को निकालकर अपने सरोवर में डाल दिया। अब वह निश्चिंत थे कि सरोवर में वह सुविधापूर्ण तरीके से रहेगी, लेकिन एक ही रात में मछली के लिए सवरोवर भी छोटा पड़ने लगा। यह देखकर राजा को घोर आश्चर्य हुआ। तब राजा समझ गए कि यह कोई साधारण मछली नहीं है।
उन्होंने उस मछली के समक्ष हाथ जोड़कर कहा कि मैं जान गया हूं कि निश्चय ही आप कोई महान आत्मा हैं। यदि यह बात सत्य है, तो कृपा करके बताइए कि आपने मत्स्य का रूप क्यों धारण किया है?
तब राजर्षि सत्यव्रत के समक्ष भगवान विष्णु ने प्रकट होकर कहा कि हे राजन! हयग्रीव नामक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है। जगत् में चारों ओर अज्ञान और अधर्म का अंधकार फैला हुआ है। मैंने हयग्रीव को मारने के लिए ही मत्स्य का रूप धारण किया है। आज से सातवें दिन भूमि जल प्रलय से समुद्र में डूब जाएगी। तब तक तुम एक नौका बनवा लो और समस्त प्राणियों के सूक्ष्म शरीर तथा सब प्रकार के बीज लेकर सप्तर्षियों के साथ उस नौका पर चढ़ जाना। प्रचंड आंधी के कारण जब नाव डगमगाने लगेगी तब मैं मत्स्य रूप में तुम सबको बचाऊंगा।
तुम लोग नाव को मेरे सींग से बांध देना। तब प्रलय के अंत तक मैं तुम्हारी नाव खींचता रहूंगा। उस समय भगवान मत्स्य ने नौका को हिमालय की चोटी से बांध दिया। उसे चोटी को नौकाबंध कहा जाता है।
प्रलय का प्रकोप शांत होने पर भगवान ने हयग्रीव का वध करके उससे वेद छीनकर ब्रह्माजी को पुनः दे दिए। भगवान ने प्रलय समाप्त होने पर राजा सत्यव्रत को वेद का ज्ञान वापस दिया। राजा सत्यव्रत ज्ञान-विज्ञान से युक्त हो वैवस्वत मनु कहलाए। उक्त नौका में जो बच गए थे उन्हीं से संसार में जीवन चला।