शनि, राहु और केतु को ग्रह माना जाता है फिर उन्हें भगवान क्यों कहें? फिर उनकी पूजा क्यों करें? हाल ही में शनि शिंगणापुर में महिलाओं द्वारा शनिदेव की चबूतरे पर ही पूजा किए जाने की जिद्द के चलते विवाद हो चला है।
इस शनि शिंगणापुर विवाद पर टिप्पणी करते हुए शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने गुरुवार को कहा कि शनि को बुलाया नहीं भगाया जाता है। शनि पूजा का विरोध करते हुए उन्होंने कहा कि शनि की पूजा से कोई लाभ नहीं मिलता। शनि देवता नहीं ग्रह है। इससे पहले शंकराचार्य सरस्वती ने साईंबाबा को भी भगवान मानने से इनकार करते हुए उनकी पूरा का विरोध किया था। संभवत: शंकराचार्य ने पुराण नहीं पढ़े हैं तभी वे ऐसी बातें कर रहे हैं। हालांकि वे भी क्यां करें, शनिदेव और शनिग्रह की कथा को ज्योतिषियों ने इस कदर गुत्थम-गुत्था कर दिया है कि हिन्दू जनमानस को समझ में ही नहीं आता हैं कि कौन देव और कौन ग्रह?
गौरतलब है कि शनि शिंगणापुर में भू-माता रणरागिनी संगठन ने 26 जनवरी को मंदिर में चबूतरे पर पूजा का ऐलान किया था और संगठन की 400 से अधिक महिलाओं ने गिरफ्तारी दी थी। महंत नरेंद्र गिरी और महराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस समेत कई लोगों ने महिलाओं को मंदिर में प्रवेश देने संबंधी मांग का समर्थन किया था।
दरअसल, पिछले साल पुणे की ही एक महिला ने मंदिर के चबूतरे पर चढ़कर शनि देव को तेल चढ़ा दिया था। महिलाओं के लिए वर्जित माने जाने वाले इस कृत्य के बाद मंदिर ट्रस्ट ने मंदिर का शुद्धिकरण करवाया था। बाद में पूजा करने वाली महिला ने तो माफी मांग ली, पर शुद्धिकरण को लेकर महिलाओं ने काफी आक्रोश व्यक्त किया।
आओ इस बारे में हम सचाई को जानते हैं कि आखिर शनि एक ग्रह हैं या देवता?
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एक ग्रह का नाम है प्लूटो। इसके पांच चंद्रमा है। इस क्षुद्र (बौना) ग्रह को वैज्ञानिक क्लाइड टॉमबो ने 18 फरवरी 1930 को खोजा था। उन्होंने इसका नाम नाम प्लूटो रख दिया। सवाल है कि प्लूटो नाम क्यों रखा? दरअसल, यूनान में प्लेटो नाम से एक प्रसिद्ध दार्शनिक हुए थे। प्लेटो सुकरात के शिष्य और अरस्तू के गुरु थे। उन्हीं के नाम पर इस ग्रह का नामकरण कर दिया गया। भारतीय ज्योतिष ने इसका नाम 'यम' रखा है।
उसी तरह प्राचीन भारतीय ज्योतिषियों ने जब आकाश में नौ ग्रहों के प्रभाव को धरती पर स्पष्ट रूप से देखा, तो उन्होंने प्रत्येक ग्रह का नाम एक देवता या ऋषि के नाम पर रख दिया। असुरों के गुरु शुक्राचार्य, देवताओं के गुरु बृहस्पति थे। कालांतर में जब ज्योतिष विद्या लोगों का भविष्य बताने की बन गई तब इसके पीछे कथाएं और कर्मकांड शुरू हो गए। पुराणों के गलत अर्थ निकाले जाने लगे और उस आधार पर मंदिर और पूजा-पाठ शुरू होने लगे जो अनुचित ही माना जाएगा। आज लोग शनि, राहू और केतू से ज्यादा डरते हैं, ईश्वर से कम। वेदज्ञ मानते हैं कि किसी शनिग्रह या देवता को पूजने की जरूरत नहीं है। ब्रह्म ही सत्य है।
अब बात करते हैं शनिदेव पर:-
जानिए कौन है शनिदेव? : त्रिदेवों के काल में शनि नामक भी एक देवता थे। शनि को सूर्यदेव का पुत्र माना गया है। उनकी बहन का नाम देवी यमुना और उनकी माता का नाम छाया है। उनकी पत्नी और पुत्र भी हैं। शनिदेव का किसी शनिग्रह से कोई संबंध नहीं है। शनि के जन्म के संबंध में शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्य की पत्नी छाया ने पुत्र प्राप्ति की इच्छा से शिवजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या किया। तपस्या की कठोरता और धूप-गर्मी के कारण छाया के गर्भ में पल रहे शिशु का रंग काला पड़ गया। तपस्या के प्रभाव से ही छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म शिंगणापुर में हुआ। शास्त्रों के अनुसार हिन्दी मास ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को शनिदेव का जन्म रात के समय हुआ था। शनिदेव के जन्म के बाद जब सूर्य अपनी छाया और पुत्र से मिलने पहुंचे तो उन्होंने देखा कि छाया का पुत्र काला है। काले शिशु को देखकर सूर्य ने इसे अपना पुत्र मानने से इंकार कर दिया।
शनिदेव की वेशभूषा : पुराणों अनुसार इनके सिर पर स्वर्णमुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र और शरीर भी इंद्रनीलमणि के समान है। इनके हाथों में धनुष, बाण, त्रिशूल रहते हैं। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण, वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे का बना हुआ है। दुर्वासा ऋषि की तरह ये स्वभाव से धार्मिक लेकिन क्रूर हैं। इनके अन्य नामों में यमाग्रज, छायात्मज, नीलकाय, क्रुर कुशांग, कपिलाक्ष, अकैसुबन, असितसौरी इत्यादि नाम हैं। शनिदेव का गोत्र कश्यप है और वे स्वभाव से क्षत्रिय हैं। वे वायव्य दिशा के स्वामी हैं।
शनिदेव के दो अनुचर राहु और केतु हैं। असुर राहु और केतु ने अमृत वितरण के समय भेष बदलकर देवताओं की पंक्ति में बैठकर अमृत चख लिया था। जब इस बात का पता चला हो तुरंत ही उनका सिर काट दिया गया, ताकि अमृत उनके हृदय में पहुंचकर उन्हें अमर न कर दें लेकिन तब तक थोड़ी देर हो चुकी थी। कहते हैं कि आज भी इन असुरों के सिर और धढ़ जिंदा हैं।
कालांतर में ज्योतिष परंपरा के चलते शनिदेव को शनिग्रह से इस तरह संयुक्त कर दिया गया है कि उनकी कथा को ग्रह की कथा मान लिया और ग्रह की कथा को उनकी कथा मान लिया गया।
हनुमान और शनिदेव : एक कथा के अनुसार अहंकारी लंकापति रावण ने शनिदेव को कैद कर लिया और उन्हें लंका में एक जेल में डाल दिया था। जब हनुमान सीता मैया की खोज में लंका में आए तब मां जानकी को खोजते-खोजते उन्हें भगवान् शनिदेव जेल में कैद मिले। हनुमानजी ने तब शनि भगवान को आजाद करवाया। आजादी के बाद उन्होंने हनुमानजी का धन्वाद किया और उनके भक्तों पर विशेष कृपा बनाए रखने का वचन दिया।
शनि शिंगणापुर : देश में सूर्यपुत्र शनिदेव के कई मंदिर हैं. लेकिन उनमें सर्वाधिक प्रमुख है महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शिंगणापुर का शनि मंदिर। वर्तमान में जो मंदिर बने हैं वे सभी डर के कारण फैले व्यापारवाद के चलते पिछले 100-200 सालों की उपज हैं।
शिंगणापुर के शनिदेव अपने आप पर एक अनोखा मंदिर है। यह ऐसा एकलौता मंदिर है जिसकी प्रतिमा खुले आसमान में बनी हुई है। इस मंदिर में कोई भी छत नहीं है। यह प्रतिमा लगभग 5 फीट 9 इंच लंबी व 1 फीट 6 इंच चौड़ी है। श्रीशनि शिंगणापुर के बारे में यह प्रचलित है कि यहां, ‘देवता हैं, लेकिन मंदिर नहीं। घर है, लेकिन दरवाजा नहीं। वृक्ष है, पर छाया नहीं। भय है, पर शत्रु नहीं।’ शनि जयंति पर यहां की प्रतिमा प्रतिमा निल वर्ण की दिखती है।
शनि के जन्म स्थान शिंगणापुर के संबंध में एक प्रचलित है कि पुराने समय में एक पंडित शिंगणापुर में पधारे थे। पंडितजी दृष्टिहीन थे, उन्हें कुछ दिखाई नहीं देता था। रात के समय उनके सपने में शनिदेव स्वयं प्रकट हुए। शनिदेव से पंडितजी को बताया कि शिंगणापुर में एक टिले के अंदर मेरी प्रतिमा है उसे आप बाहर निकालिए।
जब पंडितजी ने शनिदेव से कहा कि वे अंधे और यह कार्य करने में असमर्थ हैं। इस पर शनिदेव ने उन्हें आंखों की रोशनी लौटा दी। जब पंडितजी नींद से जागे तो आंखों की रोशनी पाने पर अतिप्रसन्न हुए और उन्होंने शनिदेव की बताई हुई जगह पर खुदाई की तो वहां शनि प्रतिमा प्रकट हुई। शनि की प्रतिमा बाहर निकालकर उसकी स्थापना की गई। तभी से शिंगणापुर में इसी स्थान पर शनिदेव की प्रतिमा स्थापित है। इन्हीं पंडितजी के वंशज शिंगणापुर में आज भी शनिदेव की पूजा आराधना करते हैं।
श्रीशिंगणापुर की ख्याति इतनी है कि आज यहां प्रतिदिन 13 हजार से ज्यादा लोग दर्शन करने आते हैं और शनि अमावस, शनि जयंती को लगने वाले मेला में करीब 10 लाख लोग आते हैं।
आगे...महिलाएं क्यों नहीं तेज चढ़ाती शनिदेव को?
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महिलाएं क्यों नहीं तेज चढ़ाती शनिदेव को? वैसे तो शनि के संबंध में कई कथाएं है। आप सभी तो यह जानते ही हैं कि शनिदेव की दृष्टि जिस पर भी पड़ जाती है उसके जीवन में बुरे दिन शुरू हो जाते हैं। यही कारण है कि सभी शनिदेव से दूर ही रहते थे। शिव, राम, रावण और अन्य तमाम देवी और देवता उनकी दृष्टि से बचते रहते हैं। इसका यह मतलब नहीं की उनकी दृष्टि खराब है या वे बहुत ही शक्तिशाली हैं। दरअसल ऐसा उनकी पत्नी द्वारा दिए गए एक शाप के कारण होने लगा।
ब्रह्मपुराण के अनुसार इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया। इनकी पत्नी परम तेजस्विनी थी। एक रात वे पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुंचीं, लेकिन शनिदेव तो ध्यान में निमग्न थे। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया।
इसलिए पत्नी ने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा। लेकिन बाद में पत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ, किंतु शाप के प्रतीकार की शक्ति उसमें न थी, तभी से शनि देवता अपना सिर नीचा करके रहने लगे। क्योंकि ये नहीं चाहते थे कि इनके द्वारा किसी का अनिष्ट हो। यही कारण है कि शनिदेव की नजर अशुभ मानी जाने लगी। इसी कारण परंपरावश शनि शिंगणापुर में किसी स्त्री को तेल नहीं चढ़ाने दिया जाता है, क्योंकि यह भय है कि कही शनिदेव की दृष्टि किसी स्त्रि पर पड़ कर उसका अनिष्ट न हो। हालांकि यह कहा जाता है कि जब भी शनिदेव की पूजा की जाए या उनको तेल चढ़ाया जाए तो उनकी आंखों में या उनकी मूर्ति को नहीं देखना चाहिए।
अब जानिए शनिग्रह के बारे में:-
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वैज्ञानिक दृष्टिकोण:- खगोल विज्ञान के अनुसार शनि का व्यास 120500 किमी, 10 किमी प्रति सेकंड की औसत गति से यह सूर्य से औसतन डेढ़ अरब किमी. की दूरी पर रहकर यह ग्रह 29 वर्षों में सूर्य का चक्कर पूरा करता है। गुरु शक्ति पृथ्वी से 95 गुना अधिक और आकार में बृहस्पती के बाद इसी का नंबर आता है। अपनी धूरी पर घूमने में यह ग्रह नौ घंटे लगाता है।
ज्योतिष अनुसार शनिग्रह:- नौ ग्रहों में शनि बृहस्पति के बाद सबसे बड़ा ग्रह है। शनिग्रह एक राशि में ढाई वर्ष भ्रमण करता है। शनि सभी द्वादश (बारह) राशि घूमने के लिए तीस साल का समय लेता है। तीन राशियों की कालावधि को साढे सात वर्ष लगते हैं इसीलिए इस काल को साढेसाती कहते हैं। जब शनि जन्म राशि के बारहवें (जन्मराशि में से द्वितीया में भ्रमण करता है) तब प्रस्तुत परिपूर्ण काल साढ़ेसाती का माना जाता है।
शनिग्रह का असर ज्योतिष अनुसार : लाल किताब के विशेषज्ञों अनुसार शनिग्रह एक ऐसा ग्रह है जिसका धरती के सभी तरह के लौहतत्व पर असर देखने को मिलता है। हमारे शरीर में भी लौह तत्व होता है। इसके अलावा दृष्टि, बाल, नक्ष, भवें और कनपटी पर भी शनि का असर रहता है।
जिस तरह चंद्रमा का असर धरती के जलतत्व पर पड़ता है उसी तरह शनि का असर लौहे, तेल और प्राकृतिक रूप से उत्पन्न सभी काली और नीले रंग की वस्तुओं पर पड़ता है। उनमें भैंस, भैंसा, कीकर, आक, खजूर, काले जूते, जुराब आदि की गणना की जाती है। शनि का यह असर अच्छा भी होता है और बुरा भी। जिस व्यक्ति या स्थान की जैसी प्रकृति होती है उस पर वैसा असर होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनिग्रह यदि कहीं रोहिणी-शकट भेदन कर दे तो पृथ्वी पर बारह वर्ष घोर दुर्भिक्ष पड़ जाता है और प्राणियों का बचना ही कठिन हो जाता है। यह योग महाराजा दशरथ के समय में आया था। इस योग के प्रभाव से राज्य की प्रजा बेहाल हो गई थी। भयंकर सूखा था।
यदि किसी व्यक्ति पर इसका बुरा असर हो रहा है, तो लाल किताब के अनुसार भगवान भैरव की शरण में जाना जाहिए या अपने खानपान और व्यवहार में बदलाव करके कुछ उपाय करना चाहिए।
अशुभ की निशानी : शनि के अशुभ प्रभाव के कारण मकान या मकान का हिस्सा गिर जाता है या क्षति ग्रस्त हो जाता है, नहीं तो कर्ज या लड़ाई-झगड़े के कारण मकान बिक जाता है। अंगों के बाल तेजी से झड़ जाते हैं। अचानक आग लग सकती है। धन, संपत्ति का किसी भी तरह नाश होता है। समय पूर्व दाँत और आँख की कमजोरी।
शुभ की निशानी : शनि की स्थिति यदि शुभ है तो व्यक्ति हर क्षेत्र में प्रगति करता है। उसके जीवन में किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता। बाल और नाखून मजबूत होते हैं। ऐसा व्यक्ति न्यायप्रिय होता है और समाज में मान-सम्मान खूब रहता हैं।
उपाय : सर्वप्रथम भगवान भैरव की उपासना करें। तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ, और जूता दान देना चाहिए। कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलावे। छायादान करें, अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसो का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापो की क्षमा मांगते हुए रख आएं। दांत साफ रखें। अंधे-अपंगों, सेवकों और सफाईकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें।
सावधानी : कुंडली के प्रथम भाव यानी लग्न में हो तो भिखारी को ताँबा या ताँबे का सिक्का कभी दान न करें अन्यथा पुत्र को कष्ट होगा। यदि आयु भाव में स्थित हो तो धर्मशाला का निर्माण न कराएं। अष्टम भाव में हो तो मकान न बनाएं, न खरीदें। उपरोक्त उपाय भी लाल किताब के जानकार व्यक्ति से पूछकर ही करें।