सरकारी कामकाज में हिन्दी की अनदेखी पर उमा भारती ने जताया रोष
नई दिल्ली। जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री उमा भारती ने सरकारी कामकाज में हिन्दी की निरंतर उपेक्षा पर गहरा रोष जताते हुए आज कहा कि अंग्रेजी की जकड़न से न निकल पाना एक मनोरोग है जिसका इलाज किया जाना बहुत जरूरी है।
भारती ने यहां अपने मंत्रालय की हिन्दी सलाहकार समिति की बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि यह अत्यंत दु:ख और शर्म का विषय है कि अंग्रेजों के भारत से चले जाने के 68 साल बाद भी हम अंग्रेजी भाषा की गुलामी से मुक्त नहीं हो पाए हैं। अपनी भाषा पर जिसे गर्व नहीं होता वह रीढ़विहीन समाज होता है।
उन्होंने मंत्रालय के अधिकारियों और कर्मचारियों से कहा कि वे सरकारी फाइलों में हिन्दी के प्रयोग की शुरुआत अपनी टिप्पणियां हिन्दी में लिखकर कर सकते हैं। मंत्रालय के उपक्रम और अन्य संगठन महत्वपूर्ण बैठकों, गोष्ठियों और सम्मेलनों की कार्यसूची पहले हिन्दी में तैयार करें और बाद में उसका अंग्रेजी अनुवाद करें।
उन्होंने कहा कि सरकारी कामकाज में बातचीत की हिन्दी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए जिसमें आवश्यकतानुसार अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। हिन्दी सलाहकार समिति की बैठक लगभग तीन वर्ष के अंतराल पर आयोजित किए जाने पर अफसोस जताते हुए भारती ने निर्देश दिया कि आगे से इसकी बैठक हर तीन महीने पर कम से कम एक बार अवश्य आयोजित की जाए।
पिछली बैठकों के फैसलों पर समुचित कार्रवाई न किए जाने पर दु:ख जताते हुए उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि इन बैठकों में लिए गए फैसलों पर निश्चित समयावधि के अंदर कार्यान्वयन हो।
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्यमंत्री संजीव बालियान ने कहा कि हम सभी को सरकारी कामकाज में हिन्दी के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए सरल हिन्दी का प्रयोग करना चाहिए और इसमें गर्व भी महसूस करना चाहिए। (वार्ता)