गीता प्रेस के सफर और उसके हिन्दुत्व रुख पर पुस्तक
नई दिल्ली। गीता प्रेस अपने 92 साल पूरे करने को है। इसने राजनीति से सुरक्षित दूरी बनाए रखने का दावा करते हुए भारत में धार्मिक पुस्तकों का कामयाब बाजार बनाया है। ऐसा कोई अन्य प्रकाशक नहीं कर सका है। इसने नियमित तौर पर राजनीकि रुख अख्तियार किया है। यह बात एक नई पुस्तक में कही गई है।
पत्रकार अक्षय मुकुल द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘गीता प्रेस और मैकिंग ऑफ हिन्दू इंडिया’ में आधुनिक भारत के सबसे प्रभावशाली प्रकाशक उद्यमों में से एक पर बात की गई है। पुस्तक में इसके असाधारण पत्रों का उल्लेख किया गया है जिसमें उद्यमी, संपादक, राष्ट्रवादी विचारक और धार्मिक कट्टरपंथी शामिल हैं।
1920 के दशक में मारवाड़ी कारोबारी से अध्यात्मवादी बने जयदयाल गोयन्दका और हनुमान प्रसाद पोद्दार ने गीता प्रेस की स्थापना की थी।
साल 2014 की शुरुआत तक गीता प्रेस गीता की करीब 7.2 करोड़ प्रतियां, तुलसीदास की रचनाओं की 7 करोड़ प्रतियां और पुराण और उपनिषद् जैसे शास्त्रों की 1.9 करोड़ प्रतियां बिक चुकी हैं। (भाषा)