वेदों में नित्य कर्म का उल्लेख
खुद को प्रभु से जोड़ें
संत और गुरु भक्त के मन को सत्संग से जोड़ते हैं। इससे मन के विकार दूर होते हैं और हृदय में शुद्धता आती है। संत को मालूम होता है कि मन के विकारों को जब तक नष्ट नहीं किया जाएगा, तब तक साधक साधना को नहीं समझ पाएगा। जिस प्रकार लोहे में अन्य धातु की मात्रा होने से चुंबक अपना प्रभाव छोड़ देता है। उसी प्रकार मन में विकार होने से भक्त की साधना सफल नहीं होती। गुरु और संत साधक को भगवान से जोड़ने का काम करते हैं।गुरु साधक को साधना से जोड़ते हैं, क्योंकि बिना ज्ञान के भाव का जन्म नहीं होता। इस कारण भक्त और भगवान के बीच रिश्ता नहीं बन पाता। भगवान तो भाव के भूखे होते हैं। उनका भक्त के शरीर से कोई मतलब नहीं होता। वेदों में भी उल्लेख मिलता है कि भगवान नित्य कर्म देखते हैं। उनका साधक की उपासना से मतलब नहीं रहता है। साधक की उपासना के बाद भी भगवान नहीं मिलते, क्योंकि भक्त उपासना के बदले संसार माँगते हैं। इस कारण वे भगवान को नहीं पाते। उनको चाहिए कि नित्य कर्म के दौरान खुद को प्रभु से जोड़ें, तभी जीवन का उद्धार होगा।