त्रिवेणी संगम : श्रावण, महाकाल और उज्जैन
- अमिताभ पांडेय
प्रकृति के श्रृंगार का पर्व सावन हरियाली और खुशहाली लेकर आ गया है। भारतीय संस्कृति की धार्मिक मान्यता के अनुसार सावन मास में किए जाने वाले देवदर्शन,भजन,पूजन,जप,तप,व्रत आदि का विशेष महत्व है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखें तो सावन माह जल,जंगल,जमीन,जीव,जन्तु के लिए भी लाभदायक होता है। इस माह में नदी-नाले,कुएं-तालाब जल से भर जाते हैं। पहाडी इलाकों में पानी झरने के रूप में बह निकलता है। सूखे पेड़ हरे हो जाते हैं। जीव जन्तुओं के लिए भी यह मौसम राहत और आनंद से भरा होता है। सावन में हर तरफ शीतल मंद पवन के झोंके मन को मस्ती का अहसास करवाते हैं। ऐसा लगता है कि हर कोई प्रकृति से जुड़ जाना चाहता है। शायद यही कारण है कि सावन मास में धार्मिक एंव पर्यटन सम्बन्धी गतिविधियां बढ़ जाती हैं।
प्राचीन धर्मग्रन्थों के अनुसार सावन का महीना प्रजा के पालनहार भगवान शिव को विशेष प्रिय है। यही कारण है कि इन दिनों शिव मंदिरों की रौनक बढ़ जाती है। भक्ति भावना से भरे भक्तजन अल सुबह से देर रात तक भजन,पूजन करने में लगे रहते हैं। मंदिरों में बेलपत्र,फल,फूल भगवान शिव को समर्पित कर उनका नयनाभिराम श्रृंगार किया जाता है। भक्तजन अपने आराध्य पर जल चढ़ाने के लिए पवित्र नदियों से कावड़ में जल भरभर मंदिर तक की पैदल यात्रा करते हैं जिसको कावड़ यात्रा कहा जाता है।