सिनेमा, संन्यास और सियासत के 'हीरो' विनोद खन्ना
मुंबई। अभिनय की शुरुआत खलनायक की भूमिकाओं से करने वाले विनोद खन्ना बाद में लोकप्रिय नायकों में शामिल हो गए और उनके अनगिनत प्रशंसक उनकी आकर्षक कद-काठी और रूप-रंग पर फिदा रहे। एक समय अदाकारी छोड़कर अध्यात्म की दुनिया में चले गए इस अभिनेता ने बाद में फिर अभिनय का दामन थामा लेकिन शायद फिल्मी दुनिया में वह मुकाम हासिल नहीं कर सके, जिसके वे हकदार थे।
हालांकि विनोद ने करीब पांच दशक तक अपने अभिनय, अंदाज, हाव-भाव और चाल-ढाल से हिंदी फिल्म जगत में अपना दबदबा बनाए रखा और चाहने वालों को लुभाते रहे। इसके साथ ही 1997 में उन्होंने सियासत की सक्रिय पारी भी शुरू की, जो अंतिम समय तक सांसद के रूप में जारी रही।
विनोद खन्ना का गुरुवार को 70 साल की उम्र में मुंबई के एक अस्पताल में निधन हो गया। अस्पताल ने बयान जारी कर बताया कि उन्हें ब्लैडर कैंसर था। उनके निधन की खबर सुनकर बॉलीवुड के साथ उनके प्रशंसकों को भी गहरा धक्का लगा।
खन्ना ने कई फिल्मों में अमिताभ बच्चन के साथ काम किया। इस जोड़ी को अधिकतर फिल्मों में कामयाबी मिली लेकिन एंग्री यंगमैन के रूप में मशहूर हो गए बच्चन को विनोद के मुकाबले इन फिल्मों की कामयाबी का ज्यादा श्रेय मिला।
दोनों ने ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘परवरिश’, ‘रेशमा और शेरा’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘जमीर’, ‘हेराफेरी’ और ‘खून पसीना’ में साथ काम किया था और दोनों के बीच होड़ में हमेशा बच्चन ही निर्विवाद नायक रहे, जहां विनोद खन्ना को दूसरे नंबर पर देखा जाता था।
विनोद खन्ना ने करियर की शुरुआत भी सहायक किरदार निभाकर की थी। उन्हें पहला ब्रेक दिया था सुनील दत्त ने जो खुद भी बाद में पंजाब से सांसद रहे। सुनील दत्त ले कहीं विनोद खन्ना को देखा और उनके आकर्षक अंदाज से इस कदर प्रभावित हुए कि 1968 में अपनी होम प्रोडक्शन फिल्म ‘मन का मीत’ में खलनायक की भूमिका के लिए उन्हें चुना।
शुरुआती सालों में वे ‘पूरब और पश्चिम’,‘आन मिलो सजना’, ‘सच्चा झूठा’ और ‘मेरा गांव मेरा देश’ जैसी फिल्मों में खलनायक और सहायक किरदार अदा करते रहे। नायक के रूप में पहला ब्रेक उन्हें ‘हम तुम और वो’ (1971) से मिला। इसके बाद सिलसिलेवार कई फिल्में उनके खाते में जुड़ती चली गईं, जिनसे उन्हें हीरो के तौर पर पहचान मिली। खन्ना ने 1982 में तब अपने प्रशंसकों को सकते में डाल दिया, जब चरम लोकप्रियता के दौर में वह बॉलीवुड को छोड़कर अध्यात्म की ओर चले गए और अमेरिका के ओरेगोन में ओशो रजनीश के पास पहुंच गए।
वे अपनी पहली पत्नी गीतांजलि और दोनों बेटों अक्षय तथा राहुल को छोड़कर रजनीश की शरण में चले गए। 1985 में गीताजंलि से उनका तलाक हो गया। अक्षय और राहुल दोनों अभिनेता हैं। अध्यात्म की दुनिया में पांच साल रहने के बाद वे फिर सिनेमा की ओर लौटे और फिल्मी दुनिया में अपनी पुरानी शोहरत पाने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगा। 80 के दशक में आईं उनकी फिल्मों में ‘इंसाफ‘, ‘दयावान’ और ‘चांदनी’ आदि रहीं। (भाषा)