मन का प्रदूषण सबसे बड़ी समस्या : तरुणसागर जी
मनुष्य विचारों का जीर्णोद्धार करें : मुनिश्री
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संजय गोस्वामी पथ भ्रमित हो चुके समाज को आज संस्कार, चरित्र से ज्यादा नीति शिक्षा की जरूरत है। दरअसल व्यक्ति का भोजन ही नहीं विचार भी तामसिक हो चुके हैं, जिससे उसके दिलो-दिमाग में सिर्फ अपना स्वार्थ छाया रहता है। लिहाजा आज मंदिर नहीं बल्कि विचारों के जीर्णोद्धार की जरूरत है। यह विचार राष्ट्रीय संत मुनिश्री तरुणसागर महाराज के हैं। समाज में फैल रहीं विभिन्न विकृतियों को लेकर उन्होंने अपना संदेश दिया। -
भाव हिंसा में लगातार बढ़ोत्तरी के बारे में आपका क्या मत है?मुनि श्री- पूरा देश ध्वनि प्रदूषण व वायु प्रदूषण से बचने के उपाय खोजने में लगा है। जबकि इससे बड़ी समस्या मनोप्रदूषण की है। (हँसते हुए) गाँधी जी ने तीन बंदर बनाए थे। उनको एक बंदर और बनाना था जो अपने हृदय पर हाथ रखे होता और संदेश देता कि बुरा मत सोचो। -
विचारों में क्या बदलाव आया है?-
मंदिरों नहीं विचारों के जीर्णोद्धार की आवश्यकता है। हमारा भोजन ही नहीं विचार भी तामसिक हो गए हैं। हमारी प्रार्थना भी तामसिक हो चुकी है। भगवान से केवल अपने और परिजनों का ही सुख चाहते हैं। दुनिया के बारे में कभी भला नहीं माँगते। ऐसी प्रार्थना ही तामसिक होती है। -
लोगों में करुणा का भाव क्यों कम होता जा रहा है? मुनिश्री- मानवीय संवेदनाएँ कम हो चुकी हैं। बड़े से बड़े हादसे की खबर लोग चाय की चुस्की के साथ पढ़ या सुन लेते हैं। इन हादसों की खबरों से उनके हाथ की प्याली नहीं गिरती। दिल की संवेदनाएँ मरना देश व समाज के लिए अच्छा नहीं है। जब हम एक-दूसरे के दुख-दर्द को समझेंगे तभी अमन-चैन की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है।
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शिक्षा में नीति शिक्षा का समावेश क्यों जरूरी है? मुनिश्री- वो शिक्षा अधूरी है जो जीवन निर्वाह तक ही सीमित हो। इसका उद्देश्य जीवन निर्माण भी होना चाहिए। इसके बिना कोई भी शिक्षा अधूरी है। संस्कारों में कमी आई है। (हँसते हुए कहा अब तो केवल अंतिम संस्कार ही बाकी है) इसके सुधार के लिए पहली जिम्मेदारी तो माँ की होती है जो किसी भी बच्चे की पहली गुरू होती है। उसके बाद पिता और फिर गुरू की जिम्मेदारी भी अहम होती है। -
समाज में राजनीति व नौकरशाही लगातार क्यों हावी हो रही है?मुनिश्री- धर्म और राजनीति के बीच पति व पत्नी का रिश्ता है। पति रूपी धर्म का दायित्व है कि वह राजनीति पर अंकुश रखे लेकिन राजनीति हावी होने से हालात बदले हैं। -
भ्रष्टाचार का अंत कैसे हो सकता है? मुनिश्री- भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी मजबूत हो चुकी हैं कि इसका अंत किसी को नहीं दिख रहा। लोग भगवान को भी अपने मनोरथ पूरे करने के लिए चढ़ावा के तौर पर रिश्वत देने से नहीं चूक रहे। उन्होंने कहा कि बड़ी चोरी करने वाला बड़ा उद्योगपति और छोटी चोरी करने वाले छोटे व्यापारी बन गए हैं। जिसे मौका नहीं मिला वो तथाकथित ईमानदार बनकर रह गया है। मजबूरी में बना ईमानदार लम्बा नहीं चलेगा। हमें स्वयं को सुधारना होगा। संस्कार, चरित्र व स्वभाव से ईमानदार बनने की आवश्यकता है। -
मानसिक तनाव के चलते व्यक्ति लक्ष्य कैसे पा सकता है? मुनिश्री- जीवन में इंटेन्शन न होने से ही टेंशन बढ़ रहा है। जीवन में लक्ष्य का होना आवश्यक है। लक्ष्य न होने से मनुष्य भटकता है। उपदेश व प्रवचनों को आत्मसात करने की बजाय केवल सुना जा रहा है। जिस प्रकार हम आदतन मंदिर जाते हैं वैसे ही उपदेशों को आदतन सुना ही जा रहा है। किसी सोते हुए को जगाना तो आसान है लेकिन उसे जगाना मुश्किल है जो सोने का बहाना कर रहा हो। -
जीव व जगत के बीच कोई तीसरी शक्ति होती है क्या?मुनिश्री- इसमें मतान्तर है। कोई तीसरी शक्ति नहीं होती बल्कि जीव ही तीसरी शक्ति है। वैदिक व श्रमण संस्कृति में यही फर्क है। वैदिक शक्ति इसे मानती है तो श्रमण संस्कृति नहीं मानती। अपनी गलतियों के लिए ईश्वर की मर्जी ठहराकर लोगों तीसरी शक्ति के नाम पर काफी पाप किए हैं। जैसी आपकी अर्जी वैसी ही ईश्वर की मर्जी कहना ही ठीक होगा।-
बढ़ती नक्सलवाद जैसी समस्याओं को कैसे रोका जा सकता है?मुनिश्री- नक्सलवाद कभी आंदोलन होता था जिसका स्वरूप पूरी तरह बदल चुका है। अधिकारों को लेकर शुरू हुआ यह आंदोलन आज देश की समस्या बन चुका है। बाहरी ताकतें नक्सलवाद की आड़ में काम कर रही हैं। ऐसी ताकतों से सरकार को सख्ती से निपटना चाहिए। इसके समाधान के लिए ताकत और विकास का रास्ता अपनाना ही ठीक होगा। सरकार को ऐसे क्षेत्र में विकास को गति देना चाहिए और सख्ती से निपटना चाहिए।