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Written By WD Feature Desk
Last Updated : सोमवार, 3 नवंबर 2025 (16:55 IST)

dev diwali katha 2025: कार्तिक मास पूर्णिमा देव दिवाली की पौराणिक कथा

Dev Diwali Mythological Story
Kartik Purnima 2025: देव दीपावली, जो दीपावली के ठीक पंद्रह दिन बाद कार्तिक पूर्णिमा के शुभ अवसर पर मनाई जाती है, इसे 'देवताओं की दिवाली' भी कहा जाता है। यह पर्व अंधकार पर प्रकाश और बुराई पर अच्छाई की दिव्य विजय का प्रतीक है। विशेष रूप से, यह त्योहार भगवान शिव की प्रिय नगरी काशी में गंगा घाटों पर लाखों दीपों से मनाया जाता है। यहां पढ़ें देव दिवाली पर्व मनाने की पौराणिक कथा...ALSO READ: Dev Diwali 2025: देव दिवाली पर 5 जगहों पर करें दीपदान, देवता स्वयं करेंगे आपकी हर समस्या का समाधान
 
1. विष्णुजी के जागने की खुशी में: यह भी कहा कहा जाता है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योग निद्रा में लीन हो जाते हैं और फिर वे कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। उस दिन उनका तुलसी विवाह होता है और इसके बाद भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागरण से प्रसन्न होकर सभी देवी-देवताओं ने कार्तिक पूर्णिमा को लक्ष्मी और नारायण की महाआरती कर दीप प्रज्वलित कर खुशियां माई थी।
 
2. त्रिपुरासुर का वध : पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कार्तिकेय द्वारा तारकासुर का वध करने के बाद उसके तीनों पुत्रों ने देवताओं से बदला लेने का प्रण कर लिया। उन्होंने कठोर तप करके ब्रह्माजी से वरदान मांगा। हे प्रभु! आप हमारे लिए तीन पुरियों का निर्माण कर दें और वे तीनों पुरियां जब अभिजीत् नक्षत्र में एक पंक्ति में खड़ी हों और कोई क्रोधजित् अत्यंत शांत अवस्था में असंभव रथ और असंभव बाण का सहारा लेकर हमें मारना चाहे, तब हमारी मृत्यु हो। ब्रह्माजी ने कहा- तथास्तु! इसके बाद तीनों ने अपने आतंक से पूरी पाताल, धरती और स्वर्ग लोक में सभी को त्रस्त कर दिया था। 
 
देवता, ऋषि और मुनि भगवान शिव से सहायता मांगने गए और उनसे राक्षस का अंत करने की प्रार्थना की। इसके बाद भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया। राक्षस के अंत की खुशी में सभी देवता प्रसन्न होकर भोलेनाथ की नगरी काशी पहुंचे और इस दौरान उन्होंने काशी में लाखों दीये जलाकर खुशियां मनाई। जिस दिन ये हुआ, उस दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से आज तक कार्तिक मास की पूर्णिमा पर काशी में बड़े रूप में देव दीपावली मनाई जाती है।
 
3. त्रिशंकु कथा: कहते हैं कि त्रिशंकु को राजर्षि विश्वामित्र ने अपने तपोबल से स्वर्ग पहुंचा दिया था। देवतागण इससे उद्विग्न हो गए और त्रिशंकु को देवताओं ने स्वर्ग से भगा दिया। शापग्रस्त त्रिशंकु अधर में लटके रहे। त्रिशंकु को स्वर्ग से निष्कासित किए जाने से क्षुब्ध विश्वामित्र ने पृथ्वी-स्वर्ग आदि से मुक्त एक नई समूची सृष्टि की ही अपने तपोबल से रचना प्रारंभ कर दी। उन्होंने कुश, मिट्टी, ऊंट, बकरी-भेड़, नारियल, कोहड़ा, सिंघाड़ा आदि की रचना का क्रम प्रारंभ कर दिया। 
 
इसी क्रम में विश्वामित्र ने वर्तमान ब्रह्मा, विष्णु और महेश की प्रतिमा बनाकर उन्हें अभिमंत्रित कर उनमें प्राण फूंकना आरंभ किया। सारी सृष्टि डांवाडोल हो उठी। हर ओर कोहराम मच गया। हाहाकार के बीच देवताओं ने राजर्षि विश्वामित्र की अभ्यर्थना की। महर्षि प्रसन्न हो गए और उन्होंने नई सृष्टि की रचना का अपना संकल्प वापस ले लिया। देवताओं और ऋषि-मुनियों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। पृथ्वी, स्वर्ग, पाताल सभी जगह इस अवसर पर दीपावली मनाई गई। यही अवसर अब देव दीपावली के रूप में जाना जाता है।ALSO READ: Dev Diwali 2025: देव दिवाली पर इस तरह करें नदी में दीपदान, घर के संकट होंगे दूर और धन धान्य रहेगा भरपूर
 
4. स्वर्ग प्राप्ति की खुशी: यह भी कहा जाता है कि बाली से वामनदेव द्वारा स्वर्ग की प्राप्ति की खुशी में सभी देवताओं ने मिलकर कार्तिक मास की पूर्णिमा को खुशी मनाकर गंगा तट पर दीपक जलाए थे तभी से देव दिवाली मनाई जाती है। इस पूर्णिमा को ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य आदि ने महापुनीत पर्व प्रमाणित किया है। इसी दिन भगवान विष्णु ने सतयुग में मत्स्य अवतार लिया था। कहते हैं कि कार्तिक पूर्णिमा को ही श्रीकृष्ण को आत्मबोध हुआ था।यह भी कहा जाता है कि इसी दिन देवी तुलसीजी का प्राकट्य हुआ था।ALSO READ: When is Dev Diwali: देव दिवाली कब हैं- देव उठनी एकादशी पर या कार्तिक पूर्णिमा पर?

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