शनिवार, 21 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. धर्म-संसार
  2. धर्म-दर्शन
  3. धार्मिक स्थल
  4. तंजौर के मंदिर के 10 रहस्य, बगैर नींव पर खड़ा है 1000 वर्षों से
Last Updated : शुक्रवार, 27 दिसंबर 2019 (17:42 IST)

तंजौर के मंदिर के 10 रहस्य, बगैर नींव पर खड़ा है 1000 वर्षों से

brihadeeswarar temple | तंजौर के मंदिर के 10 रहस्य, बगैर नींव पर खड़ा है 1000 वर्षों से
आक्रांताओं के द्वारा तोड़े जाने के बावजूद भारत में आज भी वास्तु के अनुसार चमत्कृत कर देने वाले मंदिर स्थित है। उन्हीं में से एक है भगवान शिव को समर्पित तंजावुर या तंजौर का बृहदीश्वर मंदिर जिसे 'बड़ा मंदिर' कहते हैं। भारत की मंदिर शिल्प का उत्कृष्ट उदाहरण है तंजावुर स्थित बृहदीश्वर मंदिर। इस भव्य मंदिर को सन 1987 में यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया।
 
 
राजाराज चोल प्रथम ने 1004 से 1009 ईस्वी सन् के दौरान इस मंदिर का निर्माण कराया था। चोल शासकों ने इस मंदिर को राजराजेश्वर नाम दिया था लेकिन तंजौर पर हमला करने वाले मराठा शासकों ने इस मंदिर का नाम बदलकर बृहदेश्वर कर दिया। आओ जानते हैं इस मंदिर के 10 ऐसे रहस्य जिन्हें जानकर आप दांतों चले अंगुलिया दबा लेंगे।
 
 
1.गुंबद की नहीं पड़ती है छाया : पत्थरों से बना यह अद्भुत और विशालकाय मंदिर है और वास्तुकला का उत्तम प्रतीक है। इस मंदिर की रचना और गुंबद की रचना इस प्रकार हुई है कि सूर्य इसके चारों ओर घुम जाता है लेकिन इसके गुंबद की छाया भूमि पर नहीं पड़ती है। दोपहर को मंदिर के हर हिस्से की परछाई जमीन पर दिखती है लेकिन गुंबद की नहीं। हालांकि इसकी कोई पुष्टी नहीं करता है। इस मंदिर के गुंबद को करीब 88 टन के एक पत्थर से बनाया गया है और उसके ऊपर एक स्वर्ण कलश रखा हुआ है। मतलब इस गुम्बद के ऊपर एक 12 फीट का कुम्बम रखा गया है।
 
 
2.पजल्स सिस्टम : मंदिरों के पत्थरों, पीलरों आदि को देखने से पचा चलेगा कि यहां के पत्थरों को एक दूसरे से किसी भी प्रकार से चिपकाया नहीं गया है बल्कि पत्‍थरों को इस तरह काटकर एक दूसरे के साथ फिक्स किया गया है कि वे कभी अलग नहीं हो सकते। इस विशाल मंदिर को लगभग 130,000 टन ग्रेनाइट से बनाया गया है और इसे जोड़ने के लिए ना तो किसी ग्लू का इस्तेमाल किया गया है और ना ही चूने या सीमेंट का। मंदिर को पजल्स सिस्टम से जोड़ा गया है। सबसे आश्चर्य वाली बात तो यह कि विशालकाय और ऊंचे मंदिर के गोपुर के शीर्ष पर करीब 80 टन वजन का वह पत्‍थर कैसे रखा गया जिसे कैप स्टोन कहते हैं। उस दौरा में तो कोई क्रैन वगैरह होती नहीं थी। आश्चर्य यह है कि उस दौर में मंदिर के लगभग 100 किलोमीटर के दायरे में एक भी ग्रेनाइट की खदान नहीं थी। फिर कैसे और कहां से यह लाए गए होंगे।
 
 
3.प्राकृतिक रंग और अद्भुत चित्रकारी : इस मंदिर को ध्यान से देखने पर लगेगा कि शिखर पर सिंदूरी रंग पोता गया है या रंगा गया है लेकिन यह रंग बनावटी नहीं बल्की पत्थर का प्राकृतिक रंग ही ऐसा है। यहां का प्रत्येक पत्थर अनूठे रंग से रंगीन है। जैसे-जैसे आप मंदिर की परिक्रमा करते हुए उसके चारों ओर घूमते हैं, आपको यहां की दीवारों पे विभिन्न देवी-देवता और उनसे जुड़ी कहानियों के दृश्यों को दर्शाती हुई अनेकों मूर्तियां देखेंगी। इन मूर्तियों को रखने के लिए बनाए गए कोष्ठ पंजर या आले, पवित्र घड़े का चित्रण करने वाले कुंभ पंजर के साथ बिखरे हुए हैं। माना जाता है कि, इस मंदिर के भीतरी पवित्र गर्भगृह के प्रदक्षिणा मार्ग की दीवारों पर पहले चोल कालीन चित्रकारी हुआ करती थी, जिन्हें बाद में नायक वंशियों के समय की चित्रकारी से अधिरोपित किया गया था। बृहदीश्वर मंदिर के चारों ओर गलियारों की दीवारों पर एक खास प्रकार की चित्रकारी देखने को मिलती है। यह अन्य चित्रकलाओं से भिन्न है, बहुत सुंदर भी है और देखने लायक तो है ही। यह मंदिर वास्तुकला, पाषाण व ताम्र में शिल्पांकन, चित्रांकन, नृत्य, संगीत, आभूषण एवं उत्कीर्णकला का बेजोड़ नमूना है।
 
  
4.विशालकाय नंदी : यहां एक अद्भुत और विशालकाय नंदी है। एक विशालकाय चबूतरे के ऊपर विराजमान नंदी की प्रतिमा अद्भुत है। नंदी मंडप की छत शुभ्र नीले और सुनहरे पीले रंग की है इस मंडप के सामने ही एक स्तंभ है जिस पर भगवान शिव और उनके वाहन को प्रणाम करते हुए राजा का चित्र बनाया गया है। यहां स्थित नंदी की प्रतिमा भारतवर्ष में एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गई नंदी की दूसरी सर्वाधिक विशाल प्रतिमा है। यह 12 फुट लंबी, 12 फुट ऊंची और 19 फुट चौड़ी है। 25 टन वजन की यह मूर्ति 16वीं सदी में विजयनगर शासनकाल में बनाई गई थी।
 
 
5.विशालकाय शिखर : बृहदीश्वर मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही दो गोपुरम बनवाए गए हैं। इन दोनों गोपुरमों से गुजरते ही, आपको सामने ही, मंदिर का दृश्य अवरुद्ध करता हुआ एक विशाल नंदी दिखेगा। मंदिर के इस भाग को नंदी मंडप कहा जाता है। नंदी की यह विशाल मूर्ति देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे इसे मंदिर को बुरी नजर से बचाने का काम सौंपा गया हो। नंदी मंडप पार करते ही मंदिर की सबसे भव्य संरचना अथवा, मंदिर का शिखर आपका ध्यान अपनी ओर खींचता है। मंदिर की शिखर के शीर्ष पर एक ही पत्थर से बनाया हुआ विशाल वृत्ताकार कलश स्थापित किया गया है। इसे देखकर मन में यह शंका उत्पन्न होती है कि, शिखर का संतुलन बनाए रखने के लिए कहीं पूरा मंदिर ही डगमगा ना जाए। इस मंदिर के गुंबद को 80 टन के एक पत्थर से बनाया गया है, और उसके ऊपर एक स्वर्ण कलश रखा हुआ है।
 
 
6. दुनिया का सबसे ऊंचा मंदिर : 13 मंजिला इस मंदिर को तंजौर के किसी भी कोने से देखा जा सकता है। मंदिर की ऊंचाई 216 फुट (66 मीटर) है और संभवत: यह विश्व का सबसे ऊंचा मंदिर है। लगभग 240.90 मीटर लम्‍बा और 122 मीटर चौड़ा है। यह एक के ऊपर एक लगे हुए 14 आयतों द्वारा बनाई गई है, जिन्हें बीच से खोखला रखा गया है। 14वें आयतों के ऊपर एक बड़ा और लगभग 88 टन भारी गुम्बद रखा गया है जो कि इस पूरी आकृति को बंधन शक्ति प्रदान करता है। इस गुम्बद के ऊपर एक 12 फीट का कुम्बम रखा गया है। चेन्नई से 310 कि.मी. दूर स्थित है तंजावुर का यह मंदिर कावेरी नदी के तट पर 1000 सालों से अविचल और शान से खड़ा हुआ है।
 
 
7.विशालकाय शिवलिंग : इस मंदिर में प्रवेश करते ही एक 13 फीट ऊंचे शिवलिंग के दर्शन होते है। शिवलिंग के साथ एक विशाल पंच मुखी सर्प विराजमान है जो फनों से शिवलिंग को छाया प्रदान कर रहा है। इसके दोनों तरफ दो मोटी दीवारें हैं, जिनमें लगभग 6 फीट की दूरी है। बाहरी दीवार पर एक बड़ी आकृति बनी हुई है, जिसे 'विमान' कहा जाता है। मुख्य विमान को दक्षिण मेरु कहा जाता है।
 
 
8.बगैर नींव का मंदिर : आश्चर्य की बात यह है कि यह विशालकाय मंदिर बगैर नींव के खड़ा है। बगैर नींव के इस तरह का निर्माण संभव कैसे है? तो इसका जवाब है कन्याकुमारी में स्थित 133 फीट लंबी तिरुवल्लुवर की मूर्ति, जिसे इसी तरह की वास्तुशिल्प तकनीक के प्रयोग से बनाया गया है। यह मूर्ति 2004 में आए सुनामी में भी खड़ी रही। भारत को मंदिरों और तीर्थस्थानों का देश कहा जाता है, लेकिन तंजावुर का यह मंदिर हमारी कल्पना से परे है। कहते हैं बिना नींव का यह मंदिर भगवान शिव की कृपा के कारण ही अपनी जगह पर अडिग खड़ा है। 
 
 
9. पिरामिड का आभास देता मंदिर : इस मंदिर को गौर से देखने पर लगता है कि यह पिरामिड जैसी दिखने वाली महाकाय संरचना है जिसमें एक प्रकार की लय और समरूपता है जो आपकी भावनाओं के साथ प्रतिध्वनित होती है। कहते हैं कि इस मंदिर को बनाने के आइडिया चोल राजा को श्रीलंका यात्रा के दौरान तब सपने में आया था जबकि वे सो रहे थे।
 
 
10. उत्कृष्ठ शिलालेख : इस मंदिर के शिलालेखों को देखना भी अद्भुत है। शिललेखों में अंकित संस्कृत व तमिल लेख सुलेखों का उत्कृष्ट उदाहरण हैं। इस मंदिर के चारों ओर सुंदर अक्षरों में नक्‍काशी द्वारा लिखे गए शिलालेखों की एक लंबी श्रृंखला देखी जा सकती है। इनमें से प्रत्येक गहने का विस्तार से उल्लेख किया गया है। इन शिलालेखों में कुल तेईस विभिन्न प्रकार के मोती, हीरे और माणिक की ग्यारह किस्में बताई गई हैं।