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Written By सुरेश एस डुग्गर
Last Modified: शुक्रवार, 10 जून 2016 (17:19 IST)

लाखों शामिल होंगे इस बार 'क्षीर भवानी' मेले में, रविवार को लगेगा मेला

लाखों शामिल होंगे इस बार 'क्षीर भवानी' मेले में, रविवार को लगेगा मेला - kshirbhwani mela jammu-kasmir
श्रीनगर। कश्मीरी पंडित बड़े उत्साह से कश्मीर के घने देवदार पेड़ों व प्राकृतिक सौंदर्य के बीच 12 जून से लगने वाले 'क्षीर भवानी' मेले में भाग लेने का इंतजार कर रहे हैं। कश्मीर के गंदरबल जिले के तुलमुला में स्थित मां 'क्षीर भवानी' मंदिर परिसर में घने देवदार पेड़ों व प्राकृतिक सौंदर्य के बीच 12 जून को लगने वाले 'क्षीर भवानी' मेले में भाग लेने के लिए पंडितों का जम्मू में जमावड़ा लगना शुरू हो गया है।
 
कश्मीर में अमरनाथ यात्रा के बाद हिन्दुओं के सबसे बड़े त्योहार 'क्षीर भवानी' को मुसलमानों के पवित्र महीने रमजान में 3 दशकों के बाद मनाया जा रहा है। कश्मीर में उनकी वापसी को लेकर जारी बहस के बीच राज्य और बाहर से हजारों पंडित श्रीनगर से 27 किमी दूर गंदरबल जिले के तुलमल्ला गांव में हिन्दू देवी रागनया देवी का प्रतिनिधित्व करने वाले 'क्षीर भवानी' मंदिर में आ रहे हैं।
 
'क्षीर भवानी' त्योहार मई, जून या जुलाई महीने में पड़ता है और मुसलमानों का रमजान महीना हर साल 11 दिन शिफ्ट हो जाता है, क्योंकि लूनर कैलेंडर सोलर कैलेंडर से मेल नहीं खाता है। पिछली बार 1980 के प्रारंभ में मुसलमानों और पंडितों के 2 धार्मिक प्रतीकों का मेल हुआ।
 
घाटी में 1989 में आतंकवाद की शुरुआत के बाद कश्मीरी पंडितों की एक बहुमत संख्या घाटी छोड़कर चली गई। कई कश्मीरी पंडितों ने आशा व्यक्त की कि संयोग से कश्मीर के लोगों के लिए विशेषकर पंडितों की वापसी को लेकर राजनीति के बाद कुछ बेहतर आएगा। उन्होंने कहा कि हर कश्मीरी का इन दिव्य संयोगों में विश्वास है। हम इन शुभ दिनों में कुछ ठोस के लिए तत्पर हैं।
 
एक कश्मीरी पंडित नेता ने कहा कि कश्मीर के लोगों के लिए संयोग 'अच्छा शगुन' है जिन्होंने पिछले 25 सालों से संघर्ष का सामना किया है। यह दिन हमारे लिए पवित्र है और रमजान आपके लिए। हम गीता पढ़ेंगे और आप कुरान। हो सकता है, ईश्वर इस बार हमारी प्रार्थना को स्वीकार करेंगे।
 
घाटी में पंडितों के पलायन के साथ ही स्थानीय मुसलमानों ने 'क्षीर भवानी' का ख्याल रखना शुरू किया। वर्ष 2008 से मंदिर में पुनरुद्धार देखा गया है जिसके दौरान हजारों श्रद्धालुओं विशेषकर प्रवासी पंडित घाटी में स्थिति में सुधार के चलते हर साल मंदिर का दौरा करते हैं।
 
वार्षिक त्योहार एक दुर्लभ मंच बन गया है, जहां पंडित और मुसलमान अपनी भावनाओं का आदान-प्रदान करते हैं। मुसलमान तीर्थयात्रियों के लिए फूल स्टॉलों और पूजा की अन्य चीजों की व्यवस्था करते हैं।
 
पंडित नेता ने कहा कि हमारा यह त्योहार हिन्दू-मुसलमान सौहार्द की एक परंपरा है। इससे पहले जब पंडित 'क्षीर भवानी' का दौरा करते थे तो बुजुर्ग मुसलमान महिलाएं उनसे प्रार्थना करने का अनुरोध करती थीं। इसी तरह मुसलमान पड़ोसी हज पर जाने से पहले पंडित के पास जाकर अलविदा कहने जाया करता था।
 
देश के कई भागों से जम्मू पहुंचे पंडित अपने रिश्तेदारो के यहां पहुंच गए हैं। 11 जून को समुदाय के लोग एसआरटीसी, निजी बसों व वाहनों पर जगटी टाउनशिप से मेले में भाग लेने के लिए मां रागनेया के दर्शनों के लिए रवाना होंगे। सारी व्यवस्था पूरी कर ली गई है। 
 
शनिवार सुबह 7 बजे 3,000 से अधिक श्रद्धालु 40 एसआरटीसी बसों, 15 निजी बसों, वाहनों पर सवार होकर श्रीनगर के लिए रवाना होंगे।
 
तुलमुला में हर साल आयोजित होने वाला यह मेला कश्मीरी पंडितों को अपने अतीत से जुड़ने का एक अवसर प्रदान करता है। 75 साल बाद शादीपोर में लगने वाले महाकुंभ में शिरकत करने इस बार देशभर से काफी संख्या में पंडित समुदाय पहुंचा है।
 
वहीं दिल्ली से आए विशाल कौल ने बताया कि वे पिछले 3-4 वर्षों से लगातार मां के दर्शनों के लिए आते हैं। वहां उनके मन को शांति मिलती है। मां के दर्शनों से सुख-शांति का जो भाव मन में आता था वह विस्थापन ने छीन लिया है। उसी सुख की तलाश में वे मां के चरणों में हर वर्ष अपना शीश झुकाते हैं। 
 
वहीं मेले की व्यवस्था देख रहे टीएन भट्ट ने कहा कि इस बार 1 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के आने की उम्मीद की जा रही है, वहीं रिलीफ कमिश्नर कार्यालय से मिली जानकारी के अनुसार पंडितों के लिए मेले में भाग लेने के लिए एसआरटीसी बसों की व्यवस्था की गई है।
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