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Written By WD

धर्म क्या है, जानिए

धर्म क्या है, जानिए - Definition of religion In Hindi
-डॉ. रामकृष्ण सिंगी
 
धर्म एक जीवनशैली है, जीवन-व्यवहार का कोड है। समझदारों, चिंतकों, मार्गदर्शकों, ऋषियों द्वारा सुझाया गया सात्विक जीवन-निर्वाह का मार्ग है, सामाजिक जीवन को पवित्र एवं क्षोभरहित बनाए रखने की युक्ति है, विचारवान लोगों द्वारा रचित नियम नैतिक नियमों को समझाइश लेकर लागू करने के प्रयत्न का एक नाम है, उचित-अनुचित के निर्णयन का एक पैमाना है और लोकहित के मार्ग पर चलने का प्रभावी परामर्श है।
निरपेक्ष अर्थ में 'धर्म' की संकल्पना का किसी पंथ, संप्रदाय, विचारधारा, आस्था, मत-मतांतर, परंपरा, आराधना-पद्धति, आध्यात्मिक-दर्शन, किसी विशिष्ट संकल्पित मोक्ष-मार्ग या रहन-सहन की रीति‍-नीति से कोई लेना-देना नहीं है। यह शब्द तो बाद में विभिन्न मतों/ संप्रदायों, आस्थाओं, स्‍थापनाओं को परिभाषित करने में रूढ़ होने लगा। शायद इसलिए कि कोई दूसरा ऐसा सरल, संक्षिप्त और संदेशवाही शब्द उपलब्ध नहीं हुआ। व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, जिम्मेदारी की पूर्ति और विशिष्ट परिस्थितियों में उचित कर्तव्य निर्वाह के स्वरूप को भी 'धर्म' कहां जाने लगा। 
 
आइए, अब इन निम्नांकित तीन कथनों को पढ़िए। नीतिकारों और चिंतकों के ये कथन महत्वपूर्ण संकेत देते हैं। उन अंतरनिहित संकेत के मर्म को पहचानिए। 
 
धृति:, क्षमा, दमोऽस्तेयं शौच: इन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षमणम्।
 
अर्थात धैर्य, क्षमा, अस्तेय, पवित्रता, आत्मसंयम, बुद्धि, विद्या, सत्य एवं अक्रोध आदि ये 10 धर्म के लक्षण हैं। 
 
(मनुस्मृति 6/92/)
 
* भली-भांति मनन किए हुए‍ विचार ही जीवनरूपी सर्वोच्च परीक्षा में परीक्षित होकर एवं व्यवहार में आकर धर्म बन जाते हैं।
 
-डॉ. राधाकृष्णन
 
सच्चा धर्म सकारात्मक होता है, नकारात्मक नहीं। अशुभ एवं असत से केवल बचे रहना ही धर्म नहीं है। वास्तव में शुभ एवं सत्कार्यों को करते रहना ही धर्म है। 
 
-स्वामी विवेकानंद
 
स्पष्ट है कि इन तटस्‍थ और वस्तुनिष्ठ कथनों में किसी आध्यात्मिक विचारधारा, उपासना-पद्धति, जीवनशैली या जीवन-दर्शन का कोई न कोई संकेत है, न परामर्श। ये कथन सार्वभौमिक और सर्वकालिक आदर्शों को स्थापित करते हैं। बस।

 
वास्तव में हुआ यह है कि विभिन्न कालों में उभरे लोकनायकों ने (जो उस समय के रोल मॉडल्स थे) अपने चिंतन, कल्पनाशीलता, अपने दृष्टिकोण और विश्वासों के आधार पर कुछ स्थापनाएं कीं और उन पर आधारित जीवनशैलियों, व्यवहार प्रणालियों, नियमों और निषेधों का सृजन कर अपने अनुयायियों में उन्हें प्रसारित कर दिया। धारणाएं बनीं, दृढ़ विश्वासों में परिणत हुईं और फिर ये रूढ़ियां बनकर जीवन-शैलियां बन गईं। लोगों ने सोचना बंद कर दिया और अनुगमन करने लगे। इस प्रकार लोगों का एक समूह, वर्ग, गोल या दल संगठित हो गया और एक विशिष्ट संप्रदाय या धर्म स्थापित हो गया जिसकी एक निर्धारित रीति-नीति, चिंतन और व्यवहार-शैली तथा विधि-निषेध की प्रणाली विकसित हो गई। अपने प्रवर्तक के नाम या उनके द्वारा स्थापित सिद्धांतों/ आदर्शों/ शिक्षाओं के अनुसार उस एक विशिष्ट नाम दे दिया गया। अनुयायियों का एक वर्ग/ समूह/ दल उसके नीचे एकजुट या संगठित हो गया।
 
आज की आवश्यकता यह है कि इस संपूर्ण घटनाक्रम को समझकर एवं उसकी पृष्ठभूमि जानकर 'धर्म' शब्द को व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए। उसी में सबका कल्याण निहित है और निहित है उस शब्द की संकल्पना की निर्मलता भी।